अंशुमाली रस्तोगी
मैं चीन पर एक कविता लिखना चाहता हूं। एक ऐसी कविता जिसे पढ़कर जोश आए और क्रांति का माहौल बने। चीन पर लिखी कविता के बहाने मैं दुनिया-जहान में जाना-पहचाना जाऊं। क्या प्रगतिशील, क्या वामपंथी, क्या जनवादी सब के सब मेरी कविता के आगे फीके पड़ जाएं। अखबार से लेकर फेसबुक व ट्विटर तक पर बस मेरी कविता की ही बात हो। बात ही बात में बात इत्ती दूर तलक निकल जाए कि चीन को अपने तंबू उखाड़ने पड़ें। चीनी सैनिक जमीन पर कब्जा जताने का इरादा छोड़ मेरी कविता को कब्जे में लेने की बात सोचने लगें।
चीन पर लिखी जाने वाली अपनी कविता के प्रभाव एवं प्रसिद्धि की कल्पना मैं सहज ही कर सकता हूं। लेकिन समस्या बस एक ही आड़े आ रही है कि मैं कविता कैसे और किस मूड के हिसाब से लिखूं।
दरअसल, मैं कवि नहीं हूं। और, कविता के लिए कवि होना अति-आवश्यक है। साथ-साथ जोशीले और क्रांतिकारी शब्दों पर एकाधिकार होना भी जरूरी है। चीन पर कविता ऐसी लिखी जाए कि चीनी भी पानी मांगने लगें। मगर पानी मांगने वाली ऐसी प्रभावी कविता को मैं चाहकर भी नहीं लिख पा रहा हूं।
लिखने ‘चीन पर कविता‘ बैठता हूं लेकिन बन वो व्यंग्य जाता है। न चाहते हुए भी शब्दों की अभिव्यक्ति एकदम से व्यंग्य में तब्दील हो जाती है। आप यकीन नहीं करेंगे, चीन पर कविता लिखने के वास्ते मैं पिछले दो हफ्ते से छुट्टी पर हूं। लगभग एक हफ्ते से पत्नी से बात तक नहीं की है। मेरे फेसबुक की दीवार सूनी पड़ी है और ट्विटर के ट्व्टि बंद हैं। क्या करूं, दिल-दिमाग में तो बस चीन पर कविता लिखने का जोश भरा हुआ है। अफसोस… जोश कागज तलक आ नहीं पा रहा।
कभी-कभी तो खुद के व्यंग्य-लेखक होने पर ही बहुत गुस्सा आता है। मन करता है, अपने लिखे सारे व्यंग्य रद्दी की टोकरी में डाल कहीं डूब आऊं या फिर अपने व्यंग्य-लेखक को ही गोली मार दूं। हर वक्त व्यंग्य की बात सूझना मेरे तईं अब परेशानी का सबब बनता चला जा रहा है। व्यंग्य-लेखन न हुआ जी का जंजाल हो गया।
अभी अगर मेरी जगह कोई वरिष्ठ या फिर फेसबुक कवि होता तो झण भर में चीन पर कविता लिख अपने हाथ झाड़ चुका होता। और ऐसी धांसू, जोशीली व क्रांतिकारी कविता लिखी होती कि चीन तो क्या पाकिस्तान भी भारत पर आंखें तरेरने से भय खाता। कविता लिख और फेसबुक पर डालकर कवि अब तलक न जाने कित्तों के कमेंट पा चुका होता और न जाने कित्तों को टैग कर उनका प्यारा बन चुका होता। यही होता है फेसबुक के कवि का कविता लिखने का कमाल।
मुझे लगता है, चीन पर कविता लिखने की इच्छा मेरे मन में ही दफन होकर रह जाएगी। मगर मैं प्रयासरत हूं कि ऐसा न हो। बहुत लंबी न सही पर कुछ लाइनों की ही मैं चीन पर कविता लिखूं जरूर।
व्यंग्य की धारा को छोड़ मैंने पुनः चीन पर कविता लिखने का मन बनाया है। जरा दो-चार वरिष्ठ किस्म के कवियों को पढ़कर अपने मन में थोड़ी-बहुत प्रेरणा का संचार कर लूं। या फिर कुछ फेसबुक के कवियों को पढ़ लूं। ताकि चीन पर मेरी लिखी कविता कविता ही लगे। वैसे, चीन पर लिखी मेरी कविता का लुत्फ कुछ और ही होगा, ऐसी मुझको उम्मीद है।