नवेद शिकोह
सरकार और जनता के बीच सेतु का काम करने वाले सूचना विभाग के संयुक्त निदेशक हेमंत सिंह की कार्यकुशलता ने प्रदेश की मीडिया के हर वर्ग के बीच बेहतरीन सामंजस्य और संतुलन बना कर रखा है। कुल नियमित/सूचीबद्ध/डीएवीपी अखबारों में 95% ग़ैर ब्रॉड अखबार हैं। इसमें लघु और मझौले अखबार शामिल हैं। 95% पत्रकार भी ऐसे ही सैकेंड लाइन के अखबारों में रोज़गार से जुड़े हैं।
सरकारें हमेशां से लघु और मंझौले और कम संसाधनों वाले अखबारों को सहयोग स्वरूप विज्ञापन प्रदान करती रही हैं। भले ही इनका वास्तविक प्रसार कम हो किंतु ऐसे अखबार ही 95% पत्रकारों/अखबार कर्मियों को रोजगार देते हैं। कॉरपोरेट कल्चर पूरी तरह से भारतीय पत्रकारिता के मिशन का पालन नहीं कर सकता, ऐसे में छोटे अखबारों के पास पत्रकारिता की स्वतंत्रता का ज्यादा अवसर है।
इन तमाम सच्चाइयों को महसूस करते हुए योगी सरकार के सूचना विभाग की पॉलिसी ने कम संसाधन वाले संघर्षरत/संघर्षशील पत्र/पत्रिकाओं को मजबूत करने के लिए पूरा सहयोग देने का सिलसिला जारी रखा है। लघु और मझौले अखबारों की विशाल संख्या है। सूचना के सीमित बजट में इनको सहयोग स्वरूप समय-समय पर विज्ञापन प्रदान करना आसान नहीं था। सभी को बराबर का विज्ञापन का सहयोग देने के कठिन काम को हेमंत सिंह जैसे अफसर बखूबी निभा रहे हैं।
भारतीय जनता पार्टी ने जब जनता के भरपूर विश्वास के साथ प्रचंड बहुत से जीत हासिल कर उत्तर प्रदेश में सरकार बनायी तब से ही लगातार विरोधियों ने भ्रामक अफवाहों से सरकार को बदनाम करने के असफल प्रयास किये। जिसके तहत ये भी अफवाह उड़ी कि योगी सरकार छोटे अखबारों पर लगाम लगायेगी.. खासकर बड़ी संख्या में बढ़ चुके उर्दू के छोटे अखबारों को सरकारी सहयोग मिलना बंद हो जायेगा। किंतु इस अफवाह के विपरीत सरकार ने सब का साथ-सब का विकास की तर्ज पर प्रत्येक वर्ग और हर भाषा के छोटे-बड़े अखबारों को एक दृष्टि से देखकर सबको बराबर का सहयोग दिया।
सबका साथ-सब का विकास पर अमल करने का नतीजा ये हुआ कि योगी सरकार पर आज हर किसी का विश्वास बढ़ता जा रहा है। एक सर्वे के अनुसार संपूर्ण प्रदेश की जनता की तरह उर्दू भाषी लोग भी योगी सरकार को इंसाफपसंद हुकुमत मानने लगे हैं। अब छोटे-बड़े उर्दू अखबारात में योगी सरकार की जनकल्याण कारी योजनाओं का खूब जिक्र होता है। ताकि जनता के लिए लागू की गई योजनाओं को जानकर आम जनता उसका लाभ उठाये।