खुद के खिलाफ
खुद के खिलाफ
खुद से लड़ना और
खुद से हार जाना हर रोज..
हर रोज
अल्लसुबह धुंधलके अंधेरे में
हथियार पैने करना, लगाम कसना और
खुद के लहू से अभिषेक कर
खुद के बाहर निकल पड़ना
एक ऐसे युद्ध में शरीक होने
जहां सामने कोई नहीं है खुद के अलावा
लेकिन युद्ध तो जारी है अनवरत
खुद के खिलाफ
इस जिंदगी के पार
जीतने की लालसा की लपलपाती कौंध में
हर रोज..
हर रोज
बार-बार उठता हूं हार-हार कर
खुद को संभालता हूं
थोड़ी नाराजगी से
खुद को पसंद करता हूं
थोड़ी नापसंदगी से
हर रोज..
- आनंद अभिषेक