जी के चक्रवर्ती
सरकार द्वारा किसानों पर जबरदस्ती मढ़े गए तीन कृषि बिल कानूनों के विरुद्ध किसानों द्वारा चलाये गए लम्बे आंदोलन के संघर्ष की परिणीति आखिर हो ही गयी। आखिरकार थक हार कर सरकार द्वारा सदन में तीनों कृषि बिल वापस ले ही लिए गए, अब आप इसे चुनावी चाल समझिये या मोदी सरकार का नया पैंतरा ! यह तो वक़्त ही बताएगा लेकिन जीत किसानों की हुयी और वह सर्कार पर दबाव बनाने में कामयाब रहे, लेकिन इस बीच जो सबसे ज्यादा किरकिरी हुयी तो वह सरकार के साथ गोदी मीडिया की जिसमें खुलकर कुछ कथित चैनलों का काला चेहरा बेनकाब होकर सामने आ गया। उनके सामने समस्या यह आ गयी कि जो अभी तक इन तीन कृषि कानूनों के फायदे गिना रहे थे उन्हें अब इसके साइड इफेक्ट कैसे गिनाये यह समझ नहीं पा रहे हैं इस मामले पर सरकार ने भी गोदी मीडिया से पल्ला झाड़ लिया है।
फिलहाल लगातार तीन सौ अठत्तर दिन चले इस आंदोलन को ख़त्म करने बाद किसानों ने जीत का शानदार जश्न मनाया और घर वापसी का एलान भी किया। लेकिन इस आंदोलन में एक दुखद पहलू भी सामने आया वह यह कि इस आंदोलन में सात सौ नौ किसान भी शहीद हुए।
आखिर में इस आंदोलन के सुपर हीरों व सयुंक्त किसान मोर्चा के अध्यक्ष राकेश टिकैत को लन्दन की एक संस्था द्वारा 21st सेंचुरी आइकॉन अवॉर्ड से सम्मानित किया गया संस्था ने बताया कि यह इस सदी का सबसे बड़ा व लम्बा आंदोलन था।
फिलहाल किसान तो जीत गए लेकिन अभी भी MSP को कानूनी जामा नही पहनाया जा सका दरअसल नियुन्तम समर्थन मूल्य को कानूनी जामा पहनाया जाना इतना सहज भी नही है क्योंकि न्यूनतम समर्थन मूल्य को कानूनी दायरे में लेते ही यदि देश मे कहीं पर भी इससे कम मूल्य पर अनाज की खरीद की जाती है तो यह अपराध के श्रेणी में आ जायेगा। इसमे दूसरी जो महत्वपूर्ण बात है कि आनाज चाहे किसी भी श्रेणी का हो लेकिन खरीदार को वही मूल्य चुकाना पड़ सकता है तो अब यहां प्रश्न उठता है कि आखिर अनाज की श्रेणी कैसे और कौन निर्धारित करेगा कि जिसकी बात किसानों एवं खरीदार दोनों ही को मान्य हो?
अभी फिलहाल सरकार द्वारा एक कमेटी का गठन कर इस समस्या का हल निकालने के लिए उसे मनोनीत किया गया है। रह गयी बात मृत किसानों के परिवार वालों को मुआवजा, पराली जलाने और बिजली बिल संम्बंधी मामले जो कि केंद्र और राज्य सरकार दोनों के द्वारा हल किया जायेगा तो किसानों के अभी भी आंदोलनरत रहने का कोई औचित्य ही नही है।
किसानों के धरना आंदोलन 378 दिनों के बाद स्थगित हो जाने से अब किसानों के घर लौटने की ओर अग्रसर है लेकिन यदि हम किसानों की इस संघर्ष की जीत की बात करें तो इस जीत का वास्तविक श्रेय उन गुमनाम किसानों और उन 709 शहीद किसानों की आहुति का नतीजा है जो आज उनके जीत के जश्न को मनाने के लिए जीवित नही है। आज संघर्षरत किसान सहर्ष अपने-अपने घर वापस लौट रहे हैं।
9 दिसम्बर 2021 के दिन एक चैनल को दिये गए साक्षात्कार में किसान नेता गुरमीत सिंह चढूनी द्वारा यह कहते हुये किसान आंदोलन को स्थगित किये जाने की बात स्वीकार गया नाकि आंदोलन वापस लेने की बात कही ऐसा कहने को लेकर जब उनसे पूछा गया तो उन्होंने स्पष्ट लहजे में यह कहा कि आंदोलन वापसी का निर्णय तभी लिया जायेगा जब सरकार द्वारा किसानों की समस्त मांगे मान कर उसे क्रियान्वित किया जायेगा क्योंकि इस सरकार की कथनी और करनी में बहुत बड़ा अंतर है। इसलिये हम आंदोलन स्थगित करने की बात कह रहे हैं क्योंकि जब तक सरकार द्वारा हमारी सभी मांगों को मान कर उसका कार्यान्वयन नही किया जायेगा तब तक आंदोलन समाप्त नही होगा हम आगे भी संघर्ष करने के लिये तैयार हैं। किसानों के हिम्मत संघर्ष के आगे आज सम्पूर्ण राष्ट्र नत मस्तक है।