Close Menu
Shagun News India
    Facebook X (Twitter) Instagram
    Facebook X (Twitter) Instagram
    Saturday, July 12
    Shagun News IndiaShagun News India
    Subscribe
    • होम
    • इंडिया
    • उत्तर प्रदेश
    • उत्तराखंड
    • राजस्थान
    • खेल
    • मनोरंजन
    • ब्लॉग
    • साहित्य
    • पिक्चर गैलरी
    • करियर
    • बिजनेस
    • बचपन
    • वीडियो
    Shagun News India
    Home»ब्लॉग»Current Issues

    आत्ममंथन का अवसर है स्वतंत्रता दिवस

    ShagunBy ShagunAugust 14, 2022 Current Issues No Comments10 Mins Read
    Facebook Twitter LinkedIn WhatsApp
    Share
    Facebook Twitter LinkedIn WhatsApp
    Post Views: 659

    डॉ. कृष्णगोपाल मिश्र 

    स्वतंत्र शब्द का सीधा अर्थ है ‘अपना तंत्र ‘। राजनीतिक संदर्भ में स्वतंत्रता समाज के अपने बनाए हुए तंत्र का अर्थ व्यक्त करती है। तंत्र से आशय किसी लक्ष्य की प्राप्ति हेतु निर्धारित किए गए व्यवस्थापन से है। परतंत्र भारत में शिक्षा, सुरक्षा, न्याय, चिकित्सा उद्योग, व्यवसाय आदि व्यवस्थाएं इस्लामिक आक्रांताओं और अंग्रेजों की अपनी सांस्कृतिक अवधारणाओं, विश्वासों एवं मान्यताओं के अनुरूप निर्धारित की जाती रहीं। परिणामतः भारतवर्ष अपने सामाजिक-राजनीतिक तंत्र से दूर होता चला गया, अपनी परम्पराओं नीतियों-रीतियों को भुलाता चला गया तथापि निरन्तर संघर्ष करता हुआ ‘स्व-तंत्र’ के पुनर्प्रतिष्ठापन के लिए सजग रहा और अंततः 15 अगस्त, 1947 को उसने स्वतंत्रता प्राप्त कर विश्वमंच पर पुनः अपनी स्वाधीनता, स्वायत्तता एवं अस्मिता प्रमाणित की किन्तु ब्रिटिश-दासता से मुक्ति के बाद हमारी विकास यात्रा में ‘स्व-तंत्र’ कितना विकसित हुआ और अरबों तथा अंग्रेजों के बनाए परतंत्र को हमने स्वतंत्रता की छांह तले कितना पुष्ट किया यह आजादी के अमृत महोत्सव की पुण्य बेला में निश्चय ही विमर्श का विषय होना चाहिए। व्यवस्थागत परतंत्रता से विमुक्त ‘स्व-तंत्र’ की पुनस्र्थापना में ही स्वतंत्रता का स्वर्णिम भविष्य सुरक्षित हो सकता है।

    राजसत्ता का विस्तारवादी स्वभाव अपनी सामरिक शक्ति का आश्रय लेकर न केवल दूसरे देशों की भूमि पर अधिकार करता है प्रत्युत उनकी संस्कृति को नष्ट कर उन पर अपनी भाषा, वेश, जीवन-शैली और व्यवस्था आरोपित करने का भी हर संभव प्रयत्न करता है। विगत 800 वर्षों में इस्लामिक और ब्रिटिश शासकों ने भारत में अपने-अपने ढंग से भारत की सनातन परंपराओं को समाप्त करने में कोई कोर कसर नहीं छोड़ी। कठमुल्लाओं ने मंदिर तोड़े, पुस्तकालय जला दिए, अतिरिक्त कर लगाए और अंग्रेजों ने भी सेवा और सुधार के नाम पर ईसाइयत का विस्तार करते हुए भारतीय सांस्कृतिक चेतना को दूर तक आहत किया। शिक्षा की गुरुकुल प्रणाली समाप्त हो गई, चिकित्सा के क्षेत्र में आयुर्वेद हाशिए पर चला गया, संस्कृति की संवाहक संस्कृत भाषा शिक्षा- क्षेत्र से बहिष्कृत हुई, सरल शाकाहारी सात्विक जीवन उपेक्षित हुआ और मांसाहार, मद्यपान तथा व्यभिचार को अपार विस्तार मिला। पुरानी रूढ़ियां और कुरीतियाँ तो कम दूर हुईं किंतु नई बुराइयों को फलने-फूलने के अवसर बहुत निर्मित हुए।

    ब्रिटिश शासन से मुक्ति के उपरांत भारत का नव-निर्माण भारतीय समाज की आवश्यकताओं और अपेक्षाओं के अनुरूप भारतीय-दृष्टि से किया जाता तो हम सच्चे अर्थों में स्वतंत्र होते किंतु हमारी स्वातंत्र्योत्तर विकास की रेलगाड़ी तो अंग्रेजों की बिछायी पटरी पर ही पूर्ववत दौड़ायी गयी और आज भी दौड़ायी जा रही है। इस स्थिति में ‘तंत्र’  का ‘स्व’  विलुप्त है और ‘पर’ निरन्तर सशक्त हो रहा है। अपनी भौतिक उपलब्धियों और महानगरों के चकाचैंध भरे परिदृश्य में अपना मिथ्या गौरव गान गाने और अपनी पीठ स्वयं थपथपाने के लिए भले ही हम स्वतंत्र हैं किंतु सामाजिक स्तर पर हमारी एकता और अखंडता पर छाए संकट के बादल जब-तब हमारी कमजोरी उजागर कर देते हैं।

    हमारे शास्त्रों में कहा गया है-

    राज्ञि धर्मिणि धर्मिष्ठाः पापे पापाः समे समाः।

    लोकास्तमनुवर्तन्ते यथा राजा तथा प्रजाः॥

    अर्थात यदि राजा धर्मशील हो तो लोग धर्मशील होते हैं, पापी हो तो पापी होते हैं, सम हो तो सम होते हैं। लोग तो राजा का अनुसरण करते हैं। जैसा राजा होता है वैसी प्रजा हो जाती है। व्यावहारिक स्तर पर इतिहास भी इस तथ्य को प्रमाणित करता है। मेवाड़ के महाराणा प्रताप के नेतृत्व में वहां की प्रजा ने अपनी स्वतंत्रता की रक्षा के लिए मुगलों के विरुद्ध युद्ध किया जबकि आमेर नरेश मानसिंह द्वारा अकबर की दासता स्वीकार करने के परिणाम स्वरुप वहां की सेना-प्रजा भी अकबर की सहयोगी बनी । राजतंत्र ही नहीं लोकतंत्र में भी यह प्रवृत्ति दिखाई देती है। जनता के नेता ही आज के राजा हैं।

    बीसवीं शताब्दी में देश के संसाधनों पर अंग्रेजो का कब्जा था, किंतु जनता के हृदय पर लोकमान्य तिलक, महात्मा गांधी और सुभाषचंद्र बोस जैसे भारतीय नेता ही राज कर रहे थे। गांधीजी ने जब व्यक्तिगत जीवन की समस्त भौतिक सुख सुविधाएं त्याग कर एक धोती-लंगोटी धारण कर देश-सेवा का व्रत लिया तो सारा देश उनके पीछे निजी सुख त्याग कर आजादी की लड़ाई में निस्वार्थ भाव से उमड़ पड़ा किंतु स्वतंत्रता के उपरांत हमारे नेताओं ने सत्ता के शीर्ष पर बैठकर जब मुफ्त की सुविधाओं के लिए स्वयं को समर्पित किया तो हमारे अधिकारी, कर्मचारी, व्यापारी आदि समाज के संचालक सभी वर्ग त्यागपूर्ण देशभक्ति का पाठ भूलकर व्यक्तिगत संपत्ति संचय में जुट गए और भ्रष्टाचार की कालिमा ने बलिदान के अमृत-कलश स्वतंत्रता के लोकमंगलकारी स्वरूप को साकार नहीं होने दिया।

    भ्रष्टाचार स्वतंत्र भारत की सबसे बड़ी समस्या है। दूसरी सारी समस्याएं प्रायः इसी से उपजी हैं। हमारी स्वतंत्रता के साथ-साथ पले-बढ़े भ्रष्टाचार के इस कालिया नाग की जकड़ में सारे देश की देह अकड़ रही है। कालिया को नाथने के लिए ईमानदार प्रयत्न करने होंगे। अपने और पराए का भेद भूलकर समर्थन और विरोध का पथ चुनना होगा। अन्यथा स्वतंत्रता का पथ कंटकाकीर्ण हो जाएगा।

    भक्ति-भावना प्राचीन काल से ही भारतीय जनमानस की नस-नस में समाई है। देश की समस्त जनता चाहे वह किसी भी धर्म का अनुसरण करती हो अपने इष्टदेव के प्रति अगाध श्रद्धा रखती है। श्रद्धा का यह प्रसार महापुरुषों संत-महात्माओं, पीर-पैगंबरों और धार्मिक नेताओं के प्रति भी दिखाई देता है। लोकतंत्र के आने से पूर्व अपने राजाओं और जमींदारों, यहां तक कि विदेशी शासकों के प्रति भी भारतीय जनता भक्ति प्रकट करती रही है। मार्क्सवादी विदेशी विचारकों के प्रति भी देश में भक्तों की कमी नहीं है किंतु यह विडंबना ही है कि सब के प्रति भक्ति से ओतप्रोत इस देश में स्वदेश, स्वभाषा एवं स्वसंस्कृति के प्रति भक्ति का प्रबल आवेग दिखायी नहीं देता। विदेशी आक्रमणकारी गजनबी, गोरी, लोधी, खिलजी और मुगल इस विशाल देश की जनता की तुलना में बहुत कम सेनाएं लेकर आए और सफल हो गए। बार-बार कत्लेआम हुए। दुश्मनों की तलवारों के सामने हमने पशुओं की भांति अपनी गर्दनें झुका दीं, कटवा दीं, किंतु तलवार लेकर सामूहिक रूप से उन पर प्रहार को उद्यत नहीं हुए प्रत्युत जान बचाने के लिए उनके सहयोगी भी बने।

    मुट्ठी भर अंग्रेज अपने देश-प्रेम और जातीय-एकता के बल पर इस विशाल देश पर शासन करते रहे, इसे लूटते रहे, प्रलोभन देकर धर्मान्तरित करते रहे किंतु हमने एक साथ विरोध करने में सैकड़ों वर्ष लगा दिए। हम भारतीयों का स्वभाव व्यक्ति अथवा समूह के प्रति भक्ति का अधिक है, राष्ट्र के प्रति भक्ति का कम। यही कारण है कि हममें से बहुत से लोग हिंदू, मुसलमान, जैन, बौद्ध, सिख, बंगाली, बिहारी, मराठी, सवर्ण-असवर्ण, बहुसंख्यक-अल्पसंख्यक आदि पहले हैं और भारतवासी बाद में। हम कांग्रेसी, भाजपाई, सपाई व बसपाई आदि पहले हैं, भारतीय जनतंत्र की व्यवस्था के जागरूक नागरिक पीछे हैं, इसीलिए देशहित को हाशिए पर धकेलकर अपने समूह के हितों और सुविधाओं के लिए  एक दूसरे के विरुद्ध जब-तब हिंसक आंदोलनों पर उतारू हो जाते हैं। हमारे चुने हुए नेतागण खुलेआम घोषणा करते हैं कि यदि उनके प्रांत का व्यक्ति राष्ट्रपति पद के लिए उम्मीदवार बनाया जाएगा तो वे उसे समर्थन देंगे, अन्यथा नहीं। इसका अर्थ यह हुआ कि उनकी दृष्टि में महत्व पद के अनुरूप योग्यता का नहीं बल्कि उम्मीदवार की क्षेत्रीयता-सामाजिकता का है। विचारणीय है कि क्या वे राष्ट्रपति अपने प्रदेश या समाज के लिए चुन रहे हैं अथवा सारे भारतवर्ष के लिए? नेताओं की क्षेत्रीय-भक्ति की ऐसी मानसिकता जनतंत्र के लिए शुभ नहीं हो सकती।

    स्वतंत्रता किसी भी प्रकार की संकीर्णता से ऊपर उठकर समग्रता में घटनाओं और नीतियों को देखने-समझने की अपेक्षा करती है किंतु दुर्भाग्य से राजनीतिक दलगत समूहों में बंटा देश स्वतंत्रता की इस अपेक्षा को महत्वपूर्ण नहीं समझता। अनेक तथाकथित धार्मिक नेता जेलों में बंद हैं फिर भी उनके भक्तों के मन में उनके प्रति श्रद्धा-भक्ति की कमी नहीं। भक्तों के बीच अब भी उनके जन्मदिन मनाए जाते हैं। भक्त उनकी जय-जयकार करते हैं। वे यह मानने को तैयार ही नहीं कि उनके गुरुदेव ने कहीं कुछ गलत किया है और अब वे उसी की सजा भुगत रहे हैं।

    भक्त समूह यह समझता है कि उसके गुरुजी निर्दोष हैं और उन्हें झूठे मामले में फंसाया गया है। यही अंधभक्ति राजनेताओं के संदर्भ में भी उनके समर्थकों में है। ई.डी. आदि संस्थाओं की कार्यवाहियों का व्यापक विरोध इस अंधभक्ति का ताजा सबूत है। हमारे संवैधानिक व्यवस्थापन में देश का कोई भी नागरिक कानून के ऊपर नहीं। फिर शक्ति-प्रदर्शन करके अपनी पसंद के नेतृत्व को आरोप मुक्त कराने के लिए इन संस्थाओं पर अनुचित दबाव क्यों ? जब हम यह मानते हैं कि सत्य की ही जय होती है तब ईमानदार सत्यवादी देशभक्त नेताओं और उनके समर्थकों को ईडी आदि से भयभीत होने की आवश्यकता नहीं होनी चाहिए। क्या सत्ता पक्ष इतना बलवान है कि निर्दोष विपक्ष को भी शूली पर चढ़ा दे? क्या हमारी न्यायपालिका व्यवस्थापिका के हाथों की कठपुतली मात्र है?

    क्या बिना सशक्त साक्ष्यों के वह किसी निरपराध को दंडित कर सकती है? यदि नहीं तो फिर संसद से सड़क तक भक्तों का विरोध प्रदर्शन क्यों? यदि उनके आराध्य निर्दोष हैं तो बेदाग छूट ही जाएंगे और यदि अपराधी हैं तो उन्हें भी सजा मिलनी ही चाहिए क्योंकि कानून से ऊपर कोई नहीं। आज भक्ति देश के प्रति जितनी अपेक्षित है, उतनी किसी दल अथवा व्यक्ति के प्रति नहीं। जो कार्य देश, जनता तथा जनतांत्रिक व्यवस्था के संरक्षण और संवर्धन के लिए हांे उनका समर्थन और जो इनके प्रतिकूल हों उनका विरोध करना हर नेता एवं प्रत्येक जनसमूह का पुनीत कर्तव्य है। यही स्वतंत्रता की सुरक्षा का तकाजा भी है।

    बड़े-बड़े पूंजीपतियों, कारोबारियों और ठेकेदारों को लाभान्वित करने के लिए बड़े-बड़े निर्माणों में देश के विकास का दंभ हमारे देश के कर्णधारों मिथ्या आडंबर ही अधिक सिद्ध हो रहा है। विदेशी अंग्रेजों के बनाए भवन, पुल आदि आज उनके जाने के 75 वर्ष बाद भी कामचलाउ स्थिति में सर उठाए खड़े हैं जबकि भारी लागत से बने विगत आठ-दस वर्षों के नए निर्माण भी ढहे जा रहे हैं। विदेशी पूंजी के बल पर हम आत्मनिर्भर बनने के सपने देख रहे हैं। हम भूल रहे हैं कि आत्मनिर्भरता केवल स्वावलंवन पर निर्भर करती है। उसे अपने संसाधनों से ही प्राप्त किया जा सकता है।

    एक ओर करभार बढ़ता जा रहा है दूसरी और वोट बैंक सशक्त करने के लिए सरकारें मुफ्त में राशन, बिजली, पानी बांट रही हैं। निर्धन वर्ग में अकर्मण्यता बढ़ रही है। बेरोजगारी बहुत है किंतु छोटे-मोटे काम करने वाले कारीगर-मजदूर ढूंढे नहीं मिलते। ऋण देकर प्राण-हरण की शोषक वृत्ति बढ़ी है। अमीर बनने की धुन युवाओं को अपराध की ओर धकेल रही है। सड़कें बदहाल हैं, पेट्रोल महंगा है, फिर भी अनियंत्रित गति से दौड़ती बाइकों और कारों की बढ़ती भीड़ में हम प्रगति का दावा ठोक रहे हैं। आत्ममुग्ध सत्ता-पक्ष और सत्ता में वापस आने के लिए कुछ भी करने को उद्यत आक्रामक विपक्ष– दोनों ही भारतवर्ष के ‘स्व’ से उत्तरोत्तर दूर हो रहे हैं। यूरोप की खूनी क्रांतियाँ भारत की शांत-भूमि में जड़े तलाश रही हैं। आवश्यकता एक बार फिर भारतीय समाज को भारतीय जीवन शैली के अनुरूप पुनर्गठित करने की है।

    महात्मा गांधी के ‘हिन्द स्वराज’ के अनुरुप आधुनिक संदर्भों में विकास का पथ तलाश करने की है। सत्ता-पक्ष और विपक्ष यदि देशहित मंे एक होकर इस दिशा में प्रयत्नशील हों और भ्रष्टाचार तथा वोट बैंक की दूषित राजनीति के चंगुल से व्यवस्था को मुक्त करा सकें, विभिन्न समूहों के मोतियों को राष्ट्रीय-एकता के सूत्र में पिरो सकें तो हमारी स्वतंत्रता और भी अधिक अमृतफल-दायिनी बन सकेगी। स्वतंत्रता उच्छृंखलता नहीं अनुशासन है। स्वतंत्रता के अमृत-महोत्सव पर हर देशवासी में यह बोध जाग्रत होना आवश्यक है।

    Shagun

    Keep Reading

    स्मृति भी कभी बड़ी नेता थी…अब फिर टीवी सीरियल की ओर

    चुनाव आयोग की मतदाता सूची पुनरीक्षण प्रक्रिया पर सुप्रीम कोर्ट ने कह दी बड़ी बात

    गुरु पूर्णिमा विशेष : आज्ञाकारी शिष्य को कौन हटाता है

    बहराइच के सीरियल रेपिस्ट ने खोले होश उड़ा देने वाले राज

    क्या सत्ता की चाहत में छिटक रहे हैं वसुंधरा राजे के सर्मथक

    तेजी से बढ़ता शहरीकरण खा गया जुगनों को

    Add A Comment
    Leave A Reply Cancel Reply

    EMAIL SUBSCRIPTIONS

    Please enable JavaScript in your browser to complete this form.
    Loading
    Advertisment
    NUMBER OF VISITOR
    164077
    Visit Today : 808
    Visit Yesterday : 2275
    Hits Today : 4062
    Total Hits : 5017942
    About



    ShagunNewsIndia.com is your all in one News website offering the latest happenings in UP.

    Editors: Upendra Rai & Neetu Singh

    Contact us: editshagun@gmail.com

    Facebook X (Twitter) LinkedIn WhatsApp
    Popular Posts

    लखनऊ: अखिल भारतीय साहित्य परिषद ने मनाया गुरुपर्व, श्रीधर बोले- विद्या वही जो जीभ पर नर्तन करे

    July 12, 2025

    नेपाल: संस्कृति का वैभव और साहसिक रोमांच

    July 11, 2025

    प्रेम और शांति का संदेश लेकर आ रही नई फिल्म ‘जिहादी: एक प्रेम कथा’

    July 11, 2025

    मैं मुंबई में रहती हूं, लेकिन मेरी आत्मा बिहार में बसती है: आयशा ऐमन

    July 11, 2025

    स्मृति भी कभी बड़ी नेता थी…अब फिर टीवी सीरियल की ओर

    July 11, 2025

    Subscribe Newsletter

    Please enable JavaScript in your browser to complete this form.
    Loading
    Privacy Policy | About Us | Contact Us | Terms & Conditions | Disclaimer

    © 2025 ShagunNewsIndia.com | Designed & Developed by Krishna Maurya

    Type above and press Enter to search. Press Esc to cancel.

    Newsletter
    Please enable JavaScript in your browser to complete this form.
    Loading