जम्मू-कश्मीर सदा से ही भारत का अभिन्न अंग रहा है इस बात में कोई संदेह नहीं रहा, लेकिन कुछ राजनीतिक कारणों से स्वतंत्रता के बाद इसकी स्थिति को एक नया स्वरूप दे दिया गया था। इन्हीं में एक व्यवस्था अनुच्छेद 370 की भी थी। इसके माध्यम से जम्मू-कश्मीर को अलग संविधान, अलग ध्वज और आंतरिक प्रशासनिक स्वायत्तता रखने का अधिकार दिया गया जबकि यह राज्य पूर्व में भारत द्वारा शासित था।
भारत सरकार ने 2019 को पहले के आदेश को बदल दिया और जम्मू-कश्मीर को भारतीय संविधान के सभी अनुच्छेदों के अधीन कर दिया। इस अनुच्छेद को रद्द करने के फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में 22 याचिकाएं दायर की गई थीं। कोर्ट की संविधान पीठ ने सर्वसम्मति से जम्मू-कश्मीर को विशेष दर्जा देने वाले पूर्ववर्ती अनुच्छेद 370 के प्रावधानों को खत्म करने और राज्य को दो हिस्सों जम्मू-कश्मीर और लद्दाख विभाजित करने के केंद्र सरकार के फैसले को सही ठहराया है।
पीठ ने कहा है कि 370 एक अस्थायी प्रावधान था व राष्ट्रपति को पूर्ववर्ती राज्य की संविधान सभा की गैर मौजूदगी में भी इसको रद्द करने का अधिकार था। इस तरह केंद्र का एक सर्वथा उचित फैसला, जिसे कुछ लोगों ने राजनीतिक हित साधने के लिए विवाद का विषय बना दिया था, अब सही सिद्ध हो गया, यह जरूरी भी था। केंद्र द्वारा 370 को रद्द किए जाने के बाद से राज्य की स्थिति में काफी बदलाव आया है और यह देश की मुख्य धारा में जुड़ रहा है।
इसीलिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी कोर्ट के निर्णय को ऐतिहासिक बताते हुए कहा है कि ये एक मजबूत, अधिक एकजुट भारत के निर्माण के हमारे सामूहिक संकल्प का प्रमाण है। इस तरह न्यायालय ने सभी आपत्तियों का समाधान कर दिया है और केंद्र द्वारा राज्य में विकास गतिविधियां संचालित करने का रास्ता भी साफ कर दिया है। अब राज्य के लोगों का भ्रम भी दूर हो सकेगा और उन्हें बरगलाने के प्रयास निष्फल साबित होंगे। गृहमंत्री अमित शाह ने भी कहा है कि 370 के कारण राज्य में अलगाववाद पैदा हुआ और आतंकवाद को बढ़ावा मिला।
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