एक राजा था उसका एक लड़का था। राजा जितना अच्छा था, लड़का उतना ही बुरा था। वह राजा को सताता था। राजा ने उसे बहुत समझाया लेकिन वह नहीं माना, राजा ने दुखी होकर समस्या अपने एक गुरु बताई। गुरु ने कहा तुम उसे मेरे पास भेज दो! राजा ने वैसा ही किया। उसने लड़के को गुरु के पास भेज दिया।
गुरु ने बड़े प्रेम से उसका स्वागत किया और फिर उसे अपने साथ लेकर एक बाग में गए। वहां उन्होंने उसको विभिन्न प्रकार के 4 पौधे दिखाएं। उनमे एक पौधा एक फुट का था। दूसरा तीन फुट का था। तीसरा छै फुट का था, और चौथा बारह फुट का था।
गुरु ने कहा बेटे तुम पहले पौधे को उखाड़ दो। लड़के ने पौधे को एक हाथ से पकड़कर सहज ही उखाड़ दिया। इसी तरह लड़के ने दो पौधों को एक हाथ से उखाड़ डाला था। गुरु ने कहा -अब तीसरे को देखो और इसे भी उखाड़ दो। लड़के को तीसरे पौधे में काफी खींचतान भी करनी पड़ी, लेकिन उसने तीसरा पौधा भी उखाड़ दिया। गुरु ने कहा -शाबाश! अब इस चौथे पौधे को भी उखाड़ कर दिखाओ?
लड़के ने चौथे पौधे को दोनों हाथों से पकड़ा और जोर लगाया, लेकिन पौधा नहीं उखड़ा। लड़का बोला महाराज यह मुझसे नहीं उखड़ रहा है! तब गुरु ने जवाब दिया बेटे, जब हम किसी बुरी आदत में पड़ते हैं तो शुरू -शुरू में उसे दूर करना आसान होता है लेकिन जब हम उस आदत को छोड़ते नहीं तो उसकी जड़ें बहुत गहरी हो जाती हैं! और उसे इस चौथे पौधे की तरह करना कठिन हो जाता है अब लड़के ने समझा कि गुरुजी का सबसे बड़ा तात्पर्य कहने का क्या था। उस दिन से उसका स्वभाव बदल गया और राजा का कष्ट दूर हो गया।