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    Home»ब्लॉग

    चीन सागर में हताशा की प्रतिक्रिया

    By August 25, 2017Updated:August 25, 2017 ब्लॉग No Comments5 Mins Read
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    असल में इस महत्वपूर्ण समुद्र इलाके से हर साल कम से कम पांच सौ अरब डॉलर के सामान की आवाजाही होती है। यहां तेल और गैस का विशाल भंडार है। यूएस डिपार्टमेंट ऑफ एनर्जी के अनुमान के मुताबिक यहां 11 बिलियन बैरल्स ऑइल और 190 ट्रिलियन क्यूबिक फीट प्राकृतिक गैस संरक्षित है। 1982 के यूनाइटेड नेशंस कन्वेंशन ऑन द लॉ ऑफ द सी के मुताबिक कोई भी देश अपने समुद्री तटों से 200 नॉटिकल मील की दूरी तक समुद्री संसाधनों, मछली, तेल, गैस आदि पर दावा कर सकता है। इस संधि को चीन, वियतनाम, फिलीपीन्स और मलेशिया ने तो माना लेकिन अमेरिका ने इस पर दस्तखत नहीं किए


    पंकज चतुर्वेदी 

    अमेरिका ने अपना युद्ध पोत साउथ चाइना सी में उतार दिया है। अमेरिका के इस कदम में जापान और भारत भी उसके साथ है। यहां जानना जरूरी है कि दक्षिणी चीन के समुद्र में सुलग रही आग काफी सालों से भड़कते-भड़कते बच रही है। यह भी जानना जरूरी है कि कोई 35 लाख वर्ग किलोमीटर में फैले दक्षिणी चीन समुद्र क्षेत्र का नाम ही चीन पर है और उस पर चीन का कोई न तो पारंपरिक हक है और न ही वैधानिक। इस पर मुहर पिछले साल 2016 के जुलाई में अंतर्राष्ट्रीय न्यायालय लगा चुका है। खुद को इतना दबाव में देख कर चीन बेवजह डोकलाम में सीमा विवाद कर दुनिया को युद्ध की धमकी के साथ दबाना चाहता है। जबकि अब भारत ने सिक्किम व अरुणाचल सीमा पर एक इंच भी पीछे हटने से इंकार कर दिया है।

    दक्षिणी चीन समुद्र का जल क्षेत्र, कई एशियाई देशों जिनमें वियतनाम, फिलीपींस, मलेशिया आदि शामिल हैं, के चीन के साथ तनाव का कारण बना हुआ है। चीन ने इस इलाके के कुछ द्वीपों पर लड़ाकू विमानों के लिए पट्टी बना लीं तो अमेरिका के भी कान खड़े हो गए। अमेरिका ने इस पर सख्त आपत्ति जतायी। पिछले दिनों अमेरिका की नौ सेना के समुद्री सर्वेक्षण विभाग द्वारा समुद्र के खारेपन और तापमान बाबत एक सर्वेक्षण हेतु इस समुद्री क्षेत्र में एक ड्रोन को पानी की गहराई में छोड़ा गया था। चीन ने अपनी नौसेना के जरिये उस ड्रोन को पानी से निकलवा कर जब्त कर लिया। विदेश नीति के माहिर लोग जानते हैं कि डोनाल्ड ट्रंप के चुनाव जीतते ही उनके द्वारा ताइवान के राष्ट्रपति तसाई इंग वेनमे से फोन पर बात करना चीन को नागवार गुजरा था। चीन का कहना है कि ताइवान पर उसका कब्जा है और उसने ताइवान को केवल प्रशासिनक स्वायत्तता प्रदान की है।

    दक्षिणी चीन समुद्र दक्षिणी-पूर्वी एशिया से प्रशांत महासागर के पश्चिमी किनारे चीन, ताइवान, फिलीपीन्स, मलेशिया, इंडोनेशिया और वियतनाम स्थित हैं। ये सभी देश इस समुद्र पर अपने-अपने दावे कर रहे हैं। 1947 में चीन ने नक्शे के जरिए इस पर अपना दावा पेश किया था। इसके बाद कई एशियाई देशों ने चीन के इस कदम से असहमति जताई। वियतनाम, फिलीपीन्स और मलेशिया ने भी कई द्वीपों पर दावा किया। वियतनाम ने कहा कि उसके पास जो नक्शा है उसमें पार्सेल और स्प्रैटली आइलैंड्स प्राचीन काल से उसका हिस्सा है। इसी तरह ताइवान ने भी दावा किया। गत 17 साल से फिलीपींस कूटनीतिक प्रयासों के जरिये चीन से दक्षिण चीन सागर विवाद सुलझा लेना चाहता था। बात बनी नहीं, तो फिलीपींस ने 2013 में हेग स्थित अंतर्राष्ट्रीय न्यायाधिकरण ‘पीसीए’ का दरवाजा खटखटाया। न्यायाधिकरण ने 12 जुलाई, 2016 को संयुक्त राष्ट्र समुद्री कानून के अनुच्छेद-258 को आधार बनाकर फैसला दिया कि ‘नाइन डैश लाइन’ की परिधि में आने वाले जल क्षेत्र पर चीन कोई ऐतिहासिक दावेदारी नहीं कर सकता।

    असल में इस महत्वपूर्ण समुद्र इलाके से हर साल कम से कम पांच सौ अरब डॉलर के सामान की आवाजाही होती है। यहां तेल और गैस का विशाल भंडार है। यूएस डिपार्टमेंट ऑफ एनर्जी के अनुमान के मुताबिक यहां 11 बिलियन बैरल्स ऑइल और 190 ट्रिलियन क्यूबिक फीट प्राकृतिक गैस संरक्षित है। 1982 के यूनाइटेड नेशंस कन्वेंशन ऑन द लॉ ऑफ द सी के मुताबिक कोई भी देश अपने समुद्री तटों से 200 नॉटिकल मील की दूरी तक समुद्री संसाधनों मछली, तेल, गैस आदि पर दावा कर सकता है। इस संधि को चीन, वियतनाम, फिलीपीन्स और मलेशिया ने तो माना लेकिन अमेरिका ने इस पर दस्तखत नहीं किए। वैसे तो दक्षिणी चीनी समुद्र पर अमेरिका का न तो कोई दावा है और न ही इसकी सीमा उससे कहीं लगती है। लेकिन वह इस महत्वपूर्ण मार्ग व ऊर्जा के भंडार पर निगाह तो रखता ही है। इस इलाके के ऊर्जा संसाधनों पर भारत की भी रुचि है। वियतनाम तो भारत को बाकायदा यहां गैस व तेल की खोज के लिए आमंत्रित भी कर चुका है। सन‍् 2011 में ओएनजीसी विदेश लिमिटेड ने जब वियतनाम में तेल की खोज आरंभ की, तो चीन काफी रोष में था। चीन कई बार अमेरिका को धमका चुका है कि वह दक्षिण चीन सागर से दूर रहे। चीन ने इन दिनों कहना शुरू किया है कि भारत यदि वियतनाम में तेल की खोज कर सकता है तो पाक अधिकृत कश्मीर में हमारे प्रोजेक्ट क्यों नहीं लग सकते।
    अमेरिकी चिंता है कि पेइचिंग इसका इस्तेमाल अपनी रणनीतिक पहुंच बढ़ाने के लिए कर सकता है। वहीं तेल व गैस के लिए अरब देशों पर उसकी निर्भरता का आधार भी कमजोर होता जा रहा है।  दूसरा घरेलू दवाब के चलते उस क्षेत्र में वह अब लंबे समय तक सेना रख नहीं पाएगा। ऐसे हालात में उसे तेल व गैस के नए भंडार चाहिए।

    चूंकि चीन को किसी भी सूरत में साउथ चाइना सी पर से अपना दावा और कब्जे को छोड़ना ही पड़ेगा, सो वह भारत के साथ सैन्य टकराव की बात कर रहा है। इससे एक तो अपने नागरिकों को वह अपनी ताकत पर विश्वास दिलाना चाहता है, दूसरा परमाणु संपन्न और दुनिया की दो बड़ी सैन्य ताकतों के टकराव के चलते विश्व युद्ध के भय को फैलाकर वह साउथ चाइना सी क्षेत्र में अपना कुछ हिस्सा बताना चाहता है।

    ब्लॉगपोस्ट से साभार

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