नवेद शिकोह
लखनऊ, 07 मार्च। पद्मावत, तीन तलाक, राष्ट्रभक्ति, वंदेमातरम्, गौ माता, भारत माता, लव जेहाद….. बातों पर हल्ला मचाने वाली मजदूरी के क्रम में पत्थर तोड़ने यानी मूर्तियां तोड़ने की नयी मजदूरी के लिये शुभकामनाएं, बेस्ट आफ लक।
मूर्ति में भगवान नहीं हैं
काबे में ख़ुदा नहीं है
भारत माता की मूर्ति में भारत नहीं है
लेनिन की मूर्ति में लेनिन के विचार नहीं हैं।
अम्बेडकर, श्यामा प्रसाद मुखर्जी, राम मनोहर लोहिया… की मूर्तियों के पत्थर में इनकी विचारधारा नहीं हैं। इनकी विचारधारा तो इंसानों के दिलो दिमाग में है।
खुदा, भगवान, राम.. यीशू.. गुरु नानक, साईं बाबा… भी पत्थरों में नहीं सब के सब इंसानों में बस्ते हैं।
लेनिन के विचार भी इंसान में हैं।
भारत का सुख-दुख, भारत माता नाम की पत्थर की मूर्ति में नहीं, आम भारतीय इंसानों के सुख-दुख, खुशहाली – बदहाली में है भारत।
एक दूसरे की मूर्तियां तोड़ो या ना तोड़ो, कोई फर्क नहीं पड़ता। लेकिन इंसान को मत तोड़ना। इंसानों को मत चोट पहुंचाना, इंसानों को मत जख्म पहुंचाना.. क्योंकि इंसान मे ही खुदा भी है भगवान भी है, राम भी हैं, भारत भी है, राष्ट्रवाद भी है, भारत मां भी है, सांई भी हैं, गांधी भी हैं.. श्यामा प्रसाद मुखर्जी भी हैं, लेनिन भी हैं, सावरकर भी हैं, अम्बेडकर भी हैं, लोहिया भी है, टेरेसा भी हैं, मंडेला भी हैं और हर किसी की भक्ति और विचारधारा भी हैं। इसलिए इंसानों पर जुल्म मत करना।
मूर्तियों को तोड़कर तुम्हारी बर्बाद जिन्दगी का बर्बाद वक्त तो कट ही जायेगा। तुम्हारी मजदूरी की कीमत भी मिल जायेगी। बेहतर होता कि तुम दूसरे पत्थर तोड़कर मजदूरी कर लेते।
हांलाकि तुम्हारी शैतानी से फर्क मूर्तियों को भी नहीं पड़ेगा, क्योंकि हर विसर्जन के बाद ही नयी मूर्तियों की स्थापना होती है। मूर्ति विसर्जन ना हो तो मूर्ति स्थापना नही हो सकती।