मोबाइल की लत ने बच्चों को बनाया गुलाम , मोबाइल न मिलने पर हो जाते हैं हिंसक
समाज में हिंसक और आपराधिक प्रवृत्ति के लोगों का होना निरंतर सामने आता है जिसके लिए कहीं शौक, आदत या परिस्थितियां ही जिम्मेदार होती हैं पर अब स्कूली बच्चे और किशोर भी इससे बुरी तरह प्रभावित होने लगे हैं। इनमें भी अनियंत्रित आक्रामकता, हिंसक व्यवहार और आपराधिक मानसिकता हावी होती जा रही है। पिछले दो-तीन सालों के दौरान कक्षा तीन से लेकर 11वीं-12वीं के बच्चे, हत्या, लूट और बलात्कार जैसे गंभीर अपराधों में लिप्त पाए गए हैं।
आपराधिक मानसिकता से ये बच्चे इतनी बुरी तरह ग्रस्त थे कि अपने से छोटी कक्षा में पढ़ने वाले बच्चों या सहपाठियों से लेकर शिक्षकों-शिक्षिकाओं तक को निशाना बनाने में नहीं हिचकते। चिंतनीय यह भी है कि ऐसे मामले देश के किसी एक हिस्से तक सीमित नहीं हैं बल्कि ज्यादातर राज्यों में सामने आ रहे हैं। यानी रचनात्मकता और भावनात्मकता से भरी मानी जाने वाली उम्र में अकल्पनीय क्रूरता की एक नई मानसिकता तेजी से कब्जा जमा रही है। इसके कारणों पर विचार कीजिए तो यही बात सामने आती है कि उम्र का यह दौर अब आधुनिक तकनीक के संजालों से बुरी तरह प्रभावित होने लगा है।
तेजी से खोते जा रहे पारिवारिक मूल्यों और उतनी ही तेजी के साथ स्मार्टफोन और इंटरनेट के बढ़ते दखल से बच्चों का संवेदनशील मन मस्तिष्क गंभीर रूप से उथल-पुथल का शिकार हो रहा है और उनकी सोच क्रूरतम हिंसा और यौन अपराधों की तरफ प्रेरित हो रही है। अब आधुनिक तकनीक के जीवन का अभिन्न अंग बन जाने के आज के दौर में बच्चों को इससे अलग तो नहीं रखा जा सकता लेकिन उनकी सोच और व्यवहार को प्रभावित करने वाले कारकों को नियंत्रित करने के लिए प्रयास तो करने ही पड़ेंगे वरना समाज में अपराध करने वालों की एक और नई शाखा सामने आती जाएगी।