गर्मी अब प्रचंड रूप में अपना असर दिखा रही है। कोढ़ में खाज यह कि इन दिनों लू का प्रकोप भी बढ़ गया है। कुछ इलाकों में बरसात कहर ढा रही है। दरअसल पिछले कुछ वर्षों से विश्व भर में जलवायु में हो रहे बदलाव का प्रभाव करीब-करीब सभी मौसमों में दिखाई दे रहा है। जिसमें जाड़ा, गर्मी या बरसात में अजीब ढंग की अनियमितता सामने आ रही है। इसका असर केवल इंसानों पर ही नहीं बल्कि सभी जीवों पर पड़ रहा है।
भारत-पाक सीमा पर पारा पंहुचा 50 डिग्री, विभिन्न बॉर्डर चौकियों पर दर्ज किया 50 पार तापमान, 50 डिग्री तापमान में गश्त लगाते बीएसएफ के जवान, जिस गर्मी से रेत में जूते पिघल जाएं, वहां पैट्रोलिंग करते हैं हमारे जांबाज जवान, 50 डिग्री की भीषण तपन में जवान कर रहे सीमा की
यह बदलाव इसी बात से पता लग जाता है कि लू से जुड़ी मौतें गर्मी से मरने वालों की कुल संख्या का एक तिहाई और दुनिया भर में हुई कुल मौतों का एक प्रतिशत हैं। पिछले तीस वर्षों के मौसम के अध्ययन से यह भी पता चलता है कि हर साल गर्मी में एक लाख तिरपन हजार अतिरिक्त लोगों की जान चली जाती है जिसमें लगभग आधी मौतें एशिया में व तीस प्रतिशत से ज्यादा यूरोप में होती हैं। भारत में ही लू से हर साल तीस हजार से ज्यादा की मौत लू होती है।
मौसम विभाग के अनुसार देश के उत्तर-पश्चिम हिस्से में अभी चार-पांच दिनों तक उमस भरी गर्मी का असर दिखाई | देता रहेगा। कुछ जगहों पर यह बढ़ भी सकता है। वैसे भी देश के कई स्थानों पर तापमान 45 से लेकर 49 डिग्री तक चल रहा है। लखनऊ में भी पारा इस समय 44 डिग्री से ज्यादा है।
मौसम के इस कहर से बचने को जरूरी है कि सजगता लाई जाए। ज्यादातर लोग, खासकर गरीब वर्ग, मौसम की इस मार को सहना अपनी नियति समझ लेते हैं और इसके असर से कम से कम प्रभावित रहने के उपाय नहीं करते। इसकी मुख्य वजह यह है कि तापमान में होने वाले परिवर्तन के कारण होने वाली मौतों को प्राकृतिक आपदा की श्रेणी में मान लिया जाता है और इससे बचाव के इंतजामों पर ध्यान नहीं दिया जाता। जरूरत यह है कि इस तरह के इंतजामों के प्रति आम लोगों में जागरूकता फैलाने और उन्हें सजग रखने के लिए विभिन्न स्तरों पर रणनीतियां बनाई जाएं।