लौट लौट तुम आते हो
नव स्नेह, उमंग जगाते हो
नव रूप, स्वरूप दिखाते हो
क्या राज तुम्हारा है ऋतुराज
कभी बदलते पोशाक पत्र की
नव पल्लव, नव पुष्प खिलाते
डाल नई डाल जाते हो
क्या राज तुम्हारा है ऋतुराज
रंगों में शरमाते तुम
फूलों में भरमाते तुम
खुशबू बन मदमाते हो
क्या राज तुम्हारा है ऋतुराज
खेतों में अठखेली करते
फसलों में चुप दाने भरते
तितली, भ्रमर, मोर, कोयल छेड़ते
क्या राज तुम्हारा है ऋतुराज
गोरी के वस्त्रों में बसते
मन, उमंग, अंग में रमते
रंग, फ़ाग, टेसू, सेमर में हंसते
क्या राज तुम्हारा है ऋतुराज
भौरों के संगीत में बहकते
प्रेमी की प्रीत में चहकते
कवि ब्रज के गीत में छलकते
क्या राज तुम्हारा है ऋतुराज
पलाश
प्रकृति के प्रेम का मैं
अनुपम उदगार हूँ
दहकता हुआ बदन मैं
प्रकृति का श्रृंगार हूँ
बासंती रंग हूँ मैं
साजन की तलाश हूँ
वन में भटक रही जो
मैं प्रियतमा पलाश हूँ
कोयल की कूक हूँ
मैं वन मन का मोर हूँ
जादुई रंग से रंगी मैं
बसन्त की भोर हूँ
वन को, खेतों को, रिझाता
पवन हूँ, बयार हूँ
फाग की मस्ती मुझी से
ब्रज का अनकहा प्यार हूँ
- डॉ ब्रजभूषण मिश्र







