संस्कृति विभाग और रानावि के सहयोग से हो रहा ‘आजादी की दीवानी दुर्गा भाभी’ का मंचन
लखनऊ, 13 अक्टूबर। सीने में देश आजाद कराने की धधकती आग लिए शहीदे आजम भगत सिंह सरीखे क्रान्तिकारियों की सहयोगी रही दुर्गा भाभी की जीवन गाथा यहां 15 अक्टूबर को संत गाडगेजी महाराज प्रेक्षागृह गोमतीनगर के मंच पर रंगप्रेमियों को रोमांचित करेगी। नाम से ही नहीं काम से भी दुर्गा स्वरूपा क्रान्तिकारी की कहानी ‘आजादी की दीवानी दुर्गा भाभी’ नाट्य रूप में अक्षयवर नाथ श्रीवास्तव के लेखन-निर्देशन में दिल्ली-गाजियाबाद के कलाकार संस्कृति विभाग उत्तर प्रदेश व अवसर ट्रस्ट के सहयोग से थर्टीन्थ स्कूल ऑर टैलेण्ट डेवलपमेण्ट के कलाकार प्रस्तुत करेंगे।
विशाल सेट वाली इस रंग प्रस्तुति के बारे में लेखक-निर्देशक अक्षयवर नाथ ने बताया कि 13 वर्श की उम्र में क्रान्तिकारी पति भगवतीचरण वोहरा के साथ आज़ादी के लड़ाई में कूद गयी दुर्गादेवी को क्रान्ति के इतिहास में वो स्थान नहीं मिला, जो मिलना चाहिए था। उनद का जन्म सात अक्टूबर 1907 को हुआ और 15 अक्टूबर को 92 वर्श की अवस्था में उनका निधन गाजियाबाद में हुआ। दुर्गा भाभी के सम्बंध में उन्होंने उनके परिवारीजनों से मिलकर साढ़े तीन साल तक गहन शोध करने के उपरांत खोजे तथ्यों के आधार पर नाटक को राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय के सहयोग से तैयार किया है। उनकी पुण्य तिथि पर मंचित होने वाले केवल डेढ़ घण्टे के दिल्ली और पटना में मंचित हो चुके इस नाटक में 35 कलाकारों की लम्बी चौड़ी फौज है और हमारी टीम की कोशिश रही है कि नाटक रुचिकर और दर्शनीयता भरा रहे, इस लिहाज से प्रस्तुति में ऐतिहासिक तथ्यों के साथ ही गीत-संगीत, संवाद सहित सभी रंग पक्षों का बेहतर तालमेल बनाया गया है। गीत डा.चेतन आनंद और संगीत संकल्प श्रीवास्तव का है। दृश्यबंध और प्रकाश परिकल्पना राघव प्रकाश और दिव्यांग श्रीवास्तव का रूपसज्जा हरि सिंह खोलिया की और कला निर्देशन प्रखर श्रीवास्तव का है।
दुर्गा भाभी के भतीजे के पुत्र के नाते से पौत्र कहलाने वाले रिजर्व बैंक के पूर्व अधिकारी जगदीश भट्ट ने बताया कि क्रान्ति में अविस्मरणीय योगदान देने वाली दुर्गादेवी की कर्मभूमि लखनऊ भी रही है। उन्होंने सदर में आज लखनऊ माण्टेसरी इण्टर कालेज के नाम से प्रसिद्ध ये स्कूल नजीराबाद के एक निजी मकान में उत्तर भारत के पहले मांटेसरी स्कूल के तौर पर पिछड़े वर्ग के पांच छात्रों के साथ खोला। लगभग 42 वर्षों तक कुशल संचालन करने के बाद अस्वस्थता के कारण 1983 में विद्यालय को ट्रस्ट को सौंपकर पुत्र शचीन्द्र के पास गाजियाबाद रहने लगीं थीं। 19 दिसंबर, 1928 को जब भगत सिंह, सुखदेव और राजगुरु ने लाला लाजपत राय जी की हत्या का बदला लेने के लिए असिस्टेंट पुलिस अधीक्षक जॉन सॉण्डर्स की हत्या कर दी तब ’दुर्गा भाभी’ ने समाज की परवाह किए बिना अपने 03 साल के बेटे को साथ लेकर भगत सिंह को अपना पति और राजगुरु को परिवार का नौकर बनाकर उन्हें अंग्रेज सिपाहियों की नजरों से बचाकर कलकत्ता पहुंचाया। चंद्रशेखर आजाद के आखिरी वक्त तक साथ रही बमतुल बुखारा पिस्तौल दुर्गा भाभी ही लाई थीं।
उन्होंने पिस्तौल चलाने का प्रशिक्षण लाहौर व कानपुर में लिया था। उसी वर्ष 9 अक्टूबर, 1930 को ’दुर्गा भाभी’ ने दक्षिण बॉम्बे मैं लैमिंगटन रोड पर गवर्नर हैली पर गोली चलाई, जिसमें गवर्नर हैली तो बच गया, किंतु उसके साथ खड़ा हुआ एक ब्रिटिश सैनिक अधिकारी टेलर घायल हो गया। मुंबई के पुलिस कमिश्नर को भी ’दुर्गा भाभी’ में गोली मारी थी। बाद में मुंबई के एक फ्लैट से दुर्गा भाभी और साथी यशपाल को गिरफ्तार कर जेल हुई। ऐसी अनगिनत कथाएं हैं, उम्मीद है इनमें से कई नाटक में दिखेंगी।