खरी खरी : दयानन्द पांडेय
शुरू-शुरू में नरेंद्र मोदी के इस्तकबाल में भी मुनव्वर राना ने खुद को खर्च किया। लेकिन जब उधर से कोई पॉजिटिव रिस्पांस नहीं मिला तो जावेद अख्तर की तरह इन के अहंकार को भी ठेंस लग गई। जावेद अख्तर भी अटल बिहारी वाजपेयी के परम प्रशंसकों में से रहे हैं। जावेद खुद बताते रहे हैं कि अटल जी बतौर प्रधान मंत्री उन्हें डिनर आदि पर बुलाते रहते थे। लेकिन इस नरेंद्र मोदी नाम के आदमी को कुछ समझ ही नहीं है। कभी कुछ पूछता ही नहीं। फिर नरेंद्र मोदी द्वारा अपनी निरंतर उपेक्षा से आहत जावेद अख्तर का सेक्यूलरिज्म जाग गया।
सेक्यूलरिज्म जागते-जागते इतना जाग गया जावेद अख्तर का कि उन का लीगी और जेहादी मुसलमान जाग गया। राज्य सभा में एक समय बेधड़क भारत माता की जय बोलने वाले जावेद अख्तर अब सेलेक्टिव चुप्पी और सेलेक्टिव विरोध का खेल खेलते हैं। फरुखाबादी खेल की तरह। पी एम के डिनर से अपना रूतबा छिन जाने को वह घृणा में तब्दील कर चुके हैं पूरी तरह। यही हाल तमाम पढ़े-लिखे मुसलमानों का है इन दिनों।
तो मुनव्वर राना तो पुराने लीगी, जेहादी और जेहाद के कारोबारी हैं। नरेंद्र मोदी सरकार से अपेक्षित रिस्पांस न मिल पाने से खफा मुनव्वर राना तो जब साहित्य अकादमी अवार्ड की वापसी की बयार बह रही थी तो एक न्यूज़ चैनल में जब डिवेट के लिए पहुंचे तो बाकायदा साहित्य अकादमी अवार्ड का तामझाम झोले में ले कर पहुंचे और लाइव डिवेट में साहित्य अकादमी अवार्ड वापस करने का ड्रामा करने वाले वह इकलौते आदमी बने।
उन का यह ड्रामा मोदी वार्ड के तमाम मरीजों के लिए जैसी ताज़ी हवा का झोंका बन कर उपस्थित हुआ। यह सब तब था जब न सिर्फ मुनव्वर राना बल्कि सभी के सभी लेखक, कवि इस तथ्य से भली भांति परिचित थे कि साहित्य अकादमी अवार्ड कभी भी किसी भी सूरत में वह वापस नहीं कर सकते। क्यों साहित्य अकादमी के संविधान में यह साफ़ लिखा हुआ है कि साहित्य अकादमी अवार्ड एक बार मिल जाने के बाद न कोई लेखक उसे वापस कर सकता है, न साहित्य अकादमी उसे वापस ले सकती है। यह भी कि साहित्य अकादमी , अवार्ड देने के पहले हर लेखक से इस बाबत लिखित सहमति भी ले लेती है। – सरोकारनामा से
1 Comment
Hello, I enjoy reading all of your article post. I like to write a
little comment to support you.