कोरोना की दूसरी लहर का कहर थामे नहीं थम रहा है। पिछले कई का दिनों से देश में तीन लाख से ज्यादा कोरोना के नए मरीज सामने आ रहे हैं। बीते सप्ताह तो तीन-चार दिन संख्या चार लाख को भी पार कर गई। केंद्र और राज्य सरकारें अपने-अपने स्तर से कोरोना की रोकथाम में जुटी हैं, लेकिन फिलहाल कोई समाधान निकलता दिखता नहीं। इन सब खबरों के बीच एक खबर ने सबकी चिंता को बढ़ा दिया है।
असल में बड़े शहरों और नगरों के बाद कोरोना कस्बों और खासकर गांवों की तरफ फैलने लगा है। छत्तीसगढ़ की तस्वीर डराने वाली है, जहां करीब 89 फीसदी संक्रमित मामले ग्रामीण इलाकों से आए हैं। इसके अलावा हिमाचल, बिहार, ओडिशा, राजस्थान, आंध्रप्रदेश, उप्र और जम्मू-कश्मीर के गांवों में 65 फसदी से 79 फीसदी तक मामले दर्ज किए जाते रहे हैं और यह रुझान जारी है। यकीनन महाराष्ट्र, दिल्ली, उप्र आदि के शहरों में, बीते कुछ दिनों से, कोविड के मरीज घटे हैं। कम टेस्टिंग के बावजूद संक्रमण-दर बढ़ी है। देश में मंगलवार को 19 लाख से ज्यादा टेस्ट किए गए हैं। यह संख्या भी कम नहीं है।
पिछले साल जब कोरोना की पहली लहर आई थी तो उस समय भी इस बात की शंका थी कि कहीं कोरोना गांवों को अपने पंजों में न जकड़ ले। लेकिन गनीमत रही कि पहली लहर में कोरोना गांवों से दूर ही रहा। लेकिन दूसरी लहर इतनी प्रबल है कि वो गांवों में प्रवेश कर चुकी है। ऐसे में सरकार और स्थानीय प्रशासन की दिक्कतें तो बढ़ ही गयी हैं। वहीं कम्युनिटी ट्रांसमिशन का बड़ा खतरा भी सामने मंडराने लगा है। शहरों और गांवों के रहन-सहन और जीवन में काफी फर्क है। ऐसे में गांवों में सामुदायिक संक्रमण की संभावनाएं बढ़ जाती है।
सरकारी रिपोर्ट और मीडिया की खबरों के हवाले से बात की जाए तो कस्बों और ग्रामीण इलाकों में कोविड लगातार फैल रहा है। देश के 24 में से 13 राज्यों में शहरों से अधिक संक्रमित मामले गांवों में मिले हैं। अन्य 11 राज्यों में भी गांवों में कोविड का विस्तार जारी है। यह स्थिति तब है, जब अधिकतर गांवों में टेउसिंग, टेस्टिंग और ट्रीटमेंट जैसी जरूरी सुविधाएं न के बराबर ही हैं। बेहतर और सुविधायुक्त अस्पतालों की तो कल्पना ही नहीं की जा सकती, बल्कि झोलाछापों की दुकानें फ्ल-फूल रही हैं। पेरासिटामोल सरीखी दवा भी बेहद कम है।
झोलाछाप पाउडर पीस कर मरीजों को जो भी दे रहे हैं, उसे स्वीकार करना ग्रामीणों की विवशता है। कोविङ-19 से जुड़ी दवाएं तो अलग बात है, बुखार की पेरासिटामोल, विटामिन सी की टैबलेट और यहां तक की खांसी के अच्छी कंपनियों के सिरप तक नहीं मिल रहे हैं। ज्यादातर ग्रामीण इलाकों में एक बड़ी दिक्कत ये भी है कि खांसी और बुखार को लोग सामान्य फ्लू मानकर चल रहे हैं। वहीं गांवों में जांच की स्थिति बहुत खराब है। लोग बीमार हैं फिर भी जांच कराने इसलिए नहीं जा रहे क्योंकि जांच केंद्रों पर ठीक व्यवस्था नहीं होती। एंटीजन टेस्ट पर तो किसी को विश्वास ही नहीं है। आरटीपीसीआर टेस्ट की रिपोर्ट जल्दी आती नहीं। टेस्ट न कराने का एक कारण यह भी है कि लोगों को लगता है कि गांव में सब कोरोना के बारे में जान जायेंगे तो बदनामी होगी। गांवों में कोविड के विस्तार की खबरें सुर्खियां बनी हैं, तो सरकारें सक्रिय हुई हैं। ग्रामीण क्षेत्रों में कोरोना महामारी की रोकथाम के लिए राज्य सरकारें और स्थानीय प्रशासन ने बचाव कार्य तेज कर दिए हैं।
इसी कड़ी में सवेंदनशील गांवों में सैनिटाइजेशन का कार्य शुरू किया गया है। जिन स्थानों पर कोरोना संक्रमित या खांसी व बुखार के मरीज ज्यादा है, उन स्थानों पर फोकस करते हुए लगातार सैनिटाइजेशन का कार्य किया जा रहा है। सैनिटाइजेशन के दौरान गांवों में समह के रूप में इकठा न होने. मास्क और सैनिटाइजर के इस्तेमाल की अपील भी की गई। इसमें कोई दो राय नहीं है कि ग्रामीण इलाकों में मौतें भी खूब हो रही हैं, क्योंकि ग्रामीणों को कोरोना वायरस की पर्याप्त जागरूकता नहीं है। वे उसे ‘रहस्यमयी बुखार’ करार दे रहे हैं। ग्रामीण अब भी मलेरिया, टायफाइड आदि तक ही सिमटे हैं। हैरानी से सवाल करते हैं कि न जाने कैसा बुखार है, जो आसपास आने वालों को भी अपनी चपेट में ले लेता है और लोग मरने लगते हैं। गांववाले उस बुखार को कोविड नहीं मान पा रहे हैं।
यह है भारत में उप्र, मप्र और हरियाणा के गांवों का यथार्थ! ऐसे कई राज्यों के गांवों से चौंकाने वाले आंकड़े मिल रहे हैं। यूपी के महराजगंज जिले के गांवों में भी कोरोना पहुंच गया है। एक प्रमुख दैनिक अखबार की रपट के मुतातबिक इसके लक्षण से ग्रामीण इलाके भी तप रहे हैं। हाल ही में सामने आए सर्वे रिपोर्ट की मुताबिक गांवों में 6343 मरीज, बुखार, खांसी के / मिले हैं। इनमें 135 कोरोना पाजिटिव पाए गए हैं। अखबार लिखता है कि ग्रामीण क्षेत्र में जिनके घर में होम आइसोलेशन की व्यवस्था नहीं है, उन्हें काफी परेशानियों का सामना करना पड़ रहा है। जिले पर समेकित विद्यालय को क्वारंटाइन सेंटर बनाया गया है, लेकिन ग्रामीण क्षेत्रों में अभी किसी स्कूल व पंचायत भवन को क्वारंटाइन सेंटर नहीं बनाया गया है। लक्षण वाले मरीज अपने घर पर ही क्वारंटाइन हैं।
वहीं यूपी के गौतमबुद्ध नगर जिले में कोरोना का प्रकोप तेजी से बढ़ रहा है। न्यूज चैनल आजतक की एक रिपोर्ट के अनुसार, पिछले 10 दिनों में ग्रामीण क्षेत्रों में 50 से अधिक मौते हुई हैं, बिसरख, जेवर, दादरी के गांवो में ज्यादातर लोग बीमार हैं। यूपी ही नहीं हरियाणा, पंजाब, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, बिहार, छत्तीसगढ़ और देश के अन्य राज्यों में भी गांवों में कोरोना पहुंच गया है। हालात लगातार बिगड़ रहे हैं। नतीजतन सरकारें मुगालते में न रहें कि कोविड का ‘पीक’ अलग-अलग राज्यों में गुजर रहा है और कोरोना के मामले घटने लगे हैं।
विशेषज्ञों के अनुसार यह संभव नहीं है कि इतनी बड़ी आबादी के लिए कोई भी देश ऑक्सीजन उपलब्ध करा सके। हमारी मेडिकल व्यवस्थाएं पहले से ही ठीक नहीं रही हैं। और अभी गांवों की स्थिति चिंताजनक है। गांवों में हर घर में लोग बीमार हैं और उनमे लक्षण भी कोरोना के हैं। ऐसे में लोगों को जागरूक करना बहुत जरूरी है। सरकार को चाहिए कि वह गांव-गांव डुगडुगी पिटवाकर लोगों को जागरूक करे। लोगों को बताएं कि अगर आप में यह लक्षण है तो तुरंत जांच कराइये। विशेषज्ञ डॉक्टरों की टीम हो जांच रिपोर्ट आने से पहले से ही लक्षण के आधार में इलाज शुरू कर दें।
गांवों में लोगों का प्राथमिक इलाज उनके घरों में ही शुरू करना पड़ेगा और बीमारी के पहले सप्ताह ही शुरू करना पड़ेगा। ताकि को गंभीर अवस्था में पहुंचने से पहले से ही खत्म किया जा सके क्योंकि सबके लिए बेड उपलब्ध कराना मुश्किल होगा। ये जान लीजिए अगर गांवों में कोरोना संक्रमण ने सामुदायिक संक्रमण का रूप धारण कर लिया तो फिर कोरोना बेकाबू होकर बहुत नुकसान पहुंचाएगा। इसलिए समय रहते गांवों में कोरोना रोकथाम के पर्याप्त उपाय करने की जरूरत है। – डॉ. श्रीनाथ सहाय