सागर के जन्मदिन पर विशेष
बलिया-उप्र के एक छोटे से गाँव ककरी में एक दलित परिवार में जन्मा एक बच्चा गरीबी से संघर्ष करता हुआ पढ़ाई-लिखाई करता है और बी.एच.यू.-वाराणसी जा पहुँचता है। उच्च शिक्षा के प्रति उसकी गहरी ललक उसे देश के प्रतिष्ठित जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय, नई दिल्ली तक ले जाती है। वहां से सफलतापूर्वक एम.फिल., पी-एच.डी. करने के बाद वह डॉ. सागर कहलाने लगता है। लेकिन अपनी मंजिल के लिए उसकी यात्रा अभी शेष रहती है, जो फिल्म नगरी मुम्बई की विशाल दुनिया में गीतकार के रूप में जगह बनाने के साथ ही अपना आकार पाती है। अविनाश दास की हाल की चर्चित फिल्म ”अनारकली आरा” में डॉ सागर द्वारा लिखित गीत- ”मोरा पिया मतलब का यार” आज भी अपनी ख़ास लोक भंगिमा के चलते लोगों की जुबां पर है। इसके पूर्व ”लाली की शादी में लड्डू दिवाना”, ”मैं और चार्ल्स”, ”लव यू सोनियो” जैसी कई हिंदी फिल्मों समेत अनेक भोजपुरी फिल्मों के लिए सागर के लिखे गाने काफी सराहे गए। सबसे ख़ास बात यह रही कि आरंभ से सागर के गाने उदित नारायण, कुमार शानू, साधना सरगम से लेकर राहत फ़तेह अली खान जैसे नामे-गिरामी गायकों ने गाए। सुधीर मिश्रा की फिल्म के लिए भी उन्हें गाने लिखने का अवसर मिला है। एक गाने से प्रभावित होकर फिल्म एक्टर इरफ़ान ने सागर को मिलने के लिए बुलाया।
सागर बड़ी तन्मयता, मेहनत और ज़ज्बे के साथ अपने काम में जुटे हुए हैं। अपने घर में ये अकेला कमाने वाले हैं और सबका खर्च चलाते हैं। भतीजे-भतीजियों को पढ़ाते हैं। सागर का सपना था कि उनके गाँव वाला घर उनके गीतों के पैसे से बने, हाल ही में उनका वह सपना भी पूरा हुआ।
सागर जेएनयू में मेरा जूनियर रहा, लेकिन उससे ज्यादा प्यारा-दुलारा छोटा भाई । तब भी और आज भी। हम एक ही हॉस्टल (कावेरी) में रहे| उस समय जेएनयू के घनघोर अंग्रेज़ीदां माहौल में सागर के भोजपुरी गीत और खुद सागर बेहद लोकप्रिय थे| किसी भी हॉस्टल का कोई ”हॉस्टल नाईट” ऐसा नहीं होता, जिसमें सागर को भोजपुरी गीत सुनाने के लिए न बुलाया जाता हो। उसे सुनने के लिए भीड़ उमड़ती। सागर तब भी उतना ही सहज व मिलनसार था और आज भी| मेरे जैसों के लिए सागर की महता इसलिए भी थोड़ी ज्यादा है कि वह जिस वंचित समुदाय से आता है, उसको लेकर सजग एवं चेतनाशील है। उसके आदर्श व प्रेरणास्त्रोत बाबासाहेब डॉ अम्बेडकर हैं, जो उसे निराशा में भी हिम्मत और ताकत देते हैं।
सुनील कुमार की वॉल से