हममें सत्य को स्थापित करने में अनेक चीजें सहायक हो सकती हैं। सर्वप्रथम, हमें यह समझ लेना चाहिए कि जब हम दूसरों से कुछ छिपा रहे होते हैं, उस समय परमात्मा से उसे नहीं छिपा सकते। परमात्मा सर्वज्ञ है और हमें वह हर समय देख रहा है। हम सोच सकते हैं कि परम शक्तिमान परमात्मा के पास हमारे जैसे तुच्छ जीव के विषय में सोचने के लिए समय कहां है, परंतु उसे छोटे तिनके से लेकर इस ग्रह पर विचरते विशालतम जीवों तक प्रत्येक के विषय में सब कुछ पता होता है। परमात्मा प्रत्येक जीव के भीतर विराजमान है।
डॉक्टर के पास जाने के लिए हम कितने अच्छे कपड़े पहन लें, आकर्षक दिखने का प्रयत्न करें, परंतु हम जानते हैं कि डॉक्टर की रुचि हमारे रक्तचाप, नाड़ी की गति एवं आंतरिक अंगों में ही होती है। परीक्षा देने के लिए हम कितना भी सज संवर कर विद्यालय जाएं, परंतु अध्यापक की रुचि हमारी उत्तर पुस्तिका में होती है। इसी प्रकार परमात्मा की रुचि हमारी आत्मा में, हमारे आत्मिक स्वभाव में है। यदि हम प्रभु के सम्राज्य में प्रवेश करना चाहते हैं तो हमें अपने अंदर के दाग-धब्बों को साफ करना होगा।
जिस प्रकार हम दूसरों की आलोचना करते हैं, उतनी ईमानदारी एवं गहराई से यदि अपनी आलोचना करें, कमियों को देखें तो हम उन्हें दूर कर पाएंगे। इसका अर्थ यह कदापि नहीं है कि हम स्वयं को धिक्कारते रहें या हम विषाद में डूब जाएं। हम खुले मन से अपनी गलती को स्वीकार करें, यह मानें कि गलती करना मनुष्य का स्वभाव है और स्वयं को बदलने का प्रयास करें।