श्रीकृष्ण जन्माष्टमी विशेष: अरविंद कुमार ‘साहू’
बहुत साल पहले मेरे मन के मोबाइल में एक फोन आया था- “हलो! मैं कन्हैया बोल रहा हूँ। मैं आज आपके घर आ रहा हूँ ।”
मैने शिकायत की- “आप झूठे हो, छलिया हो। आप वादा तो करते हो, लेकिन निभाते नही। जाओ, मैं आपसे बात नहीं करता ।”
तभी बाँसुरी की एक सुरीली धुन सुनायी पड़ी, साथ में मनुहार सी आयी- “प्रिय अरविंद! तुम तो जानते हो कि मुझे कितने काम रहते हैं। दुनिया के हर हृदय में रोज एक महाभारत चलता रहता है। मैं सदैव शान्ति और युद्ध के प्रयासों में सामन्जस्य बनाने में लगा रहता हूँ, इसलिये बिलम्बित हो जाता हूँ। लेकिन तुम निश्चिंत रहो। मैं तुम्हे हर बच्चे की मुस्कान में दिखायी दूँगा, हर बाँसुरी की तान में सुनाई दूँगा। विश्व शान्ति के हर समाधान में उपस्थित रहूँगा। मैं तो तुम्हारे मन, वचन, कर्म और हर साँस में बसा हूँ। मुझे देखने के लिये तुम्हें प्रतीक्षा की नही, सिर्फ आँखें बन्द करने की जरूरत पड़ेगी। मेरे अस्तित्व को अनुभव करना पड़ेगा। फिर देखना, तुम्हारे पास शिकायत का मौका नही रहेगा।”
एक वह दिन था और एक आज का दिन है। अब मुझे कण-कण में अपने गोपाल की अनुभूति होती है। वो तो सदैव मेरे साथ ही थे, है भी और रहेंगे भी। यह विश्वास अटल हो गया है। मेरे मन की आँखों में उनकी मोहिनी छवि सदा के लिये बस गयी है। वो रोज मेरे घर आते रहते है। अब कोई शिकवा नही रहता।
घर- घर आनन्द भयो, जय कन्हैया लाल की