जी के चक्रवर्ती
देश के जिन राज्यों पर कर्ज का सबसे ज्यादा बोझ है उनमें पंजाब, दिल्ली, तेलंगाना, आंध्र प्रदेश और पश्चिम बंगाल जैसे राज्य शामिल हैं। इन राज्यों की लोकलुभावन घोषणाओं की वजह से इनकी वित्तीय स्थिति खराब है। इसी तरह जब से राजस्थान और छत्तीसगढ़ के राज्यों अपने यहां पुरानी पेंशन स्कीम पुनः बहाल करने की घोषणा की है और राज्य में मुफ्त बिजली भी दे रहे हैं इससे सरकारी खजाने पर बोझ बढ़ना स्वाभाविक है।
आज हमारे देश मे मुफ्त नाम का शब्द बहुत प्रचलित है, मुफ्त शब्द के आते ही प्रोलोभन दिये जाने का स्वतः आभास हो जाता है जैसे अमुक चीज के साथ अमुक चीज मुफ्त फ्री है। सरकार कोरोना के कारण लोगों को मुफ्त राशन दे रही है ऐसी बातें सुनते ही लोगों की बांछे खिल उठती है, खैर कोरोना काल मे यदि सरकार मुफ्त में गरीबों को राशन नही देती तो शायद देश के गरीबों का स्तर और भी निचले स्तर तक पहुंच जाता। खैर यह एक अलग विषय है।
राजनीति में मुफ्त में दिये जाने वाली चीजों की बात कोई नयी नही है जैसे ही देश मे चुनावों का समय निकट आता है वैसे ही के मुफ्त खोर और मुफ्त खोरी का व्यासन जोर पकड़ने लगता है जिससे नेताओं द्वारा मुफ्त में अनेको तरह की सुविधाओं वाली वस्तुओं को देकर मतदाताओं को बेवकूफ तो बनाया ही जाता है बल्कि जनता के अन्दर एक मुफ्त खोरी का आदत बना कर उन्हें अकर्मण्यता की ओर ढकेलने का भी काम करती है। इस तरह से देश के नेता नगरी के लोग और सरकारें अगले 5 वर्षो तक जनता को ठगने और लूटने का उपक्रम में लोकलुभावन वादें करके सिर्फ वोट बटोरने के उद्देश्य से देश मे मुफ्त मे अनेको चीजों एवं सुविधाओं को बांटने से सरकारों के आर्थिक खर्चों पर बोझ पड़ना स्वाभाविक हैं जिससे देश व राज्यो में चलने वाले अनेकों तरह की योजनाओं को रोक दिये या रुक जाने से असंतुलन की स्थिती पैदा हो जाती है।
आज यदि हम भारत के विभिन्न राज्यों पर लदें कर्ज की बात करें तो वित्त वर्ष 2020-21 में देश के विभिन्न राज्यों का औसतन कर्ज उनके सकल घरेलू उत्पाद का लगभग एक तिहाई यानिकि लगभग 31.3 फीसदी तक के ऊंचे स्तर तक पहुंच चुका है। जबकि वित्त वर्ष 2021-22में कर्ज और जीएसडीपी (ग्रॉस स्टेट डोमेस्टिक प्रॉडक्ट) का अनुपात सबसे ज्यादा पंजाब का 53.3 फीसदी रहा है।
राज्यों का औसत कर्ज उनके जीडीपी के 31.3 फीसदी पर पहुंच गया है। वहीं यदि हम राज्यों की बात करें तो आज सभी राज्यों का कुल राजस्व घाटा के 17 वर्ष के अपने उच्च स्तर 4.2 फीसदी पर पहुंच चुका है।
जिसमे सबसे खराब स्थिति पंजाब राज्य की है जिसका कर्ज उसके जी.एस.डी.पी (ग्रास स्टेट डोमेस्टिक प्रॉडक्ट) का रिकॉर्ड 53.3 फीसदी तक पहुंच चुका है। दूसरे सबसे खराब हालत में राजस्थान है, जिसका कर्ज उसके जी.एस.डी.पी का 39.8 फीसदी तक हो चुका है। इसी प्रकार पश्चिम बंगाल का कर्ज 38.8 फीसदी, केरल का 38.3 फीसदी, गुजरात 23 फीसदी, महाराष्ट्र 20 फीसदी और आंध्र प्रदेश का कर्ज उसके जी.एस.डी.पी का 37.6 फीसदी तक जा पंहुचा है। इस तरह कहीं जी.एस.डी.पी भारत के पड़ोसी देश श्रीलंका जैसी न हो जाये।
किसी भी सत्तारूढ दल को जनता की गाढ़ी मेहनत की कमाई को लुटाने के लिये नहीं, बल्कि उस धन का सदुपयोग जनता के हित में करने की महत्वपूर्ण जिम्मेदारी होती है।
नोट: यह लेखक के अपने निजी विचार हैं, अपनी प्रतिकिया व्यक्त करने के लिए इस मेल एड्रेस editshagun@gmail.com पर सन्देश भेजें।