Share Facebook Twitter LinkedIn WhatsApp Post Views: 340 आंखों में घिरे हैं बादल सावन जैसे बरसे हैं हरियाली उनके हिस्से में हम तो केवल तरसे है।। एक तरफ दलदल है कितना एक तरफ चट्टाने है किसको मन की व्यथा बताएं ये सब तो बेगाने है मनमानी बह रही हवाएं कदम बढ़ाने पड़ते है हम तो केवल तरसे है।। डॉ दिलीप अग्निहोत्री