अंशुमाली रस्तोगी
सिंधू के सिर पर मिस यूनिवर्स का ताज उसकी मेहनत, लगन, विश्वास, ईमानदारी, सुडौल शरीर या जनता के प्यार ने नहीं, बाजार ने रखा है। उस बाजार ने जिसका हिस्सा वो उसी दिन बन गई थी, जब ये खिताब उसकी झोली में आन गिरा था। बाजार के लिए सिंधू अब सिर्फ एक उत्पाद है। बाजार उसकी सफलता का सद्पयोग विज्ञापन में करेगा। विज्ञापन के रास्ते ही फिल्मों के द्वार उसके लिए खुलेंगे या खुल भी गए होंगे।
बाजार को इससे कभी मतलब नहीं रहा कि आप कितने प्रतिभाशाली या मेहनती हैं। बाजार सिर्फ बेचने, खरीदने और आकर्षण पैदा करने की भाषा जानता है। बाजार एक उम्र तक सेलिब्रिटीज का इस्तेमाल करता है। उम्र ढलते ही किनारे कर देता है। फिर उसके लिए आप “यूजलेस” हो जाते हैं।
बात स्त्री की ही नहीं, हर सुंदर और गोरे व्यक्ति के लिए बाजार के दरवाजे खुले हैं। वैसे, बाजार को सांवले रंग का भी बखूबी इस्तेमाल करते देखा गया है।
मिस यूनिवर्स बनने के पीछे सिंधू की मेहनत या भाग्य की तारीफें करने से पहले बाजार की मीठी ज़बान पर भी एक निगाह डाल लीजिए। बाजार हर किसी के साथ बड़े ही दिलचस्प और खूबसूरत तरीके से खेल रहा है।
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