गौतम चक्रवर्ती
देश में फैली बेरोजगारी, महंगाई को लेकर जिस तरह से कांग्रेसी नेता सड़कों पर उतर कर विरोध प्रदर्शन करने के दौरान राहुल गांधी ने भीड़ को संबोधित करते हुए यह कह डाला कि “देश में लोकतंत्र मर रहा है”, यह वास्तव में चिंतिनीय है।
अगर देखा जाए तो लोकतंत्र एक प्रकार की शासन व्यवस्था है और उसमे सभी देशवासियों को एक समान अधिकार प्राप्त होता हैं। देश में यह शासन प्रणाली लोगो को सामाजिक, राजनीतिक एवम धार्मिक स्वतंत्रता प्रदान करती हैं। जहां तक हमारी जानकारी है कि फिलहाल हमारे देश में राजनीति से लेकर सामाजिक एवम धार्मिक स्वतंत्रता आज तक कायम है हां यह बात अलग है कि देश में बेरोजगारी और महंगाई बढ़ी अवश्य है लेकिन यह दोनो हमारे देश में मात्र आज के समय में नही है बल्कि यह समस्याएं एक लम्बे समय से हमारा पीछा कर रही हैं। जिसके उदाहरण स्वरूप हम कहे तो सिनेमा हमारे समाज का आइना होता है उसमे उस समय की वस्तुस्थिति और समस्याओं को दर्शाया जाता है। जैसे शायद आपको याद होगा कि हमारे यहां मंहगाई पर बनने वाली सिनेमा में “रोटी कपड़ा और मकान” वर्ष 1974 में बनी हिन्दी फिल्म है।
यहां यह कहने का अर्थ है कि वर्ष 1974 में देश में श्रीमती इंदिरा गांधी की नेतृत्व में कांग्रेस पार्टी ही देश की शासन सत्ता पर काबिज थी। तो उस वक्त भी देश बेरोजगारी और महंगाई से जूझ रही थी। (भारत में श्रीमती गांधी ने जून 1970 से नवंबर 1973 तक गृह मंत्रालय और जून 1972 से मार्च 1977 तक अंतरिक्ष मामले के मंत्रालय का प्रभार संभाला था।) इसलिए कहना यही पड़ता है कि कुछ भी बोलने से पहले आगे – पीछे के इतिहास में झांक अवश्य लेना चाहिए कि हम क्या बोलें और क्या नहीं?
महंगाई और बेरोजगारी से लोकतंत्र के मरने और जीने से क्या वास्ता इस तरह के वक्तव्य से अपने आपको को चर्चा में बनाए रखने के लिए प्रयोग अवश्य किया है लेकिन इस तरह के उदाहरण, नारों, स्लोगनों के सहारे क्या कांग्रेस पार्टी को कोई राजनीतिक लाभ मिलने वाला है? इसके उत्तर में हम नही ही कहेंगे बल्कि इसके स्थान पर कुछ पुख्ता कार्य धरातल पर करना चाहिए जिसे लेकर कांग्रेस लोगों के सामने मजबूती से उभर कर आ सके।
वैसे आपको यहां कह दें कि कांग्रेस गांधी परिवार का पर्याय बन चुकी है, इसलिए वह कितना भी यह साबित करने की कोशिश करे कि उनके नेताओं को डराया जा रहा है, लेकिन देश की जनसाधारण को यह बात समझ में नहीं आने वाली है क्योंकि अभी कुछ ही दिनों पहले तक कांग्रेस संसद के भीतर-बाहर यह कह कर हंगामा खड़ा कर रही थी कि मोदी सरकार महंगाई पर कोई बात करने को तैयार नहीं है लेकिन जब इस पर चर्चा हुई तो उसके सांसद सदन से बाहर निकल गए तो इसका आशय क्या है? यही न की सरकार को किसी भी तरह घेरते रहो और जब सदन में चर्चा करने की बारी आए तो सदन से उठकर चले जाओ। लेकिन सही बात तो यह है यदि कांग्रेस को मौजूदा सरकार को घेरना ही है और अपने आपको व पार्टी के खड़ा करना है तो मजबूती के साथ कोई पुख्ता सबूत के साथ ज्वलंत मुद्दे को उठाना पड़ेगा।
हां यहां इससे बात से इन्कार नहीं किया जा सकता है कि कोविड महामारी और फिर रूस-यूक्रेन युद्ध जैसे विशेष परिस्थितियों के कारण विश्व के दूसरे देशों की ही तरह हमारे देश में भी महंगाई बढ़ी अवश्य है, लेकिन देश में चाहे कोई भी सरकार क्यूं ना हो वह मात्र इस पर नियंत्रण पाने की हर संभव प्रयास भर कर सकती है न कि खत्म कर सकती है। आज हमे जिस तरह से हमारे देश में बढ़ रही महंगाई से लड़ने की जरूरत है, ठीक उसी तरह से राजनीतिक भ्रष्टाचार को भी हमे जड़ से उखड़ फेंकना होगा।