जीवन की जो भी परिस्थितियाँ हमारे अनुकूल नहीं रहीं हमने चाहे कितना भी कष्ट उन क्षणों में क्यों ना पाया हो लेकिन वस्तुतः सत्य यही है उन्हीं क्षणों ने हमें आगे बढ़ने को और जीवन के वास्तविक सत्य का अनुभव कराया होगा प्रतिकूल पलों में व्यक्ति के सोचने का और करने का एक अद्भुत स्तर हो जाता है सम्मान भी आगे बढ़ने को प्रोत्साहित करता है लेकिन कभी गहराई से विचार करना, कोई आपके अस्तित्त्व को चुनौती दे तो आप पूरी निष्ठा से अपने आप को सिद्ध करने में लग जाते हो हम सड़क पर चलते हैं कितने भीड़ और वाहन चल रहे होते हैं फिर भी हम सावधानी पूर्वक अपनी गाड़ी को अपने गन्तव्य तक तो पहुँचा ही देते हैं आदमी सदैव सोचता है मै कैसे करूँ समय मेरे अनुकूल नहीं है ? अवसरों का इंतिज़ार मत करो अवसरों का निर्माण करो।
- अजीत कुमार सिंह