उन्नाव के बहुचर्चित अपहरण और दुष्कर्म काण्ड का फैसला आखिरकार आ ही गया जिसमें भारतीय जनता पार्टी निष्कासित विधायक कुलदीप सिंह सेंगर को दिल्ली की तीस हजारी कोर्ट ने 2017 के मामले में दोषी करार दिया है। सजा पर बहस 19 दिसम्बर को होनी है। हैदराबाद में महिला पशु चिकित्सक से दुष्कर्म के बाद उसे जलाकर मार डालने की हाल की घटना के बाद स्वाभाविक रूप से यह घटना भी लोगों की उत्सुकता का केन्द्र बनी हुई थी।
यह घटना इसलिये भी लोगों के ध्यान में खासतौर पर थी कि इसी साल जुलाई में एक सड़क दुर्घटना में पीड़िता की चाची और मौसी की मौत हो गई थी तथा वह खुद एम्स के डॉक्टरों के अथक प्रयास से बच पाई। उसका आरोप था कि यह दुर्घटना भी विधायक ने कराई है। कुल मिलाकर मामला गम्भीर था। यह मानना पड़ेगा कि फैसला अपेक्षाकृत रूप से जल्दी आ गया। यहां यह बात भी ध्यान देने की है कि जिस तरह सात साल पहले हुआ दिल्ली की निर्भया का मामला अन्तिम नहीं था, उसी तरह उन्नाव की पीड़िता का मामला भी अन्तिम नहीं है। विडम्बना तो यह है कि इस मामले के कोर्ट में होने के दौरान ही उन्नाव में एक और जघन्य काण्ड फिर हुआ।
इसके अलावा देश के अन्य भागों से भी ऐसी घटनाओं के घटने की सूचना लगातार आ रही है। इसका मतलब यह है कि दुष्कर्म की अति दुष्प्रवत्ति पर किसी भी ढंग से लगाम लगने की नौबत नहीं आ रही है
और अबोध बच्चियों तक को इसका शिकार बनाया जा रहा है। ऐसे में समाज के सामने सबसे बड़ा सवाल यह है कि आखिर देश इस दुष्प्रवृत्ति को किस तरह रोका जाय। क्या यह समाज वास्तव में संस्कारों से हीन हो चुका है, क्या हैवानियत ही इंसानों का दूसरा चेहरा बनती जा रही है, क्या समाज की न्याय व्यवस्था द्वारा दी जाने वाली सजा ऐसे अपराधियों को अब हतोत्साहित करने में अक्षम है, क्या खुद समाज में इसको लेकर कोई ऐसी जागरूकता नहीं हो सकती जो ऐसी घटनाओं की रोकथाम की दिशा में काम कर सके।
ये ऐसे सवाल हैं जिनके जवाब ही ढूंढने जरूरी नहीं हैं बल्कि उनको लागू करने की जरूरत भी है। गलत काम की सजा मिलनी ही चाहिये लेकिन कोशिश ये भी होनी चाहिये कि वैसा गलत काम दोबारा नहीं होने पाये। इस तथ्य को स्थापित करने से ही समाज को इस दुष्प्रवृत्ति के पिशाचों से छुटकारा मिल सकेगा जो तेजी के साथ आगे बढ़ रहे भारतीय समाज की सबसे बड़ी आवश्यकता है।