वेश्यावृत्ति से जुड़ी महिलाओं के दर्द को बयां करता नाटक “कहानी एक कोठे की”

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कहानी एक कोठे की, लखनऊ में प्रस्तुत एक नाटक

लखनऊ। संस्था विजय विला एक कदम खुशियों की ओर एवं संस्था भरत रंग की नाटक प्रस्तुति कहानी एक कोठे का मंचन वाल्मीकि रंगशाला में किया गया नाटक का लेखक एवं निर्देशन चन्द्रभाष सिंह का था। दर्शकों से पूरा प्रेक्षागृह खचाखच भरा हुआ था दर्शकों ने एक घंटे से अधिक अवधि के इस नाटक को खड़े होकर देखा। नाटक का सुभारम्भ मुख्य अतिथि श्री नानक चंद लखवानी एवं श्री रवीन्द्र सिंह गंगवार जी द्वारा दीप प्रज्वलित करके किया गया। नाटक “कहानी एक कोठे की” समाज के उस तबके की एक रचनात्मक कहानी है जिसे हम कभी अच्छी दृष्टि से नहीं देखते। कोठे पर काम करने वाली लड़कियां पुरूषों के भोग की वस्तु तो है पर सम्मान की हकदार नहीं।

नाटक एक ऐसे कोठे की कहानी कहता है जहाँ जिस्मफरोशी का धंधा होता है।क्या वेश्यावृत्ति से धन कमाना आसान है, एक कोठे को संचालित करने में कितनी तरह की दिक्कतों का सामना करना पड़ता है, आखिर ऐसी क्या वजह है जो उन्हें ऐसा घिनौना काम करने पर मजबूर करती है। कोठे पर काम करने वाली हर लड़की की अपनी अलग-अलग कहानी है जो किसी को भी द्रवित कर सकती है। यहां पर आने वाली हर एक लड़की ना जाने किन-किन मजबूरियों से लड़कर अपनी भावनाओं अपने दर्द को दबाकर काम करती है। यह जानते हुए भी कि ये दुनिया बाहरी दुनिया से बहुत अलग है, एक बार यहां आने के बाद सब खत्म। समाज में वेश्यावृत्ति को पैसा कमाने का सबसे आसान और गंदा जरिया माना जाता है, परंतु किसी को यह नहीं पता कि जितना आसान दिखता है उतना होता नहीं है । यहां पर काम करने वाली लड़कियों को क्या क्या झेलना पड़ता है, कितने दर्द सहने पड़ते हैं । अपना ज़मीर मारकर क्या कुछ नहीं सुनना पड़ता ।

कहानी एक कोठे की, लखनऊ में प्रस्तुत एक नाटक

नाटक में दिखाया गया है कि कोठे की मालकिन कितनी मुश्किलों में कोठे को संचालित करती है। कोठे में काम करने वाली चन्दा जिसका 13 साल की उम्र में बलात्कार उन लोगो ने ही किया जिनको वो भईया बोलती थी, पुलिस ने भी उन्हें ही दबाया , समाज ने भी ताने उसके आई- बाबा को ही दिए और अंत में वो हारकर काम के लिए शहर आई पर यहां भी उसे कोई काम नहीं मिला और अंत में वह भटकते-भटकते कोठे पहुंच गई।वहीं एक नौजवान कोठे पर इसलिए जाता है कि उसकी बहन जो कि 2 साल पहले गायब हो गयी है जिसका कुछ भी पता नहीं चल पाया, हो सकता है उसे किसी ने कोठे पर बेच दिया हो वो मिल जाय।

कोठे में लोकल विधायक का बेटा राजेश बाघमारे कोठे की लड़कियों के साथ जबरदस्ती करता है, उसका जब मन होता है चला आता है मना करने पर कोठे पर रेड डलवाता है, रेड डालने वाले सबकी बेज्जती करके चले जाते है। कोठे में तावड़े जो कि एक पुलिसकर्मी है आता जाता रहता है जिसे कोठे की मालकिन कोठे की सुरक्षा के लिए रुपये भी देती है पर वो इस बार कुछ नहीं कर पाता। बाघमारे और कोठे की एक लड़की शीला से एक बेटी भी है जो कि अभी सिर्फ 9 साल की है।

बाघमारे उस लड़की के साथ सोना चाहता है, तावड़े ये बर्दाश्त नहीं कर पाता और दोनों में हाथापाई शुरू हो जाती है इसी बीच शीला वाघमारे को गोली मार देती है, सब डर जाते हैं क्योंकि राजेश बाघ मारे विधायक का बेटा होता है अंत में कोठे की मालकिन अपने आपको कत्ल के जुर्म में गिरफ्तार करवाने और सभी लड़कियों को कोठे से बाहर जाने के लिए कहती है। नाटक में कलाकरों ने वेश्यावृत्ति से जुड़ी महिलाओं के हर दर्द को दिखाने का सफल प्रयास किया।

मंच पर चन्द्रभाष सिंह, जूही कुमारी,निहारिका कश्यप, श्री ऐश जयसवाल, अंजलि सिंह, साक्षी अवस्थी, अग्नि सिंह,विशाल वर्मा, कोमल प्रजापति, विशाल श्रीवास्तव, आशीष सिंह, करन दीक्षित, अंशुल पाल, रामचरन, वरुण सिंह आदि कलाकरों ने अपने अभिनय से सभी दर्शकों का मन मोह लिया वहीं मंच परे प्रकाश परिकल्पना एवं संचालन तारा उप्रेती, पार्श्व संगीत सौरभ शुक्ला एवं सह निर्देशन जूही कुमारी का था।

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