शिवचरण चौहान
नदी को मत करो गंदा
नदी को साफ रहने दो।
नदी बेटी पहाड़ों की
नदी को आप बहने दो।।
नदी उतरी पहाड़ों से
धरा को धन्य करने को।
यह लाई धार अमृत की
हमें संपन्न करने को।
नहीं काटो, नहीं बांधो
नदी को माफ रहने दो।।
नदी को गर कहीं छेड़ा
ये रोएगी, कराहेगी।
नहीं गर पीर सह पाई
तो चीखेगी , चिलाएगी।
नदी से बस दुआ मांगो
नदी का शाप रहने दो।।
नदी का धर्म है बहना
निरंतर बस चले चलना।
न बिगड़े चाल, बदले रूप
नदी की अर्चना करना।
नदी वरदायिनी है, बस
नदी को साफ बहने दो।।
शिव, कानपुर से (एफबी वॉल से साभार )