मुफ्ती अख्तर हुसैन अजहरी ने बताया कि असल रोजा तो वह है जिससे खुदा राजी हो जाये। जब हाथ उठे तो भलाई के लिए। कान सुने तो अच्छी बातें। कदम बढ़े तो नेक काम करने के लिये। आंख देखें तो जायज चीजों को। रमजान का एहतराम बेहद जरूरी है। रोजा केवल भूखे रहने का नाम नहीं है बल्कि इसमें इंद्रियों पर नियंत्रण रखना भी जरूरी है।
-आंख का रोजा
आंख का रोजा इस तरह रखना चाहिए कि आंखें जब उठे तो सिर्फ और सिर्फ जायज चीज को ही देखने की तरफ उठे। आंख से मस्जिद देखिए, कुरआन मजीद, दीनी किताब देखिए। मजाराते अवलिया की जियारत कीजिए।
-कानों का रोजा
कानों का रोजा ये है कि सिर्फ जाइज बातें सुने मसलन कानों से तिलावत, नात सुनिए, सुन्नतों का बयान सुनिए। अजान, इकामत सुनिए, सुनकर जवाब दीजिए। किरत सुनिए, अच्छी-अच्छी बातें सुनिए।
-जबान का रोजा
जबान का रोजा ये है कि जबान सिर्फ और सिर्फ नेक व जाइज बातों के लिए ही हरकत में आए। मसलन जबान से तिलावते कुरआन कीजिए। अल्लाह का जिक्र कीजिए। नबी और आले नबी पर दरुद व सलाम भेजिए। नात शरीफ पढिए। सुन्नतों का बयान कीजिए।
-हाथों का रोजा
हाथों का रोजा यह है कि जब भी हाथ उठें तो सिर्फ नेक कामों के लिए उठे। मसलन हाथों से कुरआन मजीद को छुएं, हो सके तो हाथों से किसी अंधे की मदद कीजिए। यतीमों पर शफकत का हाथ फेरिए । गरीब की मदद कीजिए।
-पांव का रोजा
पावं का रोजा यह है कि पांव उठे तो नेक कामों के लिए । मसलन पांव चले तो मस्जिद की तरफ। मजाराते अवलिया की तरफ, सुन्नतों भरे इज्तिमा की तरफ चलें, नेक साहेबतों की तरफ चलें, किसी की मदद के लिए चले।
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