डॉ दिलीप अग्निहोत्री
मानव सभ्यता के विकास काल में ही भारतीय ऋषियों ने वसुधैव कुटुम्बकम और सर्वे भवन्तु सुखिनः की कामना की थी। यह भारतीय चिंतन और मूल प्रवृत्ति के रूप में स्थापित हुआ। दुनिया में सभ्यताओं के संघर्ष चले, विस्तारवाद और अपने मत के प्रचार हेतु हिंसा का सहारा लिया गया। लेकिन भारत ने शांति सौहार्द के मार्ग को नहीं छोड़ा। सभी मत, पंथों को सम्मान दिया। लेकिन स्वार्थ, विस्तार और व्यापार के मद्देनजर घातक हथियारों के जखीरे बनने लगे। मानवता के समक्ष बड़ा संकट है।
इसके बाबजूद भारत ने अपना शांति मार्ग नहीं छोड़ा। केवल भारतीय संविधान में ही विश्व शांति के प्रयासों की पैरवी की गई है। इसी के अनुरूप लखनऊ की सीएमएस संस्था अभियान चला रही है। जगदीश गांधी और भारती गांधी के संयोजकत्व में सैकड़ो देशों के न्यायधीश लखनऊ में प्रतिवर्ष आयोजित होने वाले सम्मेलन में आते है। विचार विमर्श करते है। यहां के सन्देश को वह अपने देशों और संयुक्त राष्ट्र संघ तक पहुंचाते है। इसके पहले यह विषय केवल उच्च स्तर तक सीमित रहता था। लेकिन नया प्रयोग यह हुआ कि अब बच्चे अपने भविष्य को सुरक्षित रखने की गुहार लगाते है।
सम्मेलन का समापन लखनऊ घोषणापत्र जारी करने के साथ हुआ। न्यायविदों ने आतंकवाद, परमाणु हथियार, ग्लोबल वार्मिंग आदि पर काबू पाने हेतु सामूहिक प्रयास पर जोर दिया है ताकि विश्व के ढाई अरब बच्चे व भावी पीढियां शान्ति व सुरक्षा के साथ रह सकें। लखनऊ घोषणा पत्र में मूलभूत अधिकारों, सभी धर्मो का आदर करने एवं विद्यालयों में शान्ति व एकता की शिक्षा देने के लिए भी कहा गया है। न्यायविदों ने संकल्प व्यक्त किया कि वे अपने देश जाकर अपनी सरकार के सहयोग से इस मुहिम को आगे बढायेंगे जिससे विश्व के सभी नागरिकों को नवीन विश्व व्यवस्था की सौगात मिल सके और प्रभावशाली विश्व व्यवस्था कायम हो सके।
मानव जाति का बहुत बड़ा वर्ग मूलभूत मानवीय अधिकारों से वंचित हैं एवं अत्यन्त गरीबी की दशा में है तथा विश्व के करोड़ों बच्चे विभिन्न प्रकार के बाल दुर्व्यवहारों का शिकार हो रहे हैं, साथ ही शिक्षा, स्वास्थ्य, स्वच्छता, स्वच्छ जल, मकान एवं कपड़े आदि के मूलभूत अधिकारों से वंचित हैं। यह मानते हुए कि सतत विकास के लिए विश्व शान्ति अत्यन्त आवश्यक है, जिससे आज के वैश्विक युग में विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी के लाभ गरीब और पिछड़े वर्ग तक पहुँच सके।
इस बात को समझते हुए कि यह शताब्दी नई समस्याओं के साथ ही धार्मिक व जातीय आकांक्षाओं पर आधारित लड़ाई-झगड़ों का सामना कर रही है, जिससे आतंकवाद व धर्मान्धता बढ़ रहा है एवं आम जनता, सम्पत्ति व प्रकृति के लिए खतरा पैदा हो गया है। इसके साथ ही, राजनेताओं द्वारा परमाणु युद्ध के भय व तनाव ने स्थिति और खराब कर दी है।
यह मानते हुए कि संयुक्त राष्ट्र संघ अकेली बड़ी संस्था है, जो लोगों में शान्ति, सामाजिक उत्थान, मानवीय अधिकार, विकास, पर्यावरणीय समस्याओं, जलवायु परिवर्तन एवं अन्य क्षेत्रों में कार्य कर रही है, किन्तु इसमें ठोस कार्य करने की क्षमता व अधिकारिता की कमी है जिससे आम सभा के निर्णयों को लागू किया जाए।
विश्व में व्याप्त तनाव, समस्याओं व अन्य मामलों की भयावहता को देखते हुए व इस सम्मेलन के प्रतिभागियों के सामूहिक इच्छा के चलते आगामी वर्ष में जल्द से जल्द विश्व के सभी देशों के प्रमुखों व सरकारों के प्रमुखों की एक बैठक बुलाई जाए जो विभिन्न मुद्दों पर विचार करके एक विश्व संयुक्त राष्ट्र संघ से अनुरोध किया जाये कि राष्ट्राध्यक्षों तथा शासनाध्यक्षों के साथ उन सामाजिक और आर्थिक समस्याओं के समाधान के लिए कार्य करें, जिनसे आतंकवाद और अतिवाद में वृद्धि होती है और उस असहिष्णुता का समाधान खोजें जो कि धार्मिक व राजनैतिक मतभेदों के कारण उत्पन्न होती है एवं कानून का राज, मानवाधिकार तथा धार्मिक स्वतन्त्रता का अधिकार सुनिश्चित करें।
संयुक्त राष्ट्र संघ से प्रार्थना की जाए कि वर्तमान में घातक परमाणु बमों के निर्माण वितरण व रख रखाव में खर्च की जा रही धनराशि व साधनों का उपयोग विकास कार्यों व मानवता के हित में किया जा सके। शिक्षा व सांस्कृतिक सूझबूझ की शिक्षा विश्व के सभी स्कूलों में अनिवार्य रूप से दी जाए क्योंकि यह शांतिपूर्ण भविष्य के लिए आवश्यक है। इस घोषणा पत्र को सभी देशों व सरकारों के प्रमुखों व मुख्य न्यायाधीशों के साथ-साथ संयुक्त राष्ट्र संघ के महासचिव को भेजा जाएगा।
इस अन्तर्राष्ट्रीय सम्मेलन में उन्नीस देशों के प्रधानमंत्री, राष्ट्रपति, गवर्नर-जनरल, संसद के स्पीकर, न्यायमंत्री, अंतरराष्ट्रीय न्यायालय के न्यायाधीश एवं विश्व प्रसिद्ध शान्ति संगठनों के प्रमुखों समेत इकहत्तर देशों के तीन सौ सत्तर से अधिक मुख्य न्यायाधीश, न्यायाधीश व कानूनविद शामिल हुए। इतने देशों की न्यायपालिका,कार्यपालिका और व्यवस्थापिका के प्रमुख लोगों का इस सम्मेलन में शामिल होना अभूतपूर्व है। अनुच्छेद इक्यावन अंतर्राष्ट्रीय शांति और सुरक्षा की अभिवृद्धि की कामना भी करता है।
अनेक सत्रों का आयोजन किया गया। एजूकेशन फाॅर प्रमोटिंग वर्ल्ड यूनिटी एण्ड वर्ल्ड पीस, इस्टेब्लिसिंग रूल आॅफ लाॅ, ह्यूमन राइट्स, ग्लोबल गवर्नेन्स स्ट्रक्चर टैकलिंग ग्लोबल इश्यूज एवं सस्टेनबल डेवलपमेन्ट आदि विषयों पर विचार-विमर्श का दौर चला। रोल आॅफ स्कूल्स एण्ड यूनिवर्सिटीज इन प्रमोटिंग ए कल्चर आॅफ यूनिटी एण्ड पीस कन्टेन्ट आॅफ एजूकेशन फाॅर द ट्वेन्टी फस्ट सेन्चुरी दैट शैल डिलीवर यूनिटी एण्ड पीस आर्गनाईजेशनल एण्ड मेथेडोलाॅजिकल प्रिन्सिपल्स फाॅर एजूकेशन सिस्टम फाॅर पीस’, लाॅ कोर्ट्स एण्ड रिलीजन’ एवं लाईफलाॅंग लर्निंग एण्ड एजूकेशन आॅफ यूथ फाॅर पीस’ विषयों पर विचार-विमर्श हुआ।
ग्लोबल गवर्नेन्स स्ट्रक्चर’ थीम पर आयोजित पैरालल सेशन में यू.एन. रिफार्म, नीड फाॅर ए न्यू वर्ल्ड आर्डर आन डेमोक्रेटिक लाइन्स स्ट्रक्चर आॅफ ग्लोबल डेमोक्रेसी,रोल आॅफ यूथ इन सोशल ट्रान्सफार्मेशन आदि विषयों पर व्यापक चर्चा-परिचर्चा हुई तो वहीं दूसरी ओर टैकलिंग ग्लोब इश्यूज थीम के अन्तर्गत रीजनल एण्ड इण्टरनेशनल टेरोरिज्म, एथनिक एण्ड सिविल वार, जेनोसाइड बाई मिसगाइडेड फोर्सेज’, न्यूक्लियर प्रोलिफिरेशन एण्ड डिसआर्मामेन्ट’, कान्फ्लिक्ट रेजोल्यूशन एवं रिफ्यूजी प्राब्लम पर चर्चा हुई। इसी प्रकार इस्टेब्लिशिंग रूल आॅफ लाॅ हयूमन राइट्स एवं सस्टेनबल डेवलपमेन्ट आदि थीम पर भी पैरालल सेशन्स आयोजित हुए। घाना की संसद के अध्यक्ष प्रो. एरोन माइकल ओक्याए ने कहा कि शिक्षा का अधिकार सभी बच्चों को मिलना ही चाहिए।
उन्हें सुरक्षित एवं सुखद वातावरण प्रदान करना हम वयस्क लोगों का कर्तव्य है, ये वो स्वयं से नहीं पा सकते। हमें अल्प सुविधाप्राप्त बच्चों की तरफ विशेष ध्यान देना होगा। विश्व के सभी बच्चों की जरूरतें समान होती हैं जैसे कि शिक्षा, सुरक्षा इत्यादि। यदि समाज विघटित होता है, तो बच्चे सबसे अधिक प्रभावित होते हैं। नाईजर कान्स्टीट्शनल कोर्ट के वाइस प्रेसीडेन्ट न्यायमूर्ति प्रो. नरे ओमारू ने कहा कि विश्व संसद सम्भव है लेकिन अन्तर्राष्ट्रीय कानून के नियमों को सामाजिक मानदण्डों के रूप में परिवर्तित किया जाना चाहिए जो कि सामाजिक राज्य बनाने वाले सभी राज्यों, व्यक्तियों और कानूनी संगठनों पर लागू हो। बेनिन सुप्रीम कोर्ट के प्रेसीडेन्ट डा. ओस्मान बटोको ने कहा कि बच्चों का हित सभी संस्थाओं का मुख्य मुद्दा होना चाहिए क्योंकि धरती की भलाई उन्ही के सुरक्षित भविष्य द्वारा सुनिश्चित की जा सकती है।
विश्व शांति के ऐसे प्रयास सराहनीय कहे जा सकते है। सैकड़ों देशों के न्यायधीश भारतीय विचारों से परिचित होते है। उन्हें केवल इन्हीं विचारों में ही समाधान नजर आता है। इसमें बच्चे भी सहभागी होते है। इस कारण अलग ढंग का माहौल बनता है।
2 Comments
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