- खान-पीन में पुरानी जीवनशैली अपनाकर फिर से बना सकते हैं खुद को स्वस्थ एवं दुरुस्त
राहुल कुमार गुप्ता
भारत में कुछ सालों से लगातार ब्रेन स्ट्रोक व कार्डियक अटैक के मामलों में लगातार वृद्धि हो रही है। ये दोनों मर्ज अब कम उम्र और हर मौसम में भी देखने को मिल रहे हैं। बहुत से डॉक्टर, न्यूज चैनल, प्रिंट मीडिया, सोशल मीडिया अपने स्तर पर अनुमानतः कुछ न कुछ कारण बता रहे हैं। इन केसों में अप्रत्याशित वृद्धि भी हुई है तो भी इसमें ज्यादा पैनिक होने की जरूरत नहीं है। जरूरत है तो बस अपनी लाईफ स्टाईल को थोड़ा सा चेंज करने की। आपके और आपके अपनों के स्वास्थ्य के लिए आपसे इस नये समय की यही माँग है। अपने शरीर से व अपने स्वजनों व प्रियजनों के स्वास्थ्य के प्रति अब जिम्मेदार बनने का समय है। थोड़ा सा भय भी होना जरूरी है वास्तव में स्थितियों में तेजी से बदलाव आया है। स्वास्थ्य के प्रति थोड़ा ज्यादा सचेत होने की जरूरत है। हम फोकस इन्हीं दो बड़े मर्जों पर करते हुए चलते हैं लेकिन अन्य बहुत से मर्ज अपने आप आपका पीछा छोड़ देंगे। हम रुख करते हैं भारत की पुरानी चिकित्सा पद्धति की आयुर्वेद की ओर!
वैसे सभी चिकित्सा पद्धतियाँ अपने-अपने स्थान पर अपना-अपना महत्व रखती हैं। कोई किसी से कम या ज्यादा नहीं। हाँ! एलोपैथ इमरजेंसी में सर्वाधिक कारगर है। तो बहुत प्रकार की इमरजेंसी तक लोग न पहुंच सकें इसके लिए आयुर्वेद, होम्योपैथ और युनानी चिकित्सा पद्धतियाँ भी हैं।
ब्रेन स्ट्रोक व कार्डियक अटैक के मामलों में इस क्षेत्र के कई विशेषज्ञ एलोपैथ चिकित्सकों ने बताया कि गोल्डन ऑवर ( अटैक के बाद लगभग 4 घंटे का समय) के अंदर मरीज को सही इलाज मिल जाता है तो उसे बचाया जा सकता है। अगर लोग नियमित रूप से अपनी बीपी और लिपिड, कोलेस्ट्राल की जाँच कराते रहें और चिकित्सक के अनुसार सही दवाओं का सेवन करें तो इन दोनों ‘यमदूतों’ को मात दे सकते हैं।
इमरजेंसी और शार्ट टर्म दवाओं के लिए तो एलोपैथ सबसे कारगर है। ऐसी स्थिति में सबको एलोपैथ का सहारा लेने में कोई हिचकिचाहट नहीं होनी चाहिए। ऐसे लोग जहाँ अच्छी चिकित्सकीय सुविधाएँ नहीं हैं या जिन आम लोगों की आय इतनी नहीं है कि वो अपना चेकअप हर माह कराते रहें, डॉक्टर की फीस भरते रहें। ऐसे लोगों के साथ-साथ सभी लोगों को भी ध्यान में रखकर इस चरण पर हम बात करने वाले हैं आयुर्वेद चिकित्सा पद्धति के द्वारा ब्रेन स्ट्रोक व कार्डियक अटैक (भले ही इनके उपजने का कारण कुछ भी क्यों न हो) को पहले से ही समय रहते दूर भगाने की।
जबलपुर-कटनी से डॉ. निवेदिता सिंह व झाँसी से चिकित्सक डॉ. पवन कुमार विश्वकर्मा एसोसिएट प्रोफेसर, बुंदेलखंड राजकीय आयुर्वेदिक कॉलेज तथा डॉ. दीपा शर्मा अनुसंधान अधिकारी (आयुर्वेद) केंद्रीय आयुर्वेदिक अनुसंधान संस्थान झाँसी ने ब्रेन स्ट्रोक और कार्डियक अटैक के निदान के बारे में बताया और उसके कुछ कारणों का भी जिक्र किया।
पहले बात करते हैं कुछ कारणों पर-
बढ़ता प्रदूषण, तमाम खाद्य सामग्रियों में केमिकली मिलावट खोरी, तनावपूर्ण जीवनशैली व आराम के लिए कम वक्त मिलना, कोरोना वायरस के कारण लंग्स का कमजोर होना भी एक मुख्य वजह है, जंक फूड, रिफाईन ऑयल व कई बार के यूज आये तेल या घी से बनी सामग्री, शराब व धूम्रपान का सेवन, अपने सामर्थ्य से ज्यादा कार्य भी इस दौर में परेशानियाँ खड़ी कर रहा है, ऐसे लोगों में स्ट्रोक व अटैक के केसेज ज्यादा देखने और सुनने में आये हैं, हाई कोलेस्ट्रॉल और हाई बीपी ये कुछ मुख्य वजहें हैं जिनके कारण ऐसे केसेज बढ़ रहे हैं।
डॉ. निवेदिता सिंह ने बताया कि हमें अपनी केशिकाएं, धमनियाँ, और कोशिकाओं को मजबूत रखने के लिए नित्य सुबह शाम प्राणायाम करना चाहिए। प्राणायाम (अनुलोम-विलोम) से हमारे अंदर ऑक्सीजन का स्तर बढ़ता है जो शरीर के हर एक छोटे से छोटे अंग के लिए बहुत जरूरी है, यह ऑक्सीजन संचित ईंधन को अपघटित कर ऊर्जा बनाती है और गंदगी बाहर निकालती है। इसी ऊर्जा से सभी अंग, कोशिकाएं व धमनियाँ बेहतर कार्य करती हैं। साथ ही कुछ हल्की एक्सरसाईज या पीटी जिसमें शरीर बहुत ज्यादा न थके। योगा में सूक्ष्म योग क्रिया, भुजंगासन, शवासन इनको दिनचर्या में नियमित रखें। खाने-पीने वाली पैकेटबंद चीजों से व तनाव से जितना हो सकें उतना बचें।
झाँसी से डॉ. पवन कुमार.विश्वर्मा व डॉ. दीपा शर्मा ने बताया कि यदि अपने खान-पान और जीवनशैली में सुधार कर लिया जाये तो बहुत से मर्जों को हम अपने से हमेशा के लिए दूर रख सकते हैं। आयुर्वेद में जीवनशैली के लिए कुछ तथ्य बताये गये हैं इनको अपनाने से अचानक से होने वाले रोगों से भी बचा जा सकता है।
- दुस्साहस न करें (अपनी क्षमता से अधिक कार्य करने पर लंग्स में क्षति पैदा होती है जिससे हार्ट और ब्रेन दोनों प्रभावित हो सकते हैं।)
- अधारणीय वेगों को न रोकें (ये 13 प्रकार के होते हैं जिन्हें बिल्कुल नहीं रोकना चाहिए। इनके रोकने से शरीर रोगों का घर बन जाता है, इम्यून सिस्टम भी कमजोर हो जाता है। मल, मूत्र, गैस पास करना, निद्रा, छींक, उल्टी, जम्हाई, भूख, प्यास, अश्रु, खाँसी, श्रमश्वास, रेतज। श्रम के बाद श्वास बिल्कुल नहीं रोकना चाहिए )
- आहार (भोजन लघु और सुपाच्य हो, खाना भूख लगने पर ही खायें और भरपेट न खायें। परवल, सहजन, मूँग की दाल, हरी सब्जियां, बिना केमिकल वाले मौसमी फल, 1/2 से 1 इंच अदरक व एक आँवले का सेवन प्रति दिन किसी न किसी रूप में करना चाहिए।)
- आयुर्वेद में ऐसे ही बहुत से रसायन एवं आहार द्रव्यों का वर्णन मिलता है जिन्हें बिना चिकित्सक के सलाह के भी लोग इनकी उचित मात्रा को खाने की तरह प्रतिदिन प्रयोग कर सकते हैं। इनसे शरीर के सभी चैनल(अयनों) दुरस्त रहते हैं। जिससे शरीर पूरी तरह से स्वस्थ्य रहता है।
- राज निघंटू में पान के पत्ते को एक बेहतरीन कार्डियक टॉनिक बताया गया है। खाने के बाद पान का एक पत्ता मुलेठी, सौंफ, इलायची या बतासे के साथ प्रतिदिन लिया जा सकता है। हाँ! सुपारी,कत्था, तम्बाकू का प्रयोग न करें। ये शरीर के अंदर रक्त में थक्का बनने से भी रोकता है।
- चरक संहिता में बेर, अनार, बिजौरा नींबू को भी बेहतरीन कार्डियोटॉनिक बताया गया है। इनकी उचित मात्रा भी अन्य रसायन की भाँति 10-10 ग्राम सुबह शाम तक ले सकते हैं। इनसे भी धमनियाँ व केशिकाएं स्वस्थ एवं मजबूत रहती हैं तथा इनके अंदर ब्लड क्लाटेज बनने की गुंजाईश बहुत कम रहती है। सात तुलसी के पत्ते अपनी दिनचर्या में रोज खाने के लिए रख लें तो आयुर्वेद कहता है कि आप आकास्मिक रोगों से हमेशा बचे रहेंगे। ऋतु हरीतिकी का प्रयोग भी शरीर के लिए बहुत फायदेमंद है। मौसम के अनुसार एक हरड़ को एक अन्य पदार्थ के साथ लेना चाहिए।
- हरड़ से यदि आपको एलर्जी नहीं है तो एक हरड़ का प्रयोग दिन में एक बार लेना श्रेयस्कर है। आयुर्वेद में हरड़ का प्रयोग अलग ऋतु में अलग-अलग प्रकार से होता है।
- बारिश ऋतु में एक हर्र को सेंधा नमक के साथ लें।
- शरद ऋतु में एक हर्र को मिश्री या चीनी के साथ लें।
- हेमंत ऋतु में एक हर्र सोंठ के साथ में।
- शिशिर ऋतु में एक हर्र थोड़ी से पिपली के साथ सेवन करें।
- बसंत ऋतु में एक हर्र को शहद के साथ लें।
- एक दिन में किसी भी टाईम खाना खाने के बाद।
- ऐसा करने से हमारे शरीर में इसके अनगिनत फायदे होते हैं। इन्हें कांटीन्यू लेते रहना चाहिए। इनका कोई साइड इफेक्ट नहीं होता बल्कि ये शरीर के लगभग प्रत्येक अंग को फायदा देने का काम करते हैं।
- अदरक, अर्जुन और तुलसी का काढ़ा थोड़े दूध के साथ चाय की तरह सुबह शाम लेने से हृदय और फेफड़े मजबूत रहेंगे। इससे भी ब्लड क्लाटेज की समस्या को रोक सकते हैं।
- हम हर महीने में 10 या 15 दिन 5 से 10 ग्राम गिलोय का भी प्रयोग अपना लें। यह मस्तिष्क के साथ-साथ पूरे शरीर को स्वस्थ रखने का कार्य करता है। अश्वगंधा को भी 5-10 ग्राम प्रतिदिन लेकर अपना इम्यून सिस्टम बेहतर कर सकते हैं।
- अपने खान-पीन में प्रतिदिन 5 ग्राम तक त्रिफला व त्रिकुट (सोंठ, कालीमिर्च, पिपली) का प्रयोग कर बहुत से मर्जों से बच सकते हैं।
अगर हम अपने खान-पीन में इन सभी रसायनों को भी सम्मिलत कर लें(ये सभी सस्ते और हर जगह आसानी से मिलने वाले हैं) और उपर्युक्त जीवनशैली की प्रणाली को अपना लें तो हम इन आकास्मिक रोगों से तो बचेंगे ही और भी कई हेल्थ बेनीफिट प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से हमें मिलते रहेंगे।