सुनहरी यादें : सुशील कुमार
‘पल पल दिल के पास” जी हाँ किशोर कुमार जी आज भी लोगों के पल पल दिल के पास रहते हैं। आज चाहे यूट्यूब हो, रेडियो, म्यूजिक सिस्टम, शादी बारात हर जगह किशोर कुमार के सुरीले गानो की धूम सुनाई देती है वह एक ऐसे कम्पलीट एक्टर सिंगर थे जो कभी ख़त्म न होने वाला अपना एक दौर बना गए। नए उभरते सिंगर के लिए तो ऐसी प्रेरणा हैं जो युगों युगों तक उनकी प्रेरणा बने रहेंगे । आज हम ऐसे ही महान गायक के बारे में जानेगें।
4 अगस्त 1929 – 13 अक्टूबर 1987
दोस्तों, किशोर कुमार, जिनका असली नाम आभास कुमार गांगुली था, भारतीय सिनेमा के सबसे प्रतिभाशाली और बहुमुखी कलाकारों में से एक थे। उनका जन्म 4 अगस्त 1929 को मध्य प्रदेश के खंडवा में एक बंगाली परिवार में हुआ था। संगीत, अभिनय और हास्य के क्षेत्र में उनकी अनूठी प्रतिभा ने उन्हें एक अमिट पहचान दी। 13 अक्टूबर 1987 को हृदय गति रुकने से उनका निधन हो गया, लेकिन उनकी आवाज आज भी लाखों दिलों में गूंजती है।
किशोर कुमार बचपन से ही शरारती और हंसमुख थे। एक बार खेलते हुए उनके पैर में चोट लगी, और वे जोर-जोर से रोने लगे। उनकी इस रोने की आवाज को सुनकर उनके बड़े भाई अशोक कुमार ने कहा कि इसमें संगीत है। यह एक संयोग था कि उनकी इस “आवाज” ने बाद में उन्हें गायक बनाया। वे के.एल. सहगल की नकल करने में माहिर थे, जिसने उनकी गायकी की नींव रखी।
करियर की शुरुआत :
किशोर कुमार के पिता कुंजीलाल गांगुली खंडवा के एक प्रसिद्ध वकील थे, और बड़े भाई अशोक कुमार पहले से ही हिंदी फिल्म उद्योग में स्थापित अभिनेता थे। किशोर ने इंदौर के क्रिश्चियन कॉलेज में पढ़ाई की, जहाँ उनकी शरारती और हंसमुख स्वभाव की झलक दिखती थी। संगीत के प्रति उनकी रुचि बचपन से थी, और वे गायक के.एल. सहगल के बहुत बड़े प्रशंसक थे। उनके करियर की शुरुआत 1946 में फिल्म “शिकारी” से एक अभिनेता के रूप में हुई, लेकिन उनकी पहचान गायकी से बनी। पहला गाना उन्होंने 1948 में फिल्म “जिद्दी” में गाया, जो संगीतकार खेमचंद प्रकाश के निर्देशन में था।
”रूप तेरा मस्ताना” ने पहुँचाया बुलंदियों पर :
किशोर कुमार ने अपने अनोखे अंदाज से हिंदी फिल्म संगीत को नई दिशा दी। शुरू में संगीतकार उन्हें हल्के-फुल्के गीतों के लिए इस्तेमाल करते थे, लेकिन 1957 में फिल्म “फंटूश” के गीत “दुखी मन मेरे” ने उनकी गंभीर गायकी की क्षमता को साबित किया। इसके बाद एस.डी. बर्मन और आर.डी. बर्मन जैसे दिग्गज संगीतकारों ने उन्हें बड़े मौके दिए। 1969 में फिल्म “आराधना” के गीतों “मेरे सपनों की रानी” और “रूप तेरा मस्ताना” ने उन्हें शोहरत की बुलंदियों पर पहुँचाया। उनकी आवाज में जोश, मस्ती और भावनाओं का ऐसा मिश्रण था कि वे हर पीढ़ी के पसंदीदा बन गए।
किशोर ने हिंदी के अलावा बंगाली, मराठी, गुजराती, भोजपुरी, और कई अन्य भाषाओं में गीत गाए। अनुमान है कि उन्होंने अपने करियर में 2700 से अधिक गाने रिकॉर्ड किए। वे 8 बार सर्वश्रेष्ठ पार्श्वगायक का फिल्मफेयर पुरस्कार जीतने वाले पहले गायक बने, जो उनकी लोकप्रियता और प्रतिभा का प्रमाण है।
अभिनय और व्यक्तित्व :
- किशोर कुमार केवल गायक ही नहीं, बल्कि एक बेहतरीन अभिनेता, निर्देशक और निर्माता भी थे। फिल्मों जैसे “चलती का नाम गाड़ी”, “पड़ोसन”, और “हाफ टिकट” में उनकी हास्य प्रतिभा ने दर्शकों को खूब हंसाया। उनकी फिल्म “झुमरू” में उन्होंने अभिनय के साथ-साथ संगीत भी दिया। उनका व्यक्तित्व उतना ही रोचक था जितना उनकी कला। वे अपनी जन्मभूमि खंडवा से गहरा लगाव रखते थे और अक्सर कहते थे, “किशोर कुमार खंडवे वाला।”
- किशोर कुमार ने चार शादियाँ कीं। उनकी पहली पत्नी रुमा घोष (1950-1958), दूसरी मधुबाला (1960-1969), तीसरी योगिता बाली (1976-1978), और चौथी लीना चंदावरकर (1980-1987) थीं। मधुबाला के साथ उनकी प्रेम कहानी और शादी खूब चर्चा में रही। उनके बेटे अमित कुमार भी गायक बने।
- किशोर कुमार की आवाज आज भी उतनी ही ताज़ा और जादुई लगती है। उनके गीत हर मौके पर सुने जाते हैं – प्यार, दुख, खुशी या मस्ती में। मध्य प्रदेश सरकार ने उनके सम्मान में “किशोर कुमार पुरस्कार” शुरू किया। वे एक ऐसे कलाकार थे जिन्होंने अपनी सादगी, मस्ती और प्रतिभा से भारतीय सिनेमा को समृद्ध किया।
- किशोर कुमार का जीवन जितना रंगीन उनकी आवाज और कला से दिखता है, उतना ही रोचक और अनोखा उनकी व्यक्तिगत घटनाओं से भी झलकता है। यहाँ उनके जीवन की कुछ खास और यादगार घटनाएँ हैं:
अभिनय से गायकी तक का सफर:
किशोर शुरू में अभिनेता बनना चाहते थे, न कि गायक। 1946 में फिल्म “शिकारी” से उन्होंने डेब्यू किया, लेकिन उन्हें गंभीर किरदारों से ज्यादा हास्य रोल मिले। 1948 में फिल्म “जिद्दी” में पहला गाना गाने का मौका मिला, पर संगीतकार खेमचंद प्रकाश को उनकी प्रतिभा पर पूरा भरोसा नहीं था। बाद में “आराधना” (1969) ने उन्हें स्टार गायक बना दिया, और अभिनय पीछे छूट गया।
किशोर कुमार ने कई अभिनेताओं को बनाया रातों -रात स्टार
किशोर कुमार ने अपने गायन करियर में कई अभिनेताओं को अपनी आवाज़ देकर उन्हें “चमकाने” में महत्वपूर्ण योगदान दिया। किशोर कुमार की बहुमुखी गायकी ने विभिन्न अभिनेताओं के व्यक्तित्व और फिल्मी छवि को निखारा, खासकर 1960 से 1980 के दशक के दौरान, जब वे पार्श्वगायन में शीर्ष पर थे। उनके सबसे प्रसिद्ध योगदानों में शामिल हैं:
देव आनंद – किशोर कुमार ने देव आनंद के लिए कई हिट गाने गाए, जैसे “गाता रहे मेरा दिल” (गाइड, 1965) और “ख्वाब हो तुम या कोई हकीकत” (तीन देवियां, 1965), जो उनकी रोमांटिक और स्टाइलिश छवि को मजबूत करने में मददगार साबित हुए।
राजेश खन्ना – किशोर कुमार को राजेश खन्ना की “आवाज़” माना जाता है। “अराधना” (1969) के गाने जैसे “मेरे सपनों की रानी” और “रूप तेरा मस्ताना” ने राजेश खन्ना को सुपरस्टार बनाया। उनकी जोड़ी ने उस दौर में कई चार्टबस्टर गाने दिए, जो राजेश खन्ना की लोकप्रियता का आधार बने।
अमिताभ बच्चन – किशोर ने अमिताभ बच्चन के लिए भी कई यादगार गाने गाए, जैसे “माय नेम इज एंथनी गोंसाल्विस” (अमर अकबर एंथनी, 1977) और “खइके पान बनारस वाला” (डॉन, 1978), जिन्होंने अमिताभ की “एंग्री यंग मैन” और बहुमुखी छवि को और चमकाया।
धर्मेंद्र – “शोले” (1975) का “ये दोस्ती” और “ड्रीम गर्ल” (1977) का “कोई हसीना जब” जैसे गानों ने धर्मेंद्र की मर्दाना और आकर्षक छवि को बढ़ाया।
जीतेंद्र – किशोर ने जीतेंद्र के लिए “मैं हुश्न का हूं दीवाना “ओ मेरी जान (जानी दुश्मन) जैसे गाने गाए, जो उनके डांसिंग स्टार इमेज के साथ खूब जचे।
ऋषि कपूर – “खेल खेल में” (1975) का “खुल्लम खुल्ला प्यार करेंगे” जैसे गानों ने ऋषि कपूर की युवा, रोमांटिक छवि को मजबूत किया।
किशोर कुमार की खासियत यह थी कि वे अपनी आवाज़ को अभिनेता के व्यक्तित्व और फिल्म के मूड के अनुसार ढाल लेते थे। इसके अलावा, उन्होंने संजीव कुमार, शम्मी कपूर, दिलीप कुमार, मिथुन चक्रवर्ती और कई अन्य अभिनेताओं के लिए भी गाया, जिससे उनकी फिल्मों को नई ऊंचाइयां मिलीं। किशोर कुमार ने कम से कम 10-15 प्रमुख खास अभिनेताओं की फिल्मी यात्रा को अपनी आवाज़ से संवारा और उन्हें सफलता की नई ऊंचाइयों तक पहुंचाया। उनकी गायकी ने न केवल अभिनेताओं को चमकाया, बल्कि भारतीय सिनेमा के स्वर्णिम युग को भी परिभाषित किया।
मधुबाला से प्रेम और शादी:
किशोर कुमार और मधुबाला की प्रेम कहानी 1960 के दशक की चर्चित घटनाओं में से एक थी। फिल्म “चलती का नाम गाड़ी” और “झुमरू” की शूटिंग के दौरान दोनों करीब आए। मधुबाला की खूबसूरती और किशोर की मस्ती भरे अंदाज ने उन्हें जोड़ा। 1960 में दोनों ने शादी की, लेकिन मधुबाला की दिल की बीमारी ने उनकी जिंदगी को मुश्किल बना दिया। 1969 में मधुबाला की मृत्यु ने किशोर को गहरा सदमा दिया, और वे लंबे समय तक गम में रहे।
टैक्स विवाद और व्यवहार:
1970 के दशक में आयकर विभाग के साथ उनका विवाद सुर्खियों में रहा। टैक्स न चुकाने के कारण उनके घर पर छापा पड़ा। किशोर ने अपने अनोखे अंदाज में इसका जवाब दिया – वे अपने बंगले के बाहर “Beware of Kishore” का बोर्ड लगाकर लोगों को डराते थे और कई बार निर्माताओं से पैसे पेड़ पर लटकाने को कहते थे, ताकि वे खुद ले सकें। यह उनकी सनक और हास्य का उदाहरण था।
इमरजेंसी के दौरान गाना न गाने का फैसला:
1975-77 की इमरजेंसी के दौरान, किशोर कुमार ने संजय गांधी के लिए कांग्रेस का प्रचार गीत गाने से इनकार कर दिया। इसके परिणामस्वरूप उनकी आवाज को ऑल इंडिया रेडियो और दूरदर्शन पर बैन कर दिया गया। यह उनके साहस और सिद्धांतों की मिसाल थी, जिसने उन्हें और सम्मान दिलाया।
अपने पैतृक निवास खंडवा से था गहरा लगाव:
किशोर अपने जन्मस्थान खंडवा से बहुत प्यार करते थे। वे अक्सर कहते थे कि मरने के बाद उनकी राख खंडवा में बहाई जाए। उनकी मृत्यु के बाद, 1987 में उनकी यह इच्छा पूरी की गई। उनके घर के बाहर लगे बोर्ड “किशोर कुमार खंडवे वाला” ने उनकी सादगी और जड़ों से जुड़ाव को दर्शाया।
13 अक्टूबर 1987 को किशोर कुमार का निधन दिल का दौरा पड़ने से हुआ। उस दिन वे अपने बेटे अमित कुमार के साथ एक गाना रिकॉर्ड करने की तैयारी में थे। उनकी मृत्यु से कुछ घंटे पहले तक वे हंसते-खेलते हुए अपने परिवार के साथ थे। 58 साल की उम्र में उनकी अचानक विदाई ने सभी को स्तब्ध कर दिया।