व्यंग : अंशुमाली रस्तोगी
कैटरीना कैफ और विक्की कौशल की “हाईलेवल” शादी चर्चा में रही। हालांकि मुझे इस बात का मलाल ताउम्र रहेगा कि मैं वहां न पहुंच सका। पहुंचता भी भला कैसे! सेलिब्रिटीज की शादियों में पहुंचने के लिए “औकात” चाहिए होती है। दुर्भाग्य से, ये मेरे पास नहीं।
खैर, शादी ठीक-ठाक संपन्न भई। सोशल मीडिया उनकी शादी की तस्वीरों से पट गया। क्या ट्विटर, क्या फेसबुक, क्या इंस्टाग्राम और क्या अखबारों की वेबसाइट्स- हर कहीं, कैट-विक्की की शादी की तस्वीरें और तवसरें। उनके चाहने वालों की दीवानगी का आलम तो पूछिए ही मत। यद्यपि शादी में वे भी नहीं जा सके किंतु आशीर्वाद वर-बहू को इतने दे दिए कि झोली में न समा पाएंगे।
शादी दरअसल बाजार का अहम हिस्सा है। बाजार न हो तो शादी या शादियों के कोई मायने नहीं। फिल्मों में और सेलिब्रिटीज की होनी वाली शादियों ने ही जनमानस को समझाया कि शादी बाजार के मुताबिक कैसी होनी चाहिए। कैसे प्री-वेडिंग शूट होना चाहिए। कैसे दहेज की परंपरा को नए तरीके से बनाए व बचाए रखना चाहिए। पैसा है तो उसे कैसे और कहां-कहां लूटना चाहिए। मेंहदी की रस्म, हल्दी तेल की रस्म, जूता चुराई की रस्म, हर रस्म पर कपड़े बदलने की रस्म आदि को “इवेंट ओरिएंटेड” कैसा होना चाहिए। हनीमून के खास पैकेज कैसे होने चाहिए। हनीमून पर भीतर-बाहर के कपड़े कैसे होने चाहिए। आदि-आदि।
बाजार का हमेशा ही यह मानना रहा है कि शादी कभी ऐसी लगे ही नहीं कि वो शादी है। लगे कि शादी “इवेंट मैनेजमेंट” का हिस्सा है। स्टेज से लेकर डांस तक सबकुछ हाई-फाई। कि, गरीब कभी सोच भी न पाए कि वो ऐसी शादी का सपना भी देख सकता है।
मुझे जब भी शादियों में जाने का अवसर मिलता है, मैं वहां बड़ी तल्लीनता से मदमस्त बाजार को झूमते-नाचते देखता हूं। और, ये भी समझ लीजिए- जब तलक बाजार रहेगा, दहेज भी रहेगा। डिमांड भी रहेंगी और फूफा के साथ-साथ रिशेदारों की नाराजगियां भी रहेंगी।
कहने वाले अकसर ही कहते मिलते हैं कि ये सब बदलेगा। लेकिन मेरा कहना है कि ये सब- अपने नए नए वेरिएंट के साथ- हमारे बीच रहेगा। क्योंकि बाजार न इसको बदलने देगा न खतम होने।
“हम आपके हैं कौन” से शुरू हुआ “इवेंट ओरिएंटेड” शादियों का दौर अब तलक बदस्तूर चल रहा है। बाजार को इसमें मजा आ रहा है। उसने हर रीत को अपने अनुसार “मोडिफाइड” कर दिया है। लोगबाग इसी में खुश हैं। जोर इस बात पर रहता है कि शादी जितनी महंगी होगी, समाज में रुतबा भी उतना ही बढ़ेगा।
शादी सात फेरों या बंधन के यथास्थितिवादी दायरे से बाहर निकलकर शुद्ध व्यवसाय और बाजार में परिवर्तित हो गई है। पैसे की नुमाइश ही शादी है। शादी के बाद शादी कैसी निभ रही है, ध्यान इस बात पर इतना नहीं रहता, जितना कि ‘बहू खुश खबरी कब सुना रही है’ इस बात पर रहता है। होते हैं और हैं भी कुछ लोग, जिन्हें आदत-सी होती है, हर किसी के फटे में अपनी टांगें घुसेड़ने की।
इसीलिए मैं कहता हूं- जब दुनिया में आए हैं तो हर तरह और हर कहीं के बाजार को समझिए। क्योंकि बाजार हमेशा रहेगा, आप भले ही रहें या ना रहें।