बलिदानी वीरांगना ऊदा देवी की याद में जागृति मंडल के कार्यकर्ताओं ने कैंडिल मार्च निकालकर दी श्रद्धांजलि
बाराबंकी। स्वाधीनता संग्राम की अमर बलिदानी वीरांगना ऊदा देवी की शहीदी दिवस पर पारख महासंघ एवं उत्तर प्रदेशीय पासी जागृति मंडल के कार्यकर्ताओं द्वारा सांसद उपेन्द्र सिंह रावत के नेतृत्व में कैंडिल मार्च निकालकर श्रद्धांजलि अर्पित की गई। बाराबंकी के पल्हरी चौराहा स्थित जेब्रा पार्क में श्रद्धांजलि सभा हुई तथा कैंडिल मार्च निकाल कर अंबेडकर चौक, नाका सतरिख स्थित डॉ भीमराव अंबेडकर पार्क में कैंडिल अर्पित कर श्रद्धांजलि दी गई।
1857 में भारत में जब अंग्रेज़ों के ख़िलाफ़ पहला विद्रोह हुआ:
इस अवसर पर पारख महासंघ के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष एवं सांसद उपेन्द्र सिंह रावत ने कहा कि ऊदा देवी, हज़रत महल बेगम की सेना का हिस्सा थीं. वो अपने पति के जीवन काल में ही सैनिक के रूप में शिक्षित हो चुकी थीं. ऊदा देवी पहले वहां पर सेविका थीं और सैन्य सुरक्षा दस्ते की सदस्य भी थीं. सेना में गार्ड प्राय: दलित जाति की महिलाएं हुआ करती थीं, जिनका काम सेवा था लेकिन सेवा के साथ उनमें से कुछ को चुन कर रानी या रानियां या राजा उनको प्रशिक्षित करते थे. साल 1857 में भारत में जब अंग्रेज़ों के ख़िलाफ़ पहला विद्रोह हुआ तो लखनऊ के नवाब वाजिद अली शाह को अंग्रेजों ने कलकत्ता निर्वासित कर दिया था। उस समय विद्रोह का परचम उनकी बेगम हज़रत महल ने उठाया। लखनऊ के पास चिनहट नाम की जगह पर नवाब की फौज़ और अंग्रेजों के बीच टक्कर हुई और इस लड़ाई में ऊदा देवी के पति मक्का पासी मारे गए।
लखनऊ के सिकंदरबाग़ इलाक़े में घना चौड़ा पीपल का पेड़ हुआ करता था:
सांसद ने बताया कि पति की मौत का सदमा ऊदा देवी के लिए प्रेरणा बन गया और वहीं से उनकी सोच और विचार में बदलाव हुआ। पति की मौत से दुखी ऊदा देवी ने अंग्रेज़ों से इसका कैसे बदला लिया?
ऊदा देवी पासी समुदाय से आती थीं। ऊदा देवी ने वीरता की मिसाल पेश कर सभी को दंग कर दिया और लखनऊ के सिकंदरबाग़ इलाक़े में घना चौड़ा पीपल का पेड़ हुआ करता था,16 नवंबर 1857 को गदर में. वीरांगना ऊदा देवी ने 36 अंग्रेज़ों को पीपल के पेड़ पर चढ़ कर मारा था। ऊदा देवी ने अंतिम सांस तक 36 अंग्रेज़ सिपाहियों को मार दिया। वीरता की यह कहानी लोककथाओं और जनस्मृतियों में ज़िंदा रहीं. लेकिन वक्त के साथ इस वीरता को अंजाम देने वाली ऊदा देवी का नाम इतिहास में धुंधला पड़ा रहा।
इस श्रद्धांजलि सभा मे उत्तर प्रदेशीय पासी जागृति मंडल के जिलाध्यक्ष अमरीश कुमार रावत, पारख महासंघ के जिलाध्यक्ष सुशील रावत, जीआईसी के प्रधानाचार्य डॉ राधेश्याम, राम लखन रावत, गणेश प्रसाद रावत, पुत्तीलाल रावत, रामानंद रावत, अतुल रावत, सुग्रीव चंद्रा रावत, लल्लन पासी, अशोक रावत, जेपी रावत, अनिल रावत, यूटा के जिलाध्यक्ष आसुतोष वर्मा, डॉ भीमराव अंबेडकर मेमोरियल सेवा समिति/पार्क-स्मारक अनुरक्षण समिति के अध्यक्ष रत्नेश कुमार, उपाध्यक्ष अमरेश बहादुर, उप सचिव विनोद कुमार, रमेश चौधरी, प्रदीप रावत, संजीव रावत आदि प्रमुख लोग उपस्थित रहे और कैंडिल मार्च में भाग लिया।