आस्था की फ़सल से
छंट सकेंगे कभी तो ये दिवस काले देखना।
भाग्य में होंगे हमारे भी उजाले देखना।
आज मेरी राह का श्रृंगार शूलों ने किया,
फूल महकेंगे कभी तो धूल वाले देखना।
– कमल किशोर भावुक, लखनऊ
हज़ारों ख़्वाब मरते हैं
तो इक मिसरा निकलता है,
ज़रा सोचो ग़ज़ल
कितने जनाज़ों की
कमाई है! -अनूप श्रीवास्तव