डॉ दिलीप अग्निहोत्री
डॉ भीमराव राम जी आंबेडकर समरस समाज व शक्तिशाली राष्ट्र का निर्माण चाहते थे। इसके प्रति आजीवन समर्पित रहे। उनके नाम पर राजनीति खूब होती रही है। अनेक राजनीतिक दलों व नेताओं ने उनके नाम का खूब लाभ उठाया। किंतु अंततः ऐसे लोग एक सीमित दायरे से बाहर नहीं निकल सके। इसलिए राजनीति में इनकी यात्रा लंबी नहीं रही। सामाजिक समरसता के नाम से शुरू हुई इनकी यात्रा परिवार व जातिवाद पर आकर रुक गई। ऐसे नेता व राजनीतिक दल ज्यादा समय तक अपना प्रभाव कायम नहीं रख सके। ये जन अपेक्षाओं को पूरा करने में विफल रहे। सबको साथ लेकर चलने की क्षमता इनमें नहीं थी।
पहली बार नरेंद्र मोदी सरकार ने इस तथ्य को समझा। उन्होंने सबका साथ व सबका विकास का नारा दिया। इसको सरकार की नीति में प्रमुख स्थान दिया। इसके अनुरूप कार्य योजना बनाई गई। विगत सात वर्षों में इनका प्रभावी क्रियान्वयन सुनिश्चित किया। उत्तर प्रदेश में योगी आदित्यनाथ सरकार पिछले पांच वर्षों से इस नीति पर अमल कर रही है। दूसरी बार मुख्यमंत्री बनने के बाद योगी आदित्यनाथ ने अधिक तेजी से कल्याणकारी योजनाओं के क्रियान्वयन का संकल्प व्यक्त किया है। सबका साथ सबका विकास वस्तुतः डॉ आंबेडकर के विचारों की ही अभिव्यक्ति है। इस पर हुए अमल ने एक नया आयाम जोड़ा है। अब सबका साथ सबका विकास के साथ सबका विश्वास भी जुड़ गया है।
डॉ आंबेडकर की प्रतिष्ठा में सर्वाधिक कार्य वर्तमान केंद्र व प्रदेश सरकार ने किए है। इसमें उनके जीवन से संबंधित स्थलों का भव्य निर्माण भी शामिल है। इसके साथ ही दलित वर्ग के लोगों को आर्थिक रूप से स्वावलंबी बनाने के लिए योजनाओं का क्रियान्वयन किया जा रहा है। कल्याणकारी योजनाओं का पूरा लाभ वंचित वर्ग को तक पहुंच रहा है।
नरेंद्र मोदी ने डॉ. भीमराव रामजी आंबेडकर के जीवन से जुड़े पांच स्थानों को भव्य स्मारक का रूप प्रदान किया। इसमे लंदन स्थित आवास, उनके जनस्थान,दीक्षा स्थल,इंदुमिल मुम्बई और नई दिल्ली का अंतर्राष्ट्रीय शोध संस्थान शामिल हैं। यह अपने ढंग का अद्भुत संस्थान है, जिसमें एक ही छत के नीचे डॉ आंबेडकर के जीवन को आधुनिक तकनीक के माध्यम से देखा-समझा जा सकता है। पिछले दिनों मोदी ने यह संस्थान राष्ट्र को समर्पित किया था। संयोग देखिये, इसकी कल्पना अटल बिहारी वाजपेयी ने की थी और इसे पूरा नरेंद्र मोदी ने किया।
बसपा के समर्थन से दस वर्ष चली यूपीए सरकार ने एक ईंट भी नहीं लगाई। मोदी ने निर्धारित सीमा में इसका निर्माण कार्य पूरा कर दिया। यह भी उल्लेखनीय है कि इन स्मारकों के निर्माण में भ्र्ष्टाचार आदि का कोई आरोप नहीं लगा,न मोदी ने कहीं भी अपना नाम या मूर्ति लगवाने का प्रयास किया। वे चाहते हैं कि भावी पीढ़ी महापुरुषों और सन्तो से प्रेरणा ले,जिन्होंने पूरा जीवन समाज के कल्याण में लगा दिया। नरेन्द्र मोदी ने बाबा साहब डाॅ भीमराव आंबेडकर की भावनाओं के अनुरूप भारत के निर्माण के लिए बिना भेदभाव के समाज के प्रत्येक वर्ग को शासन की कल्याणकारी योजनाओं से जोड़ने का कार्य किया है।
अन्तिम पायदान पर खड़े व्यक्ति को शासन की योजनाओं का लाभ पहुंचाया है। लखनऊ में डाॅ भीमराव आंबेडकर स्मारक एवं सांस्कृतिक केन्द्र का निर्मांण चल रहा है। यह स्मारक एवं सांस्कृतिक केन्द्र डाॅ भीमराव आंबेडकर के आदर्शाें के अनुरूप स्वतंत्रता, समानता और बन्धुत्व के लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए कार्य करेगा। उत्तर प्रदेश में अनुसूचित जाति अनुसूचित जनजाति और अन्य पिछड़ा वर्ग से जुड़े हुए विद्यार्थियों की छात्रवृत्ति समय पर भेजी जा रही है। वर्तमान सरकार ने कार्यभार ग्रहण करने के बाद तय किया कि ग्राम पंचायत में जहां पर जिसका मकान बना है,उसको वहां पर उस जमीन का कब्जा दिलाएंगे। स्वामित्व योजना के तहत घरौनी के माध्यम से ग्राम पंचायत में हर व्यक्ति को उसके मकान अथवा झोपड़ी का अधिकार प्राप्त हो रहा है। इसके लिए ड्रोन सर्वे किया जा रहा है। स्वामित्व योजना के तहत सभी गांवों में अभियान चलाकर कार्य किया जा रहा है।
उत्तर प्रदेश में अब तक बाइस लाख परिवारों को ऐसे कब्जे दिये जा चुके हैं
वोटबैंक की राजनीति ने चिंतन के दायरे को बहुत सीमित कर दिया है। केवल चुनावी चिंता से समाज का भला नही हो सकता। नरेंद्र मोदी भी चुनावी राजनीति में है। वह भी अपनी पार्टी को विजयी बनाने का प्रयास करते है। लेकिन इसी को समाज जीवन की सिद्धि नही मानते। वह इससे आगे तक कि सोचते है। भावी पीढ़ियों और समाज के भविष्य के बारे में सोचते है। पंचतीर्थ से लेकर कबीर स्मारक तक उनके सभी प्रयास सामाजिक समरसता की प्रेरणा देने वाले है। महान लोगों के प्रत्येक कबीर में प्रबल आत्मबल था। इसीलिए उन्होंने मगहर के मिथक को स्वीकार नहीं किया। यहां आकर उन्होंने कर्मफल के सिद्धांत को महत्व दिया।
ऐसा नहीं हो सकता कि अच्छे कर्म करने वाले को मगहर में रहने के कारण नर्क और काशी में खराब कर्म करने वाले को स्वर्ग मिले। प्राचीन भारतीय चिंतन में भी कर्मफल सिद्धान्त को बहुत महत्व दिया गया। मोदी ने कबीर के छह सौ बीसवें प्राकट्य दिवस पर यहां आने का निर्णय लिया था। इस अवसर को भी उन्होंने विकास से जोड़ दिया। मगहर में विकास की अनेक योजनाएं चलाई जाएगी। साथ ही मोदी ने पूर्वी उत्तर प्रदेश के अलावा देश के समग्र विकास के प्रति कटिबद्धता व्यक्त की। कहा कि आजादी के इतने वर्षों तक देश के कुछ ही हिस्से में विकास की रोशनी पहुंच सकी थी। हमारी सरकार का प्रयास है कि भारत भूमि की एक-एक इंच की जमीन को विकास की धारा के साथ जोड़ा जाए।
पूर्व राष्ट्रपति अब्दुल कलाम ने इस जगह के लिए एक सपना देखा था। इसी के अनुरूप मगहर को अंतरराष्ट्रीय मानचित्र में सद्भाव और समरसता केंद्र के तौर पर विकसित करने का काम अब किया जा रहा है। देश में मुस्लिम बहनें तीन तलाक से मुक्ति की मांग कर रही हैं, लेकिन तीन तलाक के रास्ते में रोड़े अटकाए जा रहे थे। सत्ता का लालच ऐसा है कि आपातकाल लगाने वाले और उस समय आपातकाल का विरोध करने वाले एक साथ आ गए हैं। नरेंद्र मोदी ने कार्ल मार्क्स के इस विचार में सुधार किया।
उन्होंने वर्ग संघर्ष की जगह वर्ग सहयोग का सिद्धांत प्रतिपादित किया। मार्क्स ने केवल विचार प्रस्तुत किये थे। उन पर अमल नहीं किया था, स्वयं उनका क्रियान्वयन नहीं किया था। जबकि नरेंद्र मोदी ने वर्ग सहयोग का विचार बाद में प्रस्तुत किया, उसका क्रियान्वयन वह पिछले कई वर्षों से कर रहे है। मोदी कहते है कि दूसरा अर्थात सक्षम वर्ग की जिम्मेदारी यह है कि वह वंचित वर्ग को गरीबी से ऊपर लाने में सहयोगी बने।
इस तरह मोदी शासन, राजनीतिक पार्टियों और धनी वर्ग सभी की जिम्मेदारी तय करते है। नरेंद्र मोदी के शासन का यही आधार भी रहा है। सबका साथ सबका विकास की नीति को कथित धर्मनिरपेक्षता का विकल्प बनाया। यह बता दिया कि देश के मुसलमान वोटबैंक नहीं है। वह भी इंसान है। उनके जीवन की भी मूलभूत आवश्यकताएं है। सरकार का दायित्व है कि वह सभी का जीवन स्तर उठाने का प्रयास करे। यही सेक्युलरिज़्म है। मोदी की यह नीति प्रभावी और लोकप्रिय रही।