अलका शुक्ला
- विश्व और मानव कल्याण के लिये योग अति उत्तमकारी
- उत्तरी गोलार्द्ध में कर्क संक्रांति के कारण 21 जून होता है सबसे लंबा दिन
- योग से भी मिलता है लंबा जीवन, यही कारण बना 21 जून को ‘अंतरराष्ट्रीय योग दिवस’ का
लखनऊ, 19 जून : योग शब्द की उत्पत्ति संस्कृति के युज से हुई है, जिसका मतलब होता है आत्मा का सार्वभौमिक चेतना से मिलन। योग मात्र व्यायाम नहीं है यह शरीर के अंगों के साथ मन, मस्तिष्क और आत्मा में संतुलन बनाता है। योग से शारीरिक व्याधियों के अलावा मानसिक समस्याओं से भी निजात पाया जा सकता है। आत्मा को परमात्मा से मिलाया जा सकता है। योग का आरंभ कब से हुआ इस पर जरूर एकमत नहीं हुआ जा सकता लेकिन कहाँ हुआ इस पर सब एकमत हैं। वह महत्वपूर्ण स्थान है अपना भारत देश। उत्तर वैदिक काल के बाद से मानव समाज के लिये इस महत्वपूर्ण विषय की रूचि का ग्राफ लगातार घटता ही रहा है। आम लोगों की पहुंच से दूर ऋषि-मुनियों के सुख का कारण बना रहा। लेकिन इस देश में वो कहीं न कहीं जिंदा जरूर रहा है। किताबों से लेकर कुछ ऋषि महात्माओं तक।
योग पर हिंदूज्म का लेबल लगा होने के कारण, भारत में पुरानी सरकारों ने भी इस महत्वपूर्ण विषय को गंभीरता से कभी नहीं लिया। 2014 में भारत को एक ऐसा मजबूत प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के रूप में मिला जिन्होंने दुनिया से अदृश्य हो रहे योग को ग्लोबल करवाने में महती भूमिका निभाई। योग के ग्लोबल होने पर इसका शुभ असर संपूर्ण मानव समाज पर पड़ेगा। योग से पहले से ही सब परिचित थे लेकिन लोगों के बीच इसने भी मार्केटिंग के तरीके से प्रसिद्धि पायी। तमाम योगियों को जंगलों से निकलकर टीवी चैनलों का सहारा लेना पड़ा। जो कि आज के दौर के लिये जरूरी भी था। ऐतिहासिक दृष्टि से तो योग वैदिक और उत्तर वैदिक काल में चरम पर रहा। लेकिन हड़प्पा सभ्यता में मिली पशुपतिनाथ की योगमुद्रा की मूर्तियाँ, यह दर्शाती हैं कि योग भारत की आध्यात्मिक भूमि में वैदिक काल से पहले का ही है।
योग, व्यवस्थित रूप में यह हमें सर्वप्रथम पतंजलि के योगसूत्र में देखने को मिलता है। इस ग्रंथ में योग को चित्त की वृत्तियों के निरोध के रुप में परिभाषित किया है। ‘योगसूत्र’ न तो कोई धार्मिक ग्रंथ है और न ही यह किसी देवी-देवता पर आधारित है। यह शारीरिक योग मुद्राओं का शास्त्र भी नहीं है। इसमें चित्तवृत्ति निरोध को मन की परमावधि एकाग्रता के रुप में रेखांकित किया गया है, जो कि योग दर्शन का प्रमुख उद्देश्य भी है। पतंजलि का योगसूत्र ‘अष्टांगयोग‘ के नाम से भी जाना जाता है। यह नाम इसके आठ अंगों के नाम पर पड़ा। ये आठ अंग हैं यम, नियम, आसन, प्राणायाम, प्रत्याहार, धारणा, ध्यान एवं समाधि। ये आठ अंग लौकिक एवं अलौकिक लाभ का पथ प्रशस्त करते हैं। अहिंसा, सत्य, अस्तेय, ब्रह्मचर्य एवं अपरिग्रह ये पांच यम होते हैं। शौच, संतोष, तप, स्वाध्याय एवं ईश्वर प्राणिधान, ये पांच नियम हैं। यम का सार्वभौमिक महत्व है, क्योंकि इनके आचरण के लिए देशकाल या परिस्थितियों का कोई बंधन नहीं होता है। ये तो वे पांच महाव्रत हैं, जो कि मनुष्य और समाज दोनों का कल्याण करते हैं। जीवन को विकास के पथ पर ले जाते हैं, तो सामाजिक शुचिता को भी बनाए रखते हैं। यमों के पालन से एक सुसंस्कृत, सभ्य, परिष्कृत एवं कल्याणकारी समाज का निर्माण होता है। पाँच नियम वैयक्तिक विकास के साथ सामाजिक विकास का पथ प्रशस्त करते हैं।
द्वापर में श्रीमद्भगवद् गीता में योगेश्वर श्रीकृष्ण ने योग के विभिन्न रुपों की चर्चा करते हुए यह बताया कि योग तो जीवन की परेशानियों का समाधान है। श्रीमद्भगवद्गीता में श्रीकृष्ण ने अपने उपदेशों में 100 से अधिक बार ‘योग’ शब्द का प्रयोग किया। योग का अर्थ एवं स्वरुप अत्यंत व्यापक है। यह तो वह अनुशासन है, जो कि आत्मा को परमात्मा से जोड़ता है। योग का संबंध तो आत्मा और परमात्मा के योग या एकत्व एवं परमात्मा को प्राप्त करने के नियमों एवं उपायों से है।
योग की कुछ प्रामाणिक पुस्तकों में योग के चार प्रकारों का वर्णन मिलता है । मंत्रयोग( जिसके अंतर्गत वाचिक, मानसिक, उपांशु आर अणपा आते हैं।), हठयोग, लययोग तथा राजयोग (जिसके अंतर्गत ज्ञानयोग और कर्मयोग आते हैं।)
भारत के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने 27 सितम्बर 2014 को संयुक्त राष्ट्र महासभा में अपने भाषण में योग की महत्ता को विश्व पटल के समक्ष सरकारी तौर पर पहली बार रखा। उन्होंने कहा कि “योग भारत की प्राचीन परंपरा का एक अमूल्य उपहार है यह दिमाग और शरीर की एकता का प्रतीक है; मनुष्य और प्रकृति के बीच सामंजस्य है; विचार, संयम और पूर्ति प्रदान करने वाला है तथा स्वास्थ्य और भलाई के लिए एक समग्र दृष्टिकोण को भी प्रदान करने वाला है। यह व्यायाम के बारे में नहीं है, लेकिन अपने भीतर एकता की भावना, दुनिया और प्रकृति की खोज के विषय में है। हमारी बदलती जीवन- शैली में यह चेतना बनकर, हमें जलवायु परिवर्तन से निपटने में मदद कर सकता है। तो आयें एक अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस को गोद लेने की दिशा में काम करते हैं।”
आखिर 11 दिसंबर 2014 को संयुक्त राष्ट्र में 177 सदस्यों द्वारा 21 जून को ” अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस” को मनाने के प्रस्ताव को मंजूरी मिली। प्रधानमंत्री मोदी के इस प्रस्ताव को 90 दिन के अंदर पूर्ण बहुमत से पारित किया गया। जो कि अपने आप में एक इतिहास है। (सबसे कम समय में किसी दिवस को पारित करना।)
21 जून 2015 को पहली बार कई मुस्लिम देशों के साथ लगभग 193 देशों ने योग दिवस मनाया। आखिर योग दिवस के लिये 21 जून का ही चयन क्यों किया गया? इसके पीछे भी कुछ मजबूत तर्क हैं। विश्व की अधिकांश जनसंख्या उत्तरी गोलार्द्ध पर स्थित है। यहाँ कर्क संक्रांति 21 जून को पड़ती है जो कि इस गोलार्द्ध का सबसे बड़ा दिन है। सूर्य की सर्वाधिक ऊर्जा इस दिन इस गोलार्द्ध पर पड़ती है। कर्क संक्रांति के कारण यह दिन सबसे लंबा होता है तथा योग से भी लंबा जीवन प्राप्त किया जा सकता है। इसी कारण 21 जून को ‘अंतरराष्ट्रीय योग दिवस’ मनाया जाने लगा।
योगेश्वर श्रीकृष्ण के योग, पतंजलि के योग से हम विश्व में सकारात्मक ऊर्जा का वातावरण बना सकते हैं। जो विश्व व मानव समाज के कल्याण के लिये अति उत्तमकारी है।
Elementor #82781
ब्लॉग
क्यों बंद हो गयीं इतनी सारी पत्र -पत्रिकाएं
इंडिया