संप्रग सरकार के कार्यकाल में जब शिक्षा का अधिकार अधिनियम लागू हुआ तो उम्मीदें थीं कि गरीब बच्चों के बच्चों को भी अब अच्छी और स्तरीय शिक्षा मिल सकेगी क्योंकि ऐसे परिवार कायदे के स्कूलों का खर्च उठा पाने की स्थिति में नहीं होते। इस जरूरत को पूरा करने के लिए अधिनियम में कई स्तरों पर स्पष्ट प्रावधान भी हैं। फिर भी बड़े और नामी गिरामी सहित कई स्कूल इन वर्गों के बच्चों को अपने यहां प्रवेश देने से किसी न किसी बहाने की आड़ में बचते रहे हैं।
लखनऊ में तो ऐसे ही एक मशहूर स्कूल के कर्ताधर्ता कोर्ट में मामला जाने के बाद भी तमाम तरह के बहाने बनाते रहे थे। मुख्य कारण ये है कि शिक्षण से जुड़ी व्यवस्था और सुविधा के नाम पर जो तमाम लंबी- चौड़ी फीस वसूली जाती है, वह इन वर्गों के बच्चों से नहीं मिलती जिससे उनके व्यवसाय में घाटा होता। यह कानून का स्पष्ट उल्लंघन तो है ही, शिक्षा के मंदिर के रूप में स्कूल की अवधारणा के भी विरुद्ध था।
अधिकारियों द्वारा भी इसके लिए औपचारिकता भर की ही कार्रवाई होती थी जिससे कुछ स्कूल बेधड़क अपनी मनमानी चला रहे थे। इस पृष्ठभूमि में योगी सरकार द्वारा कड़ा रुख अख्तियार करना बेहद सराहनीय है। इसमें गरीब परिवारों के अभिभावकों को प्रोत्साहित करने के फलस्वरूप आवेदन प्रक्रिया के पहले ही चरण में सवा लाख से ज्यादा आवेदन आ चुके हैं। अच्छी बात यह है कि प्रदेश के लखनऊ और वाराणसी सहित कई बड़े शहरों में भी बड़ी संख्या में आवेदन प्राप्त हुए हैं। मतलब यह है कि इन गरीब वंचित परिवारों में अपने बच्चों को स्तरीय शिक्षा दिला पाने के प्रति भरोसा जगा है। इसीलिए सरकार ने जिलों को प्रवेश प्रक्रिया जल्द पूरी करा कर बच्चों के अधिकार को सुनिश्चित करने का निर्देश भी दिया है।