जब हालात ऐसे ही हैं : अजीत कुमार सिंह
प्रेमी के साथ मिल कर पति के शरीर के पन्द्रह टुकड़े करने वाली हीरोइन की वायरल खबर पढ़ने के बाद भी मैं समाज की उस पारंपरिक मान्यता पर डटा रहूंगा कि स्त्रियां देवी होती हैं मैं तब भी अधिक विचलित नहीं हुआ था जब पत्नी और सास की लूट से टूट कर फाँसी चूम ली थी उस बेंगलुरु वाले लड़के ने तब भी नहीं, जब दहेज के झूठे केस में फँस कर बर्बाद होते लड़कों की मार्मिक कहानियां टकराती हैं कानों से मैं सुन कर अनसुना कर देता हूँ सर झटक कर आगे बढ़ता हूँ इस विश्वास के साथ कि आगे सौभाग्य की सुंदर कहानियां मेरी प्रतीक्षा कर रही हैं ठीक वैसे ही, स्त्रियों पर होने वाले अत्याचारों की घटनाएं मुझे दुखी करती हैं पर मैं यह नहीं मान पाता कि सारे पुरुष स्त्री विरोधी होते हैं प्रेम में छली गयी लड़कियों का शव जब सूटकेसों में पड़ा मिलता है तब भी इसके लिए व्यक्ति या समूह को अपराधी मानता हूँ, पुरुष जाति को नहीं… आंगन से बाजार तक केवल स्त्री होने के कारण प्रताड़ना झेल रही स्त्रियों को खूब देखा है मैंने फिर भी यही मानता रहूँगा कि स्त्री के लिए सुरक्षित संसार बनाने का दायित्व पुरुषों का है और वे इसके लिए अपना जीवन खपा देते हैं।
जीवन में किसी असभ्य साथी का मिलना हमारा दुर्भाग्य होता है,और कुछ लोगों के हिस्से में आ ही जाता है दुर्भाग्य… जो सड़क रोज ही असंख्य युवकों को देहात की गलियों से निकाल कर शहर के वातानुकूलित कार्यालयों में गद्दीदार कुर्सियों तक ले जाती है,उसी सड़क पर पल भर की असावधानी से अपना भविष्य खो देते हैं कुछ मेधावी लोग !
आप कहेंगे कि किसी एक व्यक्ति के अपराध से जन्म लेता है दूसरे का दुर्भाग्य, मैं मान लूंगा सच ही तो है… आरे से चीर दी गयी गिरिजा टिक्कू के जीवन का दुर्भाग्य उन कश्मीरी आतंकियों के अपराध के कारण ही जन्मा था पर यह उन आतंकियों का अपराध था,
इसे पुरुष जाति का अपराध बताना धूर्तता है ठीक वैसे ही, जैसे उस हत्यारन हीरोइन के कारण स्त्री जाति को ही कठघरे में खड़ा करना मूर्खता है किसी स्त्री के रेयर अपराध की चर्चा के समय मैं याद करता हूँ अपने आसपास की उन दर्जनों देवियों को जिन्हें परिवार के लिए स्वयं की देह गलाते देखा है मैंने, अपनी स्त्रियों के जीवन को कठिन बनाने वाले पुरुषों की कहानियों के समय मैं याद करता हूँ अपने पड़ोस के उन सभी पुरुषों को, जो स्त्री पर हाथ उठाने को कायरता का प्रमाण मानते हैं मैं याद करता हूँ, ताकि बची रहे मेरी सकारात्मकता ताकि जीवित रहे मेरे भीतर का मानुस ताकि बना रहे मेरे भीतर का धर्म… पर इसका अर्थ यह भी नहीं कि मैं माफ कर दूं अपराधियों के अपराध मैं चाहता हूं कि हर ताड़का तक शीघ्र पहुँचे राम के तीर, कट के शीघ्र गिरे हर सूर्पनखा की नाक, और शीघ्र ही अलग हो जाएं हर रावण के दसों शीश, ताकि अपने राजमहलों से निर्वासित लोग घने वन में भी निर्विघ्न काट लें अपने जीवन का अभिशाप यह सुन्दर संसार सुन्दर बना रहे तो सुन्दर है यह देश सीता का है, राधा का है, शबरी और अनुसुइया का है ताड़काएँ अपवाद हैं लोक उनका तिरस्कार करता है, उनके कारण सबका नहीं…