पाकिस्तान और चीन का भारत को लेकर खतरनाक नजरिया किसी से छिपा नहीं है। दोनों बिना किसी लिहाज के पूरी बेशर्मी के साथ भारतीय हितों को प्रभावित करने वाले कदम उठाते रहते हैं। चाहे वह सीमा पर अशांति फैलाने की बात हो, देश के अंदर आतंक – अराजक गतिविधियों की साजिशें रचना हो और इसके लिए कश्मीर सहित देश के विभिन्न हिस्सों के युवाओं को बरगलाना हो या अंतर्राष्ट्रीय मंचों पर भारत के प्रति भ्रामक माहौल बनाना हो इन सभी में दोनों देश अपने संसाधनों और संपर्कों का खुलकर इस्तेमाल कर रहे हैं।
स्थितियों को सामान्य बनाने के लिए भारत के सभी प्रयासों को भी ये धता बताते रहे हैं। ऐसे उचित ही है कि दोनों के सुधरने की उम्मीदों की अब तक की अपनी लाइन बदलते हुए भारत इनके प्रति सख्त व हकीकत के मुताबिक रवैया अपना रहा है। विदेश मंत्री जयशंकर ने साफ तौर पर कहा है कि पाकिस्तान से बाधारहित बातचीत का समय अब खत्म हो चुका है।
उन्होंने कहा कि भारत निष्क्रिय नहीं है और हर घटना की प्रतिक्रिया देगा। उनका यह कहना भी सही है। कि दुनिया में किसी भी देश के लिए पड़ोसी हमेशा ‘पहेली’ होते हैं। चीन के मामले में यह पहेली दोहरी है क्योंकि वह पड़ोसी है। और महाशक्ति भी है। उस के साथ संबंधों मेंह में उचित सावधानियां बरतनी चाहिए। दशकों पूर्व दुनिया ने चीन को लेकर समस्याओं को नजरअंदाज कर दिया था पर अब उसे भी इन समस्याओं का सामना करना पड़ रहा है।
जयशंकर ने बड़े नपे- तुले शब्दों में भारत का नजरिया साफ कर दिया है। इसके बाद दोनों पड़ोसियों को इस मुगालते में नहीं रहना चाहिए कि वार्ताओं और प्रचार युद्ध का दबाव बनाकर वे साजिशें रचते रहने में कामयाब होते रहेंगे। देश की सुरक्षा, एकता-अखंडता और विकास को ध्यान में रखते हुए यह दृष्टिकोण जरूरी है। नीति भी कहती है कि जो जिस भाषा में बात समझता हो, उससे उसी भाषा में बात होनी चाहिए। अब जब भारत की विकास की गति और उसके आयाम बढ़ रहे हैं, तब दुश्मनों का उसे उलझाए रखने के लिए साजिशें रचना स्वाभाविक है क्योंकि ऐसी मानसिकता के लोग पड़ोस को फलते-फूलते नहीं देख सकते।