सिलसिला शुरू होता है 14 अप्रैल 1984 से, मायावती को कमान मिली । 14 अप्रैल 1984 को कांशीराम ने बहुजन समाज पार्टी बना ली थी। मायावती की उस वक्त पार्टी में नंबर दो की पोजिशन थी। पार्टी के विस्तार के लिए जन जागरण अभियान शुरू किया गया था। इसकी कमान मायावती संभाल रही थीं। हर दिन कभी पैदल तो कभी साइकिल से कई-कई रैलियां करती थीं।
रैली में पहुंची तो भीड़ इंतजार कर रही थी
1986 में 30 साल की मायावती एक सभा को संबोधित करने हरिद्वार पहुंची थी। उस वक्त हरिद्वार यूपी का ही हिस्सा था। वहां उन्होंने जो भाषण दिया, वह इतना ऐतिहासिक था कि सारे दलित और पिछड़ा वर्ग के लोग जुट गए। मायावती ने पांच सवाल पूछा और फिर उसके जवाब दिए। नतीजा ये रहा कि वह 1989 का लोकसभा चुनाव जीत गई। बसपा का वोट शेयर बीजेपी से बढ़ गया। आइए एक-एक करके जानते हैं।
1: क्या कोई ऐसा दलित है जो कांग्रेस सरकार में फला-फूला हो
मायावती की जिंदगी पर बहनजी किताब लिखने वाले अजय बोस लिखते हैं, “मायावती ने मुख्य रूप से दलित जनता और परम्परा से कांग्रेस के वोट दाताओं के सामने एक सवाल खड़ा करके भाषण की शुरूआत की।” वह पूछती थीं, “क्या आप लोग मुझे ऐसे दलित व्यक्ति का नाम बता सकते हैं जो पिछले 40 सालों में कांग्रेस सरकार की आर्थिक योजनाओं के कारण फला-फूला हो?”
सवाल का जवाब देने की बारी आई तो जनता चुप हो गई। क्योंकि उसे आसपास कोई ऐसा दिखा ही नहीं जिसे आर्थिक योजनाओं का लाभ मिला हो। मायावती कहतीं, “तो तुम मानते हो कि कांग्रेस ने दलितों को मूर्ख बनाया?” यहां जनता पहले संकोच दिखाई फिर बोल देती, “हां, कांग्रेस ने हम सबको मूर्ख बनाया।”
मायावती अपने भाषण के जरिए कांग्रेस पर हमला करती और जनता तालियां पीटने लगती थी।
2: 22 राज्यों में कांग्रेस की सरकार पर एक भी दलित सीएम नहीं
अजय लिखते हैं, मायावती ने इसके बाद दूसरा सवाल पूछा, “1952 के पहले चुनाव के बाद से हर चुनाव में कांग्रेस के 95% वोट दलितों के होते हैं और सिर्फ 5% वोट ब्राह्मणों के, पर कांग्रेस शासित राज्यों में या फिर केंद्र में 5% दलित मंत्री होते हैं और 55% ब्राह्मण मंत्री। देश के 22 राज्यों के मुख्यमंत्रियों में एक भी दलित नहीं है। तुम्हारे ख्याल से ऐसा क्यों हैं?” भीड़ चिल्लाते हुए बोली, “आप ठीक कहती हैं, कांग्रेस ने हमें मूर्ख बनाया।”
3: ऊंची जाति वाले नहीं चाहते दलित अच्छा खाए
मायावती ने जोश से भर चुकी भीड़ के सामने कहा, “हम सब जानते हैं कि ये ऊंची जाति के मनुवादी नहीं चाहते कि दलित अच्छा खाए, अच्छे कपड़े पहने और अच्छा काम करे। तो क्या कोई ऐसी मशीन राज्य में या केंद्र में ऐसी बनाई जा सकती है जो इन ऊंची जाति वाले लोगों और मंत्रियों का हृदय परिवर्तन कर दे जिससे यह दलितों को फलने-फूलने में मदद करें?” भीड़ ने पहले सिर हिलाया और मायावती की बात खत्म होते ही चिल्लाकर बोली, नहीं, यह नामुमकिन है, वे हमसे नफरत करते हैं, वे कभी हमारी भलाई नहीं चाहेंगे।”
4: बाबा साहेब किसी मनुवादी संगठन में शामिल होते तो क्या कुछ कर पाते
मायावती ने जनता को बताया कि आज दलितों में भी डॉक्टर, इंजीनियर, आईएएस अफसर हैं। हमें इसके लिए बाबा साहेब अम्बेडकर को धन्यवाद देना चाहिए। भीड़ की तरफ इशारा करते हुए उन्होंने कहा, “तुम क्या सोचते हो कि यदि बाबा साहेब अपना संगठन न बनाकर किसी मनुवादी पार्टी में शामिल हो जाते तो दलितों के लिए इतना कुछ कर पाते?”
जनता न में सिर और हाथ हिलाने के लिए एकदम तैयार बैठी थी। भीड़ से जवाब आया, कभी नहीं, वे लोग बाबा साहेब अम्बेडकर को कभी भी ऐसा नहीं करने देते।
5: क्या नहीं चाहते कि दमन और शोषण झेल रहे दलितों के लिए अलग पार्टी बनाई जाए
30 साल की मायावती अब निर्णायक बात करने के मोड में आ चुकी थी। उन्होंने कहा, “क्या अब तुम लोग यह नहीं चाहते कि आबादी के ये 85% लोग जिनका दमन और शोषण हो रहा है वह एक अलग पार्टी बनाएं? क्या तुम्हें उस दिन का इंतजार नहीं जब ये बहुसंख्यक लोग अपने हाथ में सत्ता लेकर अपने भाग्य का परिवर्तन करें?”
मायावती के इस आखिरी सवाल के बाद जनता ने नारा लगाना शुरू कर दिया। नारे थे,
कांशीराम तुम संघर्ष करो, हम सब तुम्हारे साथ हैं।
मायावती तुम संघर्ष करो, हम तुम्हारे साथ हैं।
कांशीराम और मायावती ने दलित वर्ग के वोट को एकजुट किया। मुस्लिमों को भी अपने साथ जोड़ा और सरकार बना ली।
मायावती के इस भाषण के बाद जब उनकी सराहना हुई तो वह दोगुनी ऊर्जा के साथ पार्टी के विस्तार में लग गई। 15 अगस्त 1987 को दिल्ली की जामा मस्जिद पर भारी भीड़ के सामने उन्होंने भाईचारा बनाओ कार्यक्रम किया।
मुस्लिमों से अपील की कि वह दलित-पिछड़ी जातियों के गठबंधन में शामिल हो जाएं। इसके लिए उन्होंने कहा, 1947 से पहले देश में 33% मुस्लिमों के पास नौकरी थी, आज महज 2% नौकरी है।