सत्संगों-प्रवचनों में बड़ी संख्या में श्रद्धालुओं का उमड़ना स्वाभाविक सी बात है। यह धर्म के प्रति उनका विश्वास है। ऐसे में आवश्यक होता है कि इस तरह की भारी भीड़ को कार्यक्रम के अंत तक व्यवस्थित रखने के पर्याप्त इंतजाम कर लिए जाएं। यदि ऐसा नहीं किया जाता है तो हाथरस जैसी घटना होना अवश्यम्भावी हो जाता है जिसमें मंगलवार को 127 लोग असमय ही मृत्यु की भेंट चढ़ गए। मृतकों में सर्वाधिक महिलाएं थीं।
हादसे का कारण आयोजन के अंत में जल्दी निकल जाने की होड़ से मची भगदड़ थी। ध्यान रहे कि यूपी में पहले भी ऐसी कई घटनाएं हुई हैं जिनमें बड़ी संख्या में लोगों की जानें गई हैं। धार्मिक कार्यक्रमों का आयोजन करने वालों को इनसे सबक लेना चाहिए। और उसी के हिसाब से भीड़ को नियंत्रित करने के इंतजाम करने चाहिए थे। भीड़ का अंदाजा इसी से लग सकता है कि पंडाल में करीब सवा लाख लोग थे लेकिन उन्हें संभालने के लिए सिर्फ 72 सुरक्षाकर्मियों को ही तैनात किया गया था। इतनी संख्या में लोगों के प्रवेश और निकास द्वार की भी व्यवस्था नहीं थी ।
एलआईयू द्वारा पहले ही दी गई अपनी रिपोर्ट में ऐसी चेतावनी दे दी गई थी पर उसक पर भी कोई ध्यान नहीं दिया गया। लगता यह है कि आयोजकों का खास मकसद तथाकथित बाबा के नाम पर अधिक से अधिक भीड़ जुटाना था। गैर जिम्मेदारी इतनी कि 78 लोगों की आयोजन समिति में अधिकांश के फोन दुर्घटना के बाद बंद हो गए थे। यह मामूली नहीं बल्कि विशुद्ध आपराधिक लापरवाही थी जिसे लेकर जवाबदेही तय की जानी चाहिए।
ऐसे में यह उचित ही है कि सीएम योगी आदित्यनाथ ने आयोजकों के खिलाफ कार्रवाई किए जाने के निर्देश दिए हैं। हादसे के दोषी लोगों के खिलाफ कड़े कदम तो उठने ही चाहिए, साथ ही भविष्य में ऐसे आयोजनों को लेकर सभी तरह की व्यवस्थाएं मुस्तैद रखने का प्रशासन को सबक भी लेना होगा। यह ठीक है कि प्रभावित लोगों को मुआवजे की घोषणाएं कर दी गई हैं, पर जो अमूल्य जीवन इस अफरातफरी की भेंट चढ़ गए, वे तो वापस नहीं आ सकेंगे।