कम बोलने से तनाव नहीं होता, बिना सोचे बोलने से अनर्थ हो सकता है …!
कभी कभी हम दूसरे व्यक्ति के सुख-संसाधनों को देखकर तनाव पालने लगते हैं यह तनाव निराधार है क्योंकि हम उसके ऊपर की खुशी देखते हैं उसके अन्दर के अहंकार और भय को नहीं देखते जो संपत्ति मन में अहंकार पैदा कर दे वह सम्पत्ति कभी खुश नहीं रख सकती ऐसे धन से सुख नहीं बढ़ता वरन् कष्ट और दुख ही बढ़ते हैंअतः धन शरीर ,मन मष्तिस्क को स्वस्थ रखते हुए अपने परिश्रम का हो ,संचय अपने जरूरत का हो ,व्यय उपयोग के अनुसार हो तथा दरवाजे से कोई भूखा न जाय तथा सुपात्र का उपकार करने की इच्छा पूरी हो जाय ,इतना ही धन तो हमें चाहिए और अन्त में तो अमीर हो या गरीब सबको सिर्फ दो ही गज जमीन की जरूरत होती है इससे ऊपर की संपत्ति तो अहम् के लिये ही चाहिए कि हमारे पास इतनी जमीन है, इतने मकान हैं इसलिए हमारे पास जो कुछ अपनी मेहनत अपनी बुद्धि से है, उसी में सन्तुष्ट रहने से सुख मिलेगा।
दुनिया में ऐसे बहुत से लोग हैं, जिनके पास हमसे भी कम है, फिर भी वे आनन्द के साथ रह रहे हैं एक व्यक्ति भगवान को कोसता हुआ अति दुखी मन से चला जा रहा था क्योंकि उसके पास पाँव में पहनने के लिये जूते नहीं थेकुछ दूरी चलने के बाद उसकी नजर एक ऐसे व्यक्ति पर पड़ी जिसके पाँव ही नहीं थे यह देखकर उसको समझ आयी और वह ईश्वर को धन्यवाद देने लगा कि प्रभु ने उसे लँगड़ा-लूला तो नहीं बनाया।
महापुरुषों का कथन है कि मानसिक शान्ति के लिये हम कभी किसी की आलोचना अथवा निन्दा न करें और केवल अपने काम से काम रखें भगवान ने हमें स्वयं के लिये थानेदार या जज नियुक्त किया है दुनिया के लिये नहीं हमको स्वयं के निगरानी की आवश्यकता है संसार की नहीं जब आप स्वयं की निगरानी स्वयं करने लगेंगे तो गलत काम स्वतः आप से दूर होने लगेगा आपकी आत्मा बलवती होती जायेगी और आपको हमेशा सही रास्ते पर ले जायेगी अतः आत्म निरीक्षण बहुत ही आवश्यक है कम बोलने से तनाव नहीं होता है बिना सोचे बोलने से अनर्थ हो सकता है महाभारत का महायुद्ध इसका ज्वलन्त प्रमाण है जैसा कि सुना जाता है कि द्रौपदी ने दुर्योधन को ‘अन्धे का पुत्र अन्धा’ क्या कह दिया, पाण्डवों पर मुसीबतों का पहाड़ टूट पड़ा और कुरुवंश तो समूल नष्ट ही हो गया।
तनावरहित जीवन का एक सूत्र यह भी है कि हम किसी से कोई आशा या अपेक्षा न रखें, यहाँ तक कि अपनी संतान से भी नहीं अपेक्षा विषाद की जननी है भगवान पर भरोसा रखें और अपनी मदद स्वयं करें’आशा एक राम जी से दूजी आशा छोड़ दे’दुर्दिनों से लड़ने का सबसे शक्तिशाली हथियार धैर्य हैकोई हमारा अपमान करे तो हम उसके प्रति मन में दुर्भावना न रखें मान अपमान भी प्रभु की इच्छा से होता है दुख पालने से हमारा ही नुकसान होता है।
पहले बना प्रारब्ध अरु पाछे बना सरीर।
तुलसी चिंता छाड़िकै काहे धरै न धीर॥
तनाव कम करने के लिये जरूरी है कि आज का काम आज ही कर लिया जाय याद रखें भगवान ने हमें दुख पाने के लिये इस संसार में नहीं भेजा है हम सुखस्वरूप परमात्मा के अंश हैं और सुख एवं आनन्द पाने के लिये ही जगत में आये हैं तनाव में जीना हमारी नियति नहीं होनी चाहिए ।
- अजीत कुमार सिंह