गौतम चक्रवर्ती
किसी भी राष्ट्र की स्वतंत्रता निस्संदेह उसके लिए एक महान गर्व करने वाला अवसर होता है, और स्वतंत्रता दिवस के दिन स्वतंत्रता दिलाने वाले वालिदानियों के वालिदान और उन्हे याद करने व देश को आजादी दिलवाने वाले उन सभी शहीदों के प्रति कृतघ्नता व्यक्त कर आजादी की खुशियां मनाने का अवसर है।
हम हमेशा अपनी आजादी को 15 अगस्त के दिन इसलिए याद करते हैं ताकि हमे हमेशा यह याद रहे कि पराधीनता का क्या कष्ट होता है? और दोबारा हम अपने और अपने देश की स्वतंत्रता को किसी कीमत पर नहीं खोने देंगे जैसा भाव हमारे प्रत्येक देशवासियों के ह्रदय में हमेशा मौजूद रहे।
किसी भी देश के लिए उसकी स्वतंत्रता और स्वतंत्रता दिवस का अर्थ, सपने, लक्ष्य और उसके हासिल करने का जज्बा कायम रखने के प्रति उत्साह व्यक्त करने का दिन है। लेकिन हमारे देश की आजादी का सही आंकलन कर उसके मर्म को हमारे नेतृत्व ने और नही देश के नागरिक ठीक ढंग से समझ पायें हैं। दरअसल हम आज़ादी के सही लक्ष्य की प्राप्ति और अपने हिस्से की भूमिका को ईमानदारी से नही निभा पायें हैं।
आजादी पाने के मद्देनज़र यह बात 15 अगस्त, वर्ष1947 को ही सुनिश्चित हो गई थी कि भारत की सत्ता के केन्द्र में अब ब्रितानी हुकूमत नहीं बल्कि केवल भारतीय जनमानस का ही शासन होगा और अब से राष्ट्रगीत गाने वाले किसी भी व्यक्ति पर कोड़े बरसाने वाला कोई नही होगा और सम्पूर्ण देश में हम जहां चाहें वहां, बेरोक-टोक राष्ट्र के तिरंगा ध्वज को लहरा सकेंगे और हम प्रत्येक भारतीयों को अभिव्यक्ति की आज़ादी होगी। प्रत्येक भारतीय अपना पेशा चुनने के लिए भी स्वतंत्र होगा। अब से किसी भी भारतीय विदेशी हुकूमत की नकेल पहन कर उसके अनुसार चलने को बाध्य नहीं होगा।
भारत का संविधान कैसा हो ? भारत के विकास का मॉडल कैसा हो ? और उसके क्रियान्वयन की जिम्मेदारी किसके पास होना चाहिए? यह सब कुछ तय करने की आज़ादी और जिम्मेदारी दोनों ही हम भारतीयों के हाथों में होगा।
संभवतः आज़ादी के इसी मॉडल को देशवासियों के समक्ष रखते हुए 15 अगस्त, 1947 के दिन भारत का स्वतंत्रता दिवस घोषित किया गया था, लेकिन अब यहां यह प्रश्न उठता है कि क्या यही आज़ादी मिलने का सही अर्थ है? यदि हां तो महात्मा गांधी से लेकर राजीव गांधी और अटल बिहारी बाजपेई तक जैसे लोगों ने और कई अन्य जननेताओं ने भी15 अगस्त, 1947 के दिन हमे प्राप्त हुई आज़ादी को अधूरी क्यों कहा ?
हम भारतीयों की एक बड़ी आबादी का एक हिस्सा जिस आज़ादी का इंतजार कर रहा है, वह पूरी आज़ादी आखिरकार है क्या ?
29 जनवरी, 1948 को जारी अपनी अंतिम वसीयत में देश के राष्ट्रपिता ने क्यों लिखा कि जब तक हमारे देश के सात लाख गांवों को सामाजिक, नैतिक और आर्थिक आज़ादी प्राप्त नहीं होगी, तब तक भारत की आज़ादी अधूरी कहलाएगी। सत्ता के प्रमुख प्रधानमंत्री के तौर पर अटल बिहारी बाजपेई ने भी देश की आज़ादी को अधूरी कहा था क्योंकि आज भी हमारे देश के फुटपाथों पर रात गुजारने वाले और आंधी-पानी सहने को मजबूर उन लोगों का क्या हैं? जरा उनसे पूछ कर तो देखिए कि एसे लोग पन्द्रह अगस्त के विषय में क्या ख्याल रखते हैं?
वर्ष 1909 में महात्मा गांधी ने स्वतंत्रता की सही अर्थ हमे दिया था।
’’स्वराज का मतलब अपना राज नहीं, बल्कि अपने उपर खुद का राज यानी खुद के ऊपर खुद का नियंत्रण अर्थात आत्मानुशासन।’’
…..महात्मा गांधी
हमारे देश को आज़ादी मिले भले 75 वर्ष गुजर गए हों लेकिन अभी भी दलितों, समाज के शोषित वर्गों एवम महिलाओं के प्रति हमारी आपकी सोच में कोई विशेष परिवर्तन नहीं हुआ है।
आज भी समाज में केवल नारी ही नहीं, दलितों संप्रदायों और अल्पसंख्यकों को उनकी आज़ादी की सीमा में रहने जैसी बातों को दौहराया जाता है इस तरह जरा सोच कर देखिए कि क्या हमे और आपको मिली आज़ादी को सम्पूर्ण कह सकते हैं ?
जब हम पूरी आज़ादी की बात करते हैं तो वास्तव में यह स्थिति वह है, जिसके सम्पूर्ण होने पर एक साधारण से साधारण व्यक्ति तक की पहुंच प्रत्येक चीज तक होती है और सम्पूर्ण आज़ादी कभी भी अकेले नहीं आती, न्याय समानता, बंधुता जैसी चीजों को अपने साथ ले कर आती है।
आइये, आज 75वें आज़ादी के इस पावन दिवस के अवसर पर हम स्वयं से यह प्रश्न पूछें कि क्या वर्तमान समय तक हम सभी देशवासियों को न्याय एवम समानता हासिल हो पाई है? क्या आज हम सभी भारतीयों के मध्य बिना भेदभाव के बंधुत्व की भावना जागृत हो पाई है? क्या भारतीय सत्ता से लेकर जनता तक सभी स्व-अनुशासित हो पाएं हैं ?