अचानक से उठे राजनीतिक तूफ़ान ने जिस तरह से सीबीआई को अपने चपेटे में लिया उससे दोनों की साख गिरी है। सीबीआई के पूर्व निदेशक आलोक वर्मा की विदाई के बाद चार अधिकारियों पर गिरी गाज इस पूरे प्रकरण की स्वाभाविक परिणति है। वर्मा बनाम राकेश अस्थाना टकराव ने सीबीआई की जैसी छवि बना दी उसे खत्म करने के लिए संस्था की कुछ सफाई आवश्यक है। अस्थाना के अलावा इन तीन अधिकारियों का नाम भी उस कांड में आया था।
हालांकि ये सब अपने गुट के अधिकारी के निर्देश के अनुसार ही काम कर रहे थे। इस नाते इनको एकदम उन दोनों के समानांतर खड़ा नहीं किया जा सकता। किंतु चूंकि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी अपनी शुरुआत कार्यकाल में इन्हें लाए थे, इसलिए इनको बनाए रखकर अनावश्यक विवाद में पड़ने का सरकार को कोई लाभ नहीं था। वैसे भी सरकार पर राकेश अस्थाना के साथ पक्षपात का आरोप लगता रहा है।
यह बात अलग है कि विशेष निदेशक पद पर उनकी नियुक्ति को सर्वोच्च न्यायालय ने भी सही ठहराया था। एके शर्मा को भी गुजरात से ही लाकर संयुक्त निदेशक बनाया गया था। किंतु संघर्ष में शर्मा के खिलाफ भी अस्थाना हो गए थे। डीआईजी मनीष कुमार सिन्हा व्यापक पैमाने पर फोन टैपिंग को लेकर चर्चा में आए थे। इसमें राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोभाल का फोन टैप किए जाने की बात भी सामने आई थी। मनीष सिन्हा भी वर्मा की तरह सर्वोच्च न्यायालय चले गए थे।
जयंत जे. नाइकनेवारे भी इस लड़ाई में एक किरदार थे। कार्मिंक और प्रशिक्षण विभाग की कैबिनेट नियुक्ति समिति की प्रेस विज्ञप्ति में इन अधिकारियों के कार्यकाल घटाने की बात है। इसका इतना मतलब तो हुआ ही कि अब ये सब सीबीआई के अंदर कुछ ही दिनों के लिए हैं। इसके बाद या तो इनका स्थानांतरण होगा या फिर इन्हें अपने राज्य कैडर में वापस जाना होगा। जो सूचना है अस्थाना एवं शर्मा का तबादला किया जा रहा है। वर्मा की तरह अस्थाना को छुट्टी पर भेज दिया गया और वह अभी भी छुट्टी पर हैं। इसके बारे में अभी कोई सूचना नहीं है।
कार्यकाल घटाने या स्थानांतरण का यह अर्थ नहीं कि अस्थाना पर जो प्राथमिकी दर्ज हुई थी, वह खत्म हो गई है। उनको जांच व मुकदमे का सामना करना पड़ेगा। उस मुकदमे का परिणाम देखना होगा। किंतु सीबीआई को एक पेशवर कार्यकुशल शीर्ष जांच एजेंसी की छवि देने के लिए अभी काफी कुछ किए जाने की आवश्यकता है।