धर्म का मास्क ज़ुल्म के वायरस से बचाता है,
मुस्लिम टोपी वाले के पक्ष में कोई आता है।
भगवा-तिलक को मुसीबत से कोई बचाता है।
कमबख्त ग़रीब मज़दूर तेरा कोई धर्म नहीं,
तेरी हिमायत में कोई भी नहीं नजर आता है।
- नवेद शिकोह
नहीं बदली तो बस गरीबी!
आजादी के समय का पलायन आत्मरक्षा के लिए एक धार्मिक पलायन था, लेकिन आज के परिदृश्य में पलायन खुद को जीवित बचा पाने की ललक में घर तथा परिवार तक पंहुचने का है। प्रधानमन्त्री की खुद की अपील का ही नतीजा है कि इस लॉकडाउन समयावधि में एक भी परिवार भूख से पीड़ित होकर आत्महत्या जैसे मानवता विरुद्ध कृत्य के लिए मजबूर नही हुआ। फिर भी सैकड़ों किलोमीटर पैदल चलकर अपने घर जाने को मजबूर इन गरीब परिवारों की भीड़ इन राजनीतिक दलों के गरीब हितैषी होने की बात पर मुंह चिढ़ाती हुई दिखती है।
इस महामारी के दौरान भी इन राजनीतिक दलों ने अपनी राजनीति चमकाने में कोई कसर बाकी नही रखी। इस बार का मुख्य मुद्दा वापसी कर रहे लोगों से लिया जा रहा किराया था। लंच पैकेट हो या राशन वितरण सभी जगह अपना तथा अपने दल का प्रचार मानवता को शर्मसार करने वाला था तो एक जरूरतमन्द को मदद देने के नाम पर 10-10 लोगों का साथ खड़े होकर फोटो सेशन करना हद पार करने वाला कृत्य था। इस महामारी के दौरान गरीब और गरीबी पर होने वाली राजनीति ने एक बार फिर से साबित कर दिया कि भूख और गरीबी की लड़ाई में हर बार गरीबी ही हारती है।