नई दिल्ली, 11 अप्रैल, 2021: धर्म परिवर्तन और काला जादू के खिलाफ दाखिल एक याचिका पर सुप्रीम नाराजगी जताते हुए सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि ये किस तरह की याचिका है? हम आप पर जुर्माना लगा देंगे। ये नुकसान पहुंचाने वाली याचिका है। सुप्रीम कोर्ट की नाराजगी के बाद याचिकाकर्ता ने याचिका वापस ले ली है।
ज्ञात रहे कि सुप्रीम कोर्ट में एक याचिका दायर की गई थी, जिसमें अंधविश्वास, काले जादू तथा अवैध और जबरन धर्मांतरण पर रोक लगाने की मांग की गई है। जस्टिस आर।एफ। नरीमन ने कहा, “18 वर्ष से ऊपर के व्यक्ति को अपना धर्म चुनने की अनुमति क्यों नहीं दी जा सकती है? यही कारण है कि संविधान में प्रचार शब्द का इस्तेमाल किया गया है।” इस याचिका में केंद्र सरकार और राज्य सरकारों को अवैध धर्म परिवर्तन और काले जादू के चलन को रोकने के लिए निर्देश देने की मांग की गई थी। भाजपा नेता और वकील अश्विनी उपाध्याय ने ये याचिका दाखिल की है।
याचिका में कहा गया है कि जबरन धर्म परिवर्तन और इसके लिए काले जादू के इस्तेमाल पर रोक लगाई जानी चाहिए। धर्मांतरण के लिए साम, दाम, दंड, भेद का उपयोग किया जा रहा है। यह सब देश भर में हर हफ्ते हो रहा है जिसे रोकने की जरूरत है। इस तरह के रूपांतरणों के शिकार गरीब तबके के लोग होते हैं, उनमें से ज्यादातर सामाजिक और आर्थिक रूप से पिछड़े हैं और विशेष रूप से एससी और एसटी वर्ग के हैं। इस तरह, अंधविश्वास, काला जादू और अवैध रूप से धर्म परिवर्तन संविधान के अनुच्छेद 14, 21 और 25 का उल्लंघन करता है।
याचिका में कहा गया है कि यह समानता के अधिकार, जीवन के अधिकार और धार्मिक स्वतंत्रता के अधिकार में हस्तक्षेप करता है। हमारा संविधान धर्मनिरपेक्ष है और यह संविधान का एक अभिन्न अंग है और उपरोक्त रूपांतरण और काला जादू आदि का अभ्यास भी धर्मनिरपेक्ष सिद्धांत के खिलाफ है।
याचिका में कहा गया है कि अनुच्छेद 25 धार्मिक स्वतंत्रता का अधिकार देता है। यह बताता है कि सभी नागरिकों को अपने धर्म का अभ्यास करने और धार्मिक अभ्यास करने का समान अधिकार है। यह निर्धारित करता है कि सार्वजनिक व्यवस्था, नैतिकता और स्वास्थ्य पर प्रतिकूल प्रभाव नहीं होना चाहिए।