भक्तिवाणी : अजीत कुमार सिंह
चैत्र का महीना चल रहा है प्रभु श्रीराम का महीना चैत्र नए हरे पत्तों और फूलों से सजी प्रकृति को देख कर सहज ही समझ में आ जाता है कि मर्यादापुरुषोत्तम ने अवतरित होने के लिए चैत्र को ही क्यों चुना माघ की ओस में नहा कर पवित्र भाव से माथा झुकाये खड़े फलदार वृक्षों की पंक्ति जब स्वागत में खड़ी हो, तब आते हैं राम…सोच कर देखिये न युगों युगों तक महाराज इक्ष्वाकु के कुल ने तपस्या की, तब उनके आंगन में राम उतरे थे महाराज मनु और सतरूपा से लेकर हरिश्चंद्र, रोहित, सगर, भगीरथ, रघु, दिलीप, और भी अनेक तपस्वियों की तपस्या का प्रतिफल मिला राम के रूप में… जब असंख्य पीढ़ी के पूर्वजों के सत्कर्मों का फल, और आने वाली असंख्य पीढ़ियों का सौभाग्य जागृत होता है, तब किसी सौभाग्यवती कौशल्या की गोद में राम उतरते हैं राम को समझना है तो पहले महाराज दशरथ और माता कौशल्या को समझिये
पिता एक बड़े साम्राज्य के शासक होने के बाद भी राजा की तरह नहीं एक सन्त की तरह जीवन यापन करते हैं माता महारानी होने के बाद भी महारानी की तरह नहीं, सुमित्रा और कैकई की सहयोगी बन कर जीती हैं माता-पिता की यही सहजता ही पुत्र को मर्यादा पुरुषोत्तम बनाती है रामत्व को प्राप्त करने के लिए मनुष्य का सहज होना आवश्यक है
कथा है कि देवासुर संग्राम में महाराज दशरथ रानी कैकई को भी अपने साथ ले गए थे जहाँ उन्होंने युद्ध में उनकी बहुत सहायता की थी, और तभी प्रसन्न हो कर महाराज ने उन्हें दो वरदान दिया था एक महारानी का युद्धभूमि में जाना स्वयं में एक बहुत बड़ी घटना है अपने राजकीय कर्तव्य के प्रति ऐसा समर्पण कि अपनी पत्नी तक को युद्धभूमि में भेज दिया जाय अद्भुत ही है विश्व इतिहास में ऐसे उदाहरण अन्यत्र नहीं मिलते है तुलसी बाबा ने रामजन्म के लिए लिखा है कि “विप्र धेनु सुर सन्त हित लीन्ह मनुज अवतार…” सन्तान का चरित्र लगभग वैसा ही होता है जैसा उनके पूर्वजों का होता है
राम के पूर्वजों में सदैव से विप्र, धेनु, सुर और सन्त की रक्षा की भावना प्रबल रही थी धेनु की रक्षा के लिए महाराज दिलीप ने सिंह को स्वयं का मांस तक दे दिया था सुर(देवता) की सहायता के लिए स्वयं महाराज दशरथ लड़े थे तभी श्रीराम अपने जीवन में इन गुणों को सरलता से उतार सके हम अपनी संतान में जो गुण देखना चाहते हैं, हमें पहले उन गुणों को अपने अंदर धारण करना चाहिए तभी सन्तान गुणवान होती है मुझे लगता है कि चैत्र के महीने में सबको अपने परिवार में इष्ट मित्रों में भगवान श्रीराम की कथा सुननी-सुनानी चाहिए मर्यादा पुरुषोत्तम की मर्यादा को स्वयं में उतारने का यही सर्वश्रेष्ठ मार्ग है।