मैं नदिया
पहाड़ों से, पठारों से, मैं
बूंदों में उतरती हूँ
वादियों में,घाटियों में
मैं धीरज से सँवरती हूँ
किनारों में, मैं धारों मे
झरनों में उतारों में
खेतों में, और बागों में
सहज होकर,पसरती हूँ
मेरी कल कल,कभी सुनना
ये संगीत है, किसानों का
मेरी हर चाल और मेरी राह
है गीत ,अन्न के दानों का
मुझे तुम, बाँध देते हो
मेरा पथ, मोड़ देते हो
आई विपत्ति और बाढ़ सब
मुझसे ही जोड़ देते हो
मैं, तुमसे, कुछ नहीं कहती
स्वयम की लय में, मैं रहती
मुझे, गन्दी, तुम्हीं करते
मुझे, सब दोष देते हो
मुझे, मुझमें ही रहने दो
मेरा पथ तो, मुझे दे दो
दूँगी सब खुशियाँ, मैं तुमको
ब्रज,मुझे, प्रकृति में बहने दो
स्वर्णिम हो जाते हरे खेत
स्वर्णिम, हो जाते, हरे खेत
नीला नभ, और बादल भी श्वेत
करें सभी, तुम्हारा इंतजार
ऐ, धूप तुम्हें, हम करें प्यार
चमक कहीं और छाया कहीं
सब दिखे, प्रकृति में है, यहीं
ये होता, नित ही, अद्भुत रूप
है,चमक तुम्हारी, अद्भुत धूप
नित, दृश्य, नयन में बस जाते
परबत, नदिया, सब इठलाते
पगडंडी, क़रतीं है यहाँ सैर
ब्रज, धरती मेरी, नहीं, कोई गैर
- डॉ ब्रजभूषण मिश्र