खास जानकारी:
हिन्दी की साहित्यिक पत्रिकाओं में कला लेखन की स्थिति जगजाहिर है, वैसे हिंदी कला लेखन की बात करें तो हम यह भी ठीक से नहीं जानते हैं कि इसकी शुरूआत कब और कहां से हुई। बहरहाल अगर पुरानी साहित्यिक पत्र-पत्रिकाओं की बात करें तो ऐसा लगता है कि तब की पत्रिकाओं में चर्चित कलाकारों के चित्रों का छापने के साथ साथ रेखांकन या इल्स्ट्रेशन बनवाने व कला लेखन की परिपाटी थी।


रंगीन चित्रों में प्रो. ईश्वरीप्रसादजी वर्मा के चित्र वास्तव में सुंदर तथा मनोहर होते हैं। इनकी शैली प्राय: राजपूत अथवा मुगल है। अब राजपूत अथवा मुगल शैली में भेद-भाव रखना एक प्रकार से कठिन -सा हो गया है। इसे हम लोग मिश्रित शैली कह सकते हैं। ‘माधुरी” में इनका ‘रूप-सरोवर’ नामक चित्र निकला है। वह चित्र ‘भूपति’ के एक दोहे के आधार पर बना है। इसमें संदेह नहीं कि जब कोई चित्रकार किसी कवि के भाव के अनुकूल चित्र बनाता है, तब उसकी स्वतंत्र कल्पना कुंठित हो जाती है, और उसे किसी निश्चित वृत्त की परिधि के भीतर से होकर ही चलना पड़ता है। तथापि यह चित्र सुंदर है। प्रो. वर्माजी के चित्र नारायण से बहुत अच्छे होते हैं। इनके चित्र अत्यंत ही अधिक सुंदर होते हैंं। रंगों की मिलावट भी इनकी बड़ी सुंदर होती है। ‘माधुरी” में ‘बसंत-राग’ नामक इनका चित्र वास्तव में बड़ा सुंदर है। उसमें रंगों की योजना बड़ी प्रशंसनीय है।
बताते चलें कि श्री दुलारेलाल भार्गव द्वारा संपादित इस पत्रिका का यह अंक अगस्त-जनवरी 1934-35 का है।
– सुमन सिंह की वॉल से