दोस्ती की दुश्मनी से बाज आए हम।
ज़िन्दगी ! इस बेरुख़ी से बाज आए हम।
घुन लगे सम्बन्ध जी कर मुस्कुराता है,
आज के इस आदमी से बाज आए हम।
चन्द रोज़ा चमक पे इतरा रही है जो,
कलमुँहीं इस चाँदनी से बाज आए हम।
दे न पाये तृप्ति का उपहार प्यासे को,
उस नदी की ज़िन्दगी से बाज आए हम।
आज पाया भी तुझे तो सिर्फ़ खोने को,
वक़्त की कारीगरी से बाज आए हम।
ये अँधेरे तो चलो फिर भी अँधेरे हैं,
बे – मुरव्वत रोशनी से बाज आए हम।
चाँद – तारे तोडना ये सिर्फ़ ख़्वाबों में,
उम्र की आवारगी से बाज आए हम।
- कमल किशोर ‘भावुक’, सन्नाटे में सरगम ( ग़ज़ल-संग्रह ) से