खौल उट्ठे खून के सारे विष को
मथना.. मथना.. खूब मथना
फिर जीभ पलट कर साध लेना कण्ठ में
अभी नहीं.. अभी नहीं.
रोकना अपने आप को
सांसों के धधकते ज्वालामुखी को
पैबस्त कर लेना भीतर-ही-भीतर
सह लेना सारी जलन.. सारी तपन चुपचाप
आगत के लिए
आग को सीने में जलाये प्रतिज्ञाबध्द
प्रतीक्षित रहना
प्रलय एक दिन जरूर आयेगी
डोलेगी धरती.. होगा तांडव
लेकिन जब तक न आ जाए प्रलय
मत बजाना डमरू.
- आनंद अभिषेक